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तू कही आसपास है | पद्मश्री महम्मद रफ़ी स्वरांजली 31 जुलाई का “रफ़ीनामा”

पद्मश्री महम्मद रफी
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नमस्कार ,

‘रफ़ी’ साहब आज भी उनकी आवाज़ के जरिये हमारे बीच ही है | 

     ‘महम्मद रफ़ी’  एक फ़नकार ही नहीं है , एक नाम ही नहीं है , एक ऐसा नाम एक ऐसे फनकार जिनकी बरोबरी आज भी कोई नहीं कर शकता है | ‘रफ़ी’ साहब उस उंच कोटी के कलाकार थे , जिनके लिए यहा शब्द कम पड़ेंगे | ‘रफ़ी’ साहब एक ओलिया ,संत,थे | मेरे शब्दो मे अल्लाह और ईश्वर के नाम को एक किया जाये तो ‘महम्मद रफ़ी’ बन जाता है |

     मै इतना खुशनशिब नहीं रहा हु की ‘रफ़ी’साहब को मिल शकु उनके दर्शन कर शकु, क्यू की 1980 मे मेरा बचपन था ,मै और मेरा एक जिगरी दोस्त ‘हेमरज’ मुंबई फिल्म इंडस्ट्रीज मे राइटर बनाने का सपना लेकर आए थे, उन सपनों मे एक सपना था की रफ़ी साहब,किशोरदा ,मुकेशजी,लताजी,हमारे लिखे हुए गाने गाये | पर यह तकदीर हमारे दामन पर नहीं लिखी थी इंका अफसोश जितना करे इतना कम ही है | 

     मै मुंबई नहीं था तब एक बार मेरा दोस्त हेमराज एक दिन अचानक बांद्रा स्थित कब्रस्तान मे जहा इस औलिया संत को दफन किया है वहा गया था और पूरी रात रफ़ी साहब की कब्र के पास निकाली थी , उस उम्मीद मे की एक बार रफ़ी साहब की आवाज़ इस कब्र से सुनाई दे | उस समय रात के करीब 2-3 के बीच एक फकीर जिनके हाथोमे ग्रीन कलर से चमकती हुई एक तसदी थी , चांदी की चमक से भी ज्यादा चसमकते हुए बाल दाढ़ी थे , वो फकीर ने आकर हेमराज को कहा की बेटा इतनी रात को तुम यहा क्या कर रहे हो ? जाओ अपने घर जाओ तुम्हारे माँ-बाप तुम्हारी राह देखते होंगे | हेमराज ने कहा की बाबा इस उम्मीद से आया हु की रफ़ी साहब की एक आहट भी सुनाई दे तो मै धन्य हो जाऊंगा और मेरा मुंबई आनेका सपना  सफल हो जाएगा | तब बाबा ने बहुत ही प्यार से कहा था की बेटा वो गहरी नींद मे सो गए है जिस नींद से कोई उठता नहीं है , वो इस फानी दुनिया को छोडकर अल्लाहताला के घर पहोच गए है , वहा वो अमन से रेह रहे होंगे , यहा तो सिर्फ उनका जिश्म है ,रूह तो अल्लाह  के पास पहोच चुकी है , और बाबा अचानक मेरे दोस्त हेमराज की आखो से ओजल हो गए | 

        मोहम्मद रफ़ी (24 दिसंबर 1924-31 जुलाई 1980) जिन्हें दुनिया रफ़ी या रफ़ी साहब के नाम से बुलाती है, हिन्दी सिनेमा के श्रेष्ठतम पार्श्व गायकों में से एक थे। अपनी आवाज की मधुरता और परास की अधिकता के लिए इन्होंने अपने समकालीन गायकों के बीच अलग पहचान बनाई। इन्हें शहंशाह-ए-तरन्नुम भी कहा जाता था। मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ ने अपने आगामी दिनों में कई गायकों को प्रेरित किया। इनमें सोनू निगममुहम्मद अज़ीज़ तथा उदित नारायण का नाम उल्लेखनीय है – यद्यपि इनमें से कइयों की अब अपनी अलग पहचान है।      1940 के दशक से आरंभ कर 1980 तक इन्होने कुल 26,000 गाने गाए।इनमें मुख्य धारा हिन्दी गानों के अतिरिक्त ग़ज़लभजन, देशभक्ति गीत, क़व्वाली तथा अन्य भाषाओं में गाए गीत शामिल हैं। जिन अभिनेताओं पर उनके गाने फिल्माए गए उनमें गुरु दत्तदिलीप कुमारदेव आनंदभारत भूषणजॉनी वॉकरजॉय मुखर्जीशम्मी कपूरराजेन्द्र कुमारराजेश खन्नाअमिताभ बच्चनधर्मेन्द्रजीतेन्द्र तथा ऋषि कपूर मिथुन चक्रवर्ती गोविंदा के अलावे गायक अभिनेता किशोर कुमार का नाम भी शामिल है। 24 दिसंबर 2017 को मोहम्मद रफी जी के 93वें जन्मदिवस पर गूगल ने उन्हें सम्मानित करते हुए उनकी याद में गूगल डूडल बनाकर उनके गीतों को और उनकी यादों को समर्पित किया | इस डूडल को मुंबई के चित्रकार साजिद शेख द्वारा बनाया गया। 

रफ़ी साहब के शुरुआती दिन

    मोहम्मद रफ़ी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर, के पास कोटला सुल्तान सिंह में हुआ था। आरंभिक स्कूली पढ़ाई कोटला सुल्तान सिंह में हुई। जब मोहम्मद रफी करीब सात साल के हुए तब उनका परिवार रोजगार के सिलसिले में लाहौर आ गया। इनके परिवार का संगीत से कोई खास सरोकार नहीं था। जब रफ़ी छोटे थे तब इनके बड़े भाई की नाई की दुकान थी, रफ़ी का काफी वक्त वहीं पर गुजरता था। कहा जाता है कि रफ़ी जब सात साल के थे तो वे अपने बड़े भाई की दुकान से होकर गुजरने वाले एक फकीर का पीछा किया करते थे जो उधर से गाते हुए जाया करता था। उसकी आवाज रफ़ी को पसन्द आई और रफ़ी उसकी नकल किया करते थे। उनकी नकल में अव्वलता को देखकर लोगों को उनकी आवाज भी पसन्द आने लगी। लोग नाई की दुकान में उनके गाने की प्रशंशा करने लगे। लेकिन इससे रफ़ी को स्थानीय ख्याति के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिला। इनके बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने इनके संगीत के प्रति इनकी रुचि को देखा और उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास संगीत शिक्षा लेने को कहा। एक बार आकाशवाणी (उस समय ऑल इंडिया रेडियो) लाहौर में उस समय के प्रख्यात गायक-अभिनेता कुन्दन लाल सहगल अपना प्रदर्शन करने आए थे। इसको सुनने हेतु मोहम्मद रफ़ी और उनके बड़े भाई भी गए थे। बिजली गुल हो जाने की वजह से सहगल ने गाने से मना कर दिया। रफ़ी के बड़े भाई ने आयोजकों से निवेदन किया की भीड़ की व्यग्रता को शांत करने के लिए मोहम्मद रफ़ी को गाने का मौका दिया जाय। उनको अनुमति मिल गई और 13 वर्ष की आयु में मोहम्मद रफ़ी का ये पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था। प्रेक्षकों में श्याम सुन्दर, जो उस समय के प्रसिद्ध संगीतकार थे, ने भी उनको सुना और काफी प्रभावित हुए। उन्होने मोहम्मद रफ़ी को अपने लिए गाने का न्यौता दिया।

   मोहम्मद रफ़ी का प्रथम गीत एक पंजाबी फ़िल्म गुल बलोच के लिए था जिसे उन्होने श्याम सुंदर के निर्देशन में 1944 में गाया। सन् 1946 में मोहम्मद रफ़ी ने बम्बई आने का फैसला किया। उन्हें संगीतकार नौशाद ने पहले आप नाम की फ़िल्म में गाने का मौका दिया।

उनकी ख्याति

      नौशाद द्वारा सुरबद्ध गीत तेरा खिलौना टूटा (फ़िल्म अनमोल घड़ी, 1946) से रफ़ी को प्रथम बार हिन्दी जगत में ख्याति मिली। इसके बाद शहीदमेला तथा दुलारी में भी रफ़ी ने गाने गाए जो बहुत प्रसिद्ध हुए। 1951 में जब नौशाद फ़िल्म बैजू बावरा के लिए गाने बना रहे थे तो उन्होने अपने पसंदीदा गायक तलत महमूद से गवाने की सोची थी। कहा जाता है कि उन्होने एक बार तलत महमूद को धूम्रपान करते देखकर अपना मन बदल लिया और रफ़ी से गाने को कहा। बैजू बावरा के गानों ने रफ़ी को मुख्यधारा गायक के रूप में स्थापित किया। इसके बाद नौशाद ने रफ़ी को अपने निर्देशन में कई गीत गाने को दिए। लगभग इसी समय संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन को उनकी आवाज पसंद आयी और उन्होंने भी रफ़ी से गाने गवाना आरंभ किया। शंकर जयकिशन उस समय राज कपूर के पसंदीदा संगीतकार थे, पर राज कपूर अपने लिए सिर्फ मुकेश की आवाज पसन्द करते थे। बाद में जब शंकर जयकिशन के गानों की मांग बढ़ी तो उन्होंने लगभग हर जगह रफ़ी साहब का प्रयोग किया। यहाँ तक की कई बार राज कपूर के लिए रफी साहब ने गाया। जल्द ही संगीतकार सचिन देव बर्मन तथा उल्लेखनीय रूप से ओ पी नैय्यर को रफ़ी की आवाज़ बहुत रास आयी और उन्होने रफ़ी से गवाना आरंभ किया। ओ पी नैय्यर का नाम इसमें स्मरणीय रहेगा क्योंकि उन्होने अपने निराले अंदाज में रफ़ी-आशा की जोड़ी का काफी प्रयोग किया और उनकी खनकती धुनें आज भी उस जमाने के अन्य संगीतकारों से अलग प्रतीत होती हैं। उनके निर्देशन में गाए गानो से रफ़ी को बहुत ख्याति मिली और फिर रविमदन मोहनगुलाम हैदरजयदेवसलिल चौधरी इत्यादि संगीतकारों की पहली पसंद रफ़ी साहब बन गए।

    दिलीप कुमारभारत भूषण तथा देवानंद जैसे कलाकारों के लिए गाने के बाद उनके गानों पर अभिनय करने वालो कलाकारों की सूची बढ़ती गई। शम्मी कपूरराजेन्द्र कुमारजॉय मुखर्जीविश्वजीतराजेश खन्नाधर्मेन्द्र इत्यादि कलाकारों के लिए रफ़ी की आवाज पृष्ठभूमि में गूंजने लगी। शम्मी कपूर तो रफ़ी की आवाज से इतने प्रभावित हुए कि उन्होने अपने हर गाने में रफ़ी का इस्तेमाल किया। उनके लिए संगीत कभी ओ पी नैय्यर ने दिया तो कभी शंकर जयकिशन ने पर आवाज रफ़ी की ही रही। चाहे कोई मुझे जंगली कहे (जंगली), एहसान तेरा होगा मुझपर (जंगली), ये चांद सा रोशन चेहरा (कश्मीर की कली), दीवाना हुआ बादल (आशा भोंसले के साथ, कश्मीर की कली) शम्मी कपूर के ऊपर फिल्माए गए लोकप्रिय गानों में शामिल हैं। धीरे-धीरे इनकी ख्याति इतनी बढ़ गयी कि अभिनेता इन्हीं से गाना गवाने का आग्रह करने लगे। राजेन्द्र कुमार, दिलीप कुमार और धर्मेन्द्र तो मानते ही नहीं थे कि कोई और गायक उनके लिए गाए।।

महमाद रफ़ी का जियावान

रफ़ी साहब का गायन सफर

    1950 के दशक में शंकर जयकिशन, नौशाद तथा सचिनदेव बर्मन ने रफ़ी से उस समय के बहुत लोकप्रिय गीत गवाए। यह सिलसिला 1960 के दशक में भी चलता रहा। संगीतकार रवि ने मोहम्मद रफ़ी का इस्तेमाल 1960 के दशक में किया। 1960 में फ़िल्म चौदहवीं का चांद के शीर्षक गीत के लिए रफ़ी को अपना पहला फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला। इसके बाद घराना (1961), काजल (1965), दो बदन (1966) तथा नीलकमल (1968) जैसी फिल्मो में इन दोनो की जोड़ी ने कई यादगार नगमें दिए। 1961 में रफ़ी को अपना दूसरा फ़िल्मफेयर आवार्ड फ़िल्म ससुराल के गीत तेरी प्यारी प्यारी सूरत को के लिए मिला। संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने अपना आगाज़ ही रफ़ी के स्वर से किया और 1963 में फ़िल्म पारसमणि के लिए बहुत सुन्दर गीत बनाए। इनमें सलामत रहो तथा वो जब याद आये (लता मंगेशकर के साथ) उल्लेखनीय है। 1965 में ही लक्ष्मी-प्यारे के संगीत निर्देशन में फ़िल्म दोस्ती के लिए गाए गीत चाहूंगा मै तुझे सांझ सवेरे के लिए रफ़ी को तीसरा फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला। 1965 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा।

    1965 में संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी द्वारा फ़िल्म जब जब फूल खिले के लिए संगीतबद्ध गीत परदेसियों से ना अखियां मिलाना लोकप्रियता के शीर्ष पर पहुंच गया था। 1966 में फ़िल्म सूरज के गीत बहारों फूल बरसाओ बहुत प्रसिद्ध हुआ और इसके लिए उन्हें चौथा फ़िल्मफेयर अवार्ड मिला। इसका संगीत शंकर जयकिशन ने दिया था। 1968 में शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में फ़िल्म ब्रह्मचारी के गीत दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर के लिए उन्हें पाचवां फ़िल्मफेयर अवार्ड मिला।

अवरोहन

    1960 के दशक में अपने करियर के शीर्ष पर पहुंचने के बाद दशक का अन्त उनके लिए सुखद नहीं रहा। 1969 में शक्ति सामंत अपनी एक फ़िल्म आराधना का निर्माण करवा रहे थे जिसके लिए उन्होने सचिन देव बर्मन (जिन्हे दादा नाम से भी जाना जाता था) को संगीतकार चुना। इसी साल दादा बीमार पड़ गए और उन्होने अपने पुत्र राहुल देव बर्मन(पंचमदा) से गाने रेकार्ड करवाने को कहा। उस समय रफ़ी हज के लिए गए हुए थे। पंचमदा को अपने प्रिय गायक किशोर कुमार से गवाने का मौका मिला और उन्होने रूप तेरा मस्ताना तथा मेरे सपनों की रानी गाने किशोर दा की आवाज में रेकॉर्ड करवाया। ये दोनो गाने बहुत ही लोकप्रिय हुए और इस गाने के अभिनेता राजेश खन्ना निर्देशकों तथा जनता के बीच अपार लोकप्रिय हुए। साथ ही गायक किशोर कुमार भी जनता तथा संगीत निर्देशकों की पहली पसन्द बन गए। इसके बाद रफ़ी के गायक जीवन का अवसान आरंभ हुआ। हँलांकि इसके बाद भी उन्होने कई हिट गाने दिये, जैसे ये दुनिया ये महफिलये जो चिलमन हैतुम जो मिल गए हो। 1977 में फ़िल्म हम किसी से कम नहीं के गीत क्या हुआ तेरा वादा के लिए उन्हे अपने जीवन का छठा तथा अन्तिम फ़िल्म फेयर एवॉर्ड मिला।

रफ़ी साहब का व्यक्तिगत जीवन

   मोहम्मद रफ़ी एक बहुत ही समर्पित मुस्लिम, व्यसनों से दूर रहने वाले तथा शर्मीले स्वभाव के आदमी थे। आजादी के समय विभाजन के दौरान उन्होने भारत में रहना पसन्द किया। उन्होने बेगम विक़लिस से शादी की और उनकी सात संतान हुईं-चार बेटे तथा तीन बेटियां।

   मोहम्मद रफ़ी को उनके परमार्थो के लिए भी जाना जाता है। वो बहुत हँसमुख और दरियादिल थे तथा हमेशा सबकी मदद के लिये तैयार रहते थे। कई फिल्मी गीत उन्होनेँ बिना पैसे लिये या बेहद कम पैसोँ लेकर गाये। अपने शुरुआती दिनों में संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (लक्ष्मीप्यारे के नाम से जाने जाते थे) के लिए उन्होने बहुत कम पैसों में गाया था। गानों की रॉयल्टी को लेकर लता मंगेशकर के साथ उनका विवाद भी उनकी दरियादिली का सूचक है। उस समय लताजी का कहना था कि गाने गाने के बाद भी उन गानों से होने वाली आमदनी का एक अंश (रॉयल्टी) गायकों तथा गायिकाओं को मिलना चाहिए। रफ़ी साहब इसके ख़िलाफ़ थे और उनका कहना था कि एक बार गाने रिकॉर्ड हो गए और गायक-गायिकाओं को उनकी फीस का भुगतान कर दिया गया हो तो उनको और पैसों की आशा नहीं करनी चाहिए। इस बात को लेकर दोनो महान कलाकारों के बीच मनमुटाव हो गया। लता ने रफ़ी के साथ सेट पर गाने से मना कर दिया और बरसों तक दोनो का कोई युगल गीत नहीं आया। बाद में अभिनेत्री नरगिस के कहने पर ही दोनो ने साथ गाना चालू किया और ज्वैल थीफ फ़िल्म में दिल पुकारे गाना गाया।

उनका देहान्त 31 जुलाई 1980 को हृदयगति रुक जानेके कारण हुआ।

रफ़ी साहब के गीतों की संख्या

   रफ़ी ने अपने जीवन में कुल कितने गाने गाए इस पर कुछ विवाद है। 1970 के दशक में गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स ने लिखा कि सबसे अधिक गाने रिकार्ड करने का श्रेय लता मंगेशकर को प्राप्त है, जिन्होंने कुल 25,000 गाने रिकार्ड किये हैं। रफ़ी ने इसका खण्डन करते हुए गिनीज़ बुक को एक चिट्ठी लिखी। इसके बाद के संस्करणों में गिनीज़ बुक ने दोनों गायकों के दावे साथ-साथ प्रदर्शित किये और मुहम्मद रफ़ी को 1944 और 1980 के बीच 28,000 गाने रिकार्ड करने का श्रेय दिया।इसके बाद हुई खोज में विश्वास नेरुरकर ने पाया कि लता ने वास्तव में 1989 तक केवल 5,044 गाने गाए थे।अन्य शोधकर्ताओं ने भी इस तथ्य को सही माना है। इसके अतिरिक्त राजू भारतन ने पाया कि 1948 और 1987 के बीच केवल 35,000 हिन्दी गाने रिकार्ड हुए।ऐसे में रफ़ी ने 28,000 गाने गाए इस बात पर यकीन करना मुश्किल है, लेकिन कुछ स्रोत अब भी इस संख्या को उद्धृत करते हैं।इस शोध के बाद 1992 में गिनीज़ बुक ने गायन का उपरोक्त रिकार्ड बुक से निकाल दिया।

रफ़ी साहब को मिले पुरस्कार एवं सम्मान

फिल्मफेयर एवॉर्ड (नामांकित व विजित)

1960 – चौदहवीं का चांद हो (फ़िल्म – चौदहवीं का चांद) – विजित

1961 – हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं (फ़िल्म – घराना)

1961 – तेरी प्यारी प्यारी सूरत को (फ़िल्म – ससुराल) – विजित

1962 – ऐ गुलबदन (फ़िल्म – प्रोफ़ेसर)

1963 – मेरे महबूब तुझे मेरी मुहब्बत की क़सम (फ़िल्म – मेरे महबूब)

1964 – चाहूंगा में तुझे (फ़िल्म – दोस्ती) – विजित

1965 -छू लेने दो नाजुक होठों को (फ़िल्म – काजल)

1966 – बहारों फूल बरसाओ (फ़िल्म – सूरज) – विजित

1968 – मैं गाऊं तुम सो जाोओ (फ़िल्म – ब्रह्मचारी)

1968 – बाबुल की दुआएं लेती जा (फ़िल्म – नीलकमल)

1968 – दिल के झरोखे में (फ़िल्म – ब्रह्मचारी) – विजित

1969 – बड़ी मुश्किल है (फ़िल्म – जीने की राह)

1970 – खिलौना जानकर तुम तो, मेरा दिल तोड़ जाते हो (फ़िल्म -खिलौना)

1973 – हमको तो जान से प्यारी है (फ़िल्म – नैना)

1974 – अच्छा ही हुआ दिल टूट गया (फ़िल्म – मां बहन और बीवी)

1977 – परदा है परदाParda Hai Parda (फ़िल्म – अमर अकबर एंथनी)

1977 – क्या हुआ तेरा वादा (फ़िल्म – हम किसी से कम नहीं) -विजित

1978 – आदमी मुसाफ़िर है (फ़िल्म – अपनापन)

1979 – चलो रे डोली उठाओ कहार (फ़िल्म – जानी दुश्मन)

1979 – मेरे दोस्त किस्सा ये (फिल्म – दोस्ताना)

1980 – दर्द-ए-दिल, दर्द-ए-ज़िगर (फिल्म – कर्ज)

1980 – मैने पूछाी चांद से (फ़िल्म – अब्दुल्ला)

भारत सरकार द्वारा प्रदत्त

मोहम्मद रफ़ी की याद में भारत सरकार द्वारा जारी किया गया डाक टिकट

1965 – पद्म श्री

1968 – बाबुल की दुआएं लेती जा (फिल्म:नीलकमल)।

1977 – क्या हुआ तेरा वादा (फ़िल्म: हम किसी से कम नहीं)।कुछ लोकप्रिय गीत

रफ़ी साहब के अमर गाने

ओ दुनिया के रखवाले (बैजू बावरा-1952)

बहारों फ़ूल बरसाओ मेरा महबूब आया है (सूरज)

आज मौसम बड़ा बेईमान है बड़ा

ये है बॉम्बे मेरी जान (सी आई डी, 1957), हास्य गीत

सर जो तेरा चकराए, (प्यासा – 1957), हास्य गीत

हम किसी से कम नहीं* चाहे कोई मुझे जंगली कहे, (जंगली, 1961)

मैं जट यमला पगला

चढ़ती जवानी मेरी

हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं, (गुमनाम, 1966), हास्यगीत

राज की बात कह दूं

ये है इश्क-इश्क

परदा है परदा

ओ दुनिया के रखवाले – भक्ति गीत

बड़ी देर भई नंदलाला – भक्ति गीत

सुख में सब साथी दुख में न कोई – भक्ति गीत

मेरे श्याम तेरा नाम – भक्ति गीत

मेरे देश में पवन चले पुरवईया – देशभक्ति गीत

हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, (फिल्म-जागृति, 1954), देशभक्ति गीत

अब तुम्हारे हवाले – देशभक्ति गीत

ये देश है वीर जवानों का, देशभक्ति गीत

अपना आज़ादी को हम, देशभक्ति गीत

नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुठ्ठी में क्या है,- बच्चो का गीत

रे मामा रे मामा – बच्चो का गीत

चक्के पे चक्का, – बच्चो का गीत

मन तड़पत हरि दर्शन को आज, (बैजू बावरा,1952), शास्त्रीय संगीत

सावन आए या ना आए (दिल दिया दर्द लिया, 1966), शास्त्रीय संगीत

मधुबन में राधिका, (कोहिनूर, 1960), शास्त्रीय

मन रे तू काहे ना धीर धरे, (फिल्म -चित्रलेखा, 1964), शास्त्रीय संगीत

बाबुल की दुआए, – विवाह गीत

आज मेरे यार की शादी है, – विवाह गीत

जिन अभिनेताओं के लिए पार्श्वगायन किया

बॉलीवूड अभिनेता

   अमिताभ बच्चन, अशोक कुमार, आइ एस जौहर, ऋषि कपूर, किशोर कुमार, गुरु दत्त, गुलशन बावरा, जगदीप, जीतेन्द्र, जॉय मुखर्जी, जॉनी वाकर, तारिक हुसैन, देव आनन्द, दिलीप कुमार, धर्मेन्द्र, नवीन निश्छल, प्राण, परीक्षित साहनी, पृथ्वीराज कपूर, प्रदीप कुमार, फ़िरोज ख़ान, बलराज साहनी, भरत भूषण, मनोज कुमार, महमूद, रणधीर कपूर, राजकपूर, राज कुमार, राजेन्द्र कुमार, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, विनोद मेहरा, विश्वजीत, सुनील दत्त, संजय खान, संजीव कुमार, शम्मी कपूर, शशि कपूर, मिथुन चक्रवर्ती, गोविंदा!

अन्य भाषाएं

मराठी

शोधिसी मानवा राउळी मंदिरी (Non-filmi)

हे मना आज कोणी बघ तुला साद घाली (Non-filmi)

हा छंद जिवाला लावी पिसे (Non-filmi)

विरले गीत कसे (Non-filmi)

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प्रभू तू दयाळु कृपावंत दाता (Non-filmi)

हसा मुलांनो हसा (Non-filmi)

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नको भव्य वाडा (Non-filmi)

माझ्या विरान हृदयी (Non-filmi)

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तेलगू

Yentha Varu Kani Vedantulaina Kani (film: Bhale Thammudu)

Na Madi Ninnu Pilichindi Ganamai (film:Aradhana)

Taralentaga Vecheno Chanduruni Kosam (film:Akbar Salim Anarkali)

Sipaaee o Sipaaee (Duet with P. Susheela)

असमिया

Asomire sutalote (Non-filmi)

Hoi saheb hoi (Non-filmi)

   किसिने बहुत खूब कहा है की , ‘जब बहुत कुछ कहने को जी चाहता है तब कुछ ना कहने को जी चाहता है’ ‘रफ़ी’साहब के गाने किस सफर का आखिरी गाना महेबूब स्टुडियो मे जे।ओमप्रकाश की फिल्म ‘आसपास’ संगीतकार लक्ष्मीकान्त -प्यारेलाल,गीत -आनंद बक्सी ‘तू काही आसपास है दोस्त और शहर मे चर्चा है गया था | 

       यह गाना पूरा होते ही रफ़ी साहब स्टुडियो की सिडिया उतार रहे थे और मनमे कुछ संकेत आया और फिर सिडिया चढ़कर स्टूडियोमे आकार लक्ष्मीजी प्यारेजी को कहा की गाने का जो एक छोटा सा हिसा बाकी है वो अभी आज ही कर लेते है | लक्ष्मीजी-प्यारेजी ने कह की रफ़ी साहब , सभी म्यूजिसियन घर जाने की तैयारिया कर रहे है , वो बाकी हिस्से की देट कल है कल कर लेंगे , तब रफ़ी साहब ने सभी म्यूजिसियानों से प्यार से पूछा की दोस्तो क्या कहना है आप लोगोका आज अभी हो जाये ? रफ़ी साहब तो सभी के दिलो मे बस्ने वाले गायक थे कौन ना कह सहकता है , साभिने अपनी तैयारी करली और वो फिल्म आसपास गाना ‘तू काही आसपास है दोस्त’ पूरा रेकॉर्ड करलिया था| और जाते समय रफ़ी साहब ने कभी ना कहे हुए शब्द -अलफ़ास कहा ‘चलो मै जाता हु’ सभी आश्चर्य चकित हो गए थे की रफ़ी साहब कभी भी गाना पूर्ण होने के बाद जाने को नहीं कहते थे आज पहली बार उनकी जुबा से निकले और सही साबित हो गाय 31 जुलाई 1980 के आज के दिन वो संत-औलिया इस जहा को छोडकर चला गया , दोस्तो रूह-आत्मा कभी मरती नहीं है,शरीर-जिश्म मरता है , रफ़ी साहब तो आज भी हमारे बीच ज़िंदा है और जबतक ये जहा रहेगा तबतक वो उनकी आवाज़ के जरिये हमारे बीच रहेंगे |

   ऐसे तो रफ़ी के बाद कोई रफ़ी नहीं आया , पर उनकी यादों को संगीत से और शरीर से हूबहू उनके अज़ीज़ बेटे ‘शाहिद रफ़ी’ साहब ने वो रफ़ी का वो कारवा शुरू रखा है ,हिंदुस्तान मे महम्मद रफ़ी एकेडेमी कार्यरत है और शाहिद रफ़ी साहब उनके चेरमेन है | हमने रफ़ी साहब को देखा नहीं पर शहीद रफ़ी साहब को मिलने का एक मौका मिला था जब मेरे पारिवारिक दोस्त शिरीष वेद जी जो जुहू मे मेरी ऑफिस के पास रहते है , वो अचानक शाहिद रफ़ी साहब को लेकर मुजसे मिलाने के लिए लेकर आए थे और मै शाहिद रफ़ी जी को मिलकर इनता खुश हुआ की रफ़ी साहब को मिलनेकी तमन्ना जो अधूरी थी वो शाहिद जी से मिलकर कुछ पल उनके साथ बिताकर दिल बाग़ बाग़ हो गया था और ऐसा ही आगा ई रफी साहब से ही मिला हु , इस अवसर को प्राप्त कराने के लिए शिरीष वेद जी का बहुत बहुत धन्यवाद ,शाहिद जी इतने मृदु भाषी जितना रफ़ी साहब थे , हमने तो रफ़ी साहब के वीडियो मे देखे है और बार बार देखते रहते है | शाहिद रफी साहब का शुक्रिया की इतने बड़े आदमी भी हम नाचीज़ से मिले थे ,रफी साहब की तरह शाहिद जी भी हर दिल अज़ीज़ है , बड़े दिल के मालिक है और एक उम्दा कलाकार है ,जो रफी साहब को आज भी हमारे बीच लाते रहते है |  

     आज “सत्य की शोध’ की टीम की तरफ से नम आखोसे ‘महम्मद रफ़ी’साहब को ‘रफीनामा’ के जरिये सहृदय-तहेदिल से श्रद्धांजली अर्पित करते है | इस ‘रफीनामा’मे प्रस्तुत हर कड़ी इन्टरनेट-दैनिक अखबारे,वीडियो , उनके जीवन की कहानीओ से , उनके द्वारा दिये गए इंटर्यू , और शाहिद रफ़ी साहब से प्रमाण पाकर आपके लिए यह महम्मद रफ़ी साहब का सफर ‘रफीनामा’ आपके लिए प्रस्तुत कर रहे है , रफ़ी साहब के लिए लाइक-शेर- कॉमेंट और सबस्क्राइब करना ना भूले | 

     इस ‘रफीनामा’ को पूर्ण करने से पहले एक आखरी बात याद आ गई की रफ़ी साहब के जीवन का आखरी रेकोर्डिंग तो फिल्म आसपास का ही था पर उनके घर पर बंगाली संगीतकार श्यामिल मित्रा उनके एक बंगाली भजन की रिहर्ल्सल के लिए गए थे, तब उनकी तबीयत नाजुक होने लगी थी | इस प्रकार रफ़ी साहब की आखरी आवाज़ लक्ष्मीकान्त पायरेलाल ने कैद की थी , आखरी शब्द आनंद बक्सी साहब ने लिखे थे ,और आखरी रिहर्ल्सल का मौका बंगाली संगीतकार श्यामिल मित्रा को मिला था |

shahid rafi

                                         शाहिद रफी साहब के साथ एक यादगार पल 

जय हिन्द 

आपका सेवक -लेखक 

  नरेंद्र वाला 

[विक्की राणा]

‘सत्य की शोध’  

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