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1st जनवरी 1670 हिन्दू योद्धा शहीद गोकुल सिंह जाट का बलिदान दिवस ,धर्म परिवर्तन नहीं किया बलिदान दिया

shahid gokul singh jaat
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नमस्तेनमस्कार,

अखंड भारत के हिन्दू क्रांतिकारी वीर शहीद गोकुल सिंह जाट बलिदान दिवस 1 जनवरी 1670

          तिलपत (Tilpat) भारत के हरियाणा राज्य के फरीदाबाद ज़िले में यमुना नदी के किनारे स्थित एक नगर है। यह सन् 1669 में मुग़ल सलतनत के ततकालीन शासक, औरंगज़ेब, के विरुद्ध हुए जाट विद्रोह के लिए प्रसिद्ध है। मुगल शासन ने इस्लाम धर्म को बढावा दिया और सिर्फ हिन्दू किसानों पर कर बढ़ा दिया। वीर गोकुल सिंह जाट ने किसानों को संगठित किया और कर जमा करने से मना कर दिया और मुगल बादशाह औरंगजेब के खिलाफ गोकुल सिंह ने  20 हजार की सेना के साथ  विद्रोह छेड़ दिया। औरंगजेब ने अपने कुछ सेनापतियों के साथ शक्तिशाली सेना भेजी। जाटों और मुगलों में युद्ध हुआ। युद्ध में जाटों की विजय हुई,गोकुला सिंह ने मोगल साम्राज्य को हिला डाला था ,औरंगजेब की नींद हराम हो गई थी। परंतु युद्ध हारने के बाद औरंगजेब खुद 3 तीन लाख की सेना लेके तिलपट पर धोखे से हमला कर दिया और गोकुला और उनके साथियों को बंधी बनाने के लिए तीन लाख सेना के साथ , वीर गोकुल जाट को बन्दी बना लिया गया और 1 जनवरी 1670 को आगरा के किले पर जनता को आतंकित करने के लिये टुकडे़-टुकड़े कर शहीद कर दिये गए । इस तरह वो शहीद हो गए, आज जाट समूह की मांग पर आग्रा मे वीर शहीद गोकुल सिंह जाट योद्धा का योद्धा के रूप मे घोड़े के हाथ मे तलवार लिए उनका पुतला स्थापित किया है जो बड़े गर्व की बात |

       औरंगजेब को सबसे विवादास्पद मुग़ल शासक माना जाता है क्योंकि उन्होंने गैर-मुसलमानों के प्रति जज़िया कर जैसी भेदभावपूर्ण नीतियां लागू कीं और उनके शासन में बड़ी संख्या में हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया। औरंगज़ेब ने पूरे साम्राज्य पर शरियत आधारित फ़तवा-ए-आलमगीरी लागू किया और सिखों के गुरु तेग बहादुर को भी उनके आदेश के तहत मार दिया गया था। 

          बादशाह औरंगजेब को 28 नवंबर, 1669 को दिल्ली से कूच करना पड़ा । हसन अलीखान और ब्रह्मदेव सिसौदिया के नेतृत्व में मुगलों ने गोकुला जाट पर हमला किया। गोकुला और उनके चाचा उदय सिंह जाट ने 20000 जाटों, अहीरों और गूजरों के साथ तिलपत की लड़ाई में शानदार साहस और दृढ़ता के साथ लड़ाई लड़ी , लेकिन उनके धैर्य और बहादुरी का मुगल तोपखाने के सामने कोई जवाब नहीं था। तीन दिनों की भीषण लड़ाई के बाद तिलपत गिर गया। दोनों पक्षों का नुकसान बहुत भारी था। 4000 मुग़ल और 3000 जाट सैनिक मारे गये।

       मान्यता है  कि तिलपत महाभारत के समय का गांव है। इसका प्राचीन नाम तिलपथ हुआ करता था। महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले जब भगवान श्रीकृष्ण संधि का आखिरी प्रयास करने दुर्योधन के पास गए और पांडवों को 5 गांव देने की मांग की थी तो उनमें श्रीपत (सिही), बागपत, सोनीपत, पानीपत के अलावा तिलपत को भी चुना था, लेकिन दुर्योधन ने सुई की नोक के बराबर भी जमीन देने से इनकार कर दिया था। इतना ही नहीं यह भी मान्यता है कि यहां पर पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण के साथ यज्ञ भी किया था। जहां पर यज्ञ किया गया था, उस जगह आज बाबा सूरदास की समाधि बनी हुई है।

       “जाट” ऐसा लचीला नाम है जो उन लोगों के लिए प्रयोग होता है जिनका सिंध की निचली सिंधु घाटी में पशुचारण का आचरण था और जो पारंपरिक रूप से गैर-अभिजात वर्ग है।[1] ग्यारहवीं और सोलहवीं शताब्दियों के बीच, जाट चरवाहे नदी घाटियों के साथ पंजाब में चले गये जहाँ खेती पहली सहस्राब्दी में नहीं हुई थी। कई लोगों ने पश्चिमी पंजाब जैसे क्षेत्रों में खेत जोतना शुरू किया, जहां हाल ही में सकिया लाया गया था। मुग़ल काल के प्रारंभ में, पंजाब में, “जाट” शब्द “किसान” का पर्याय बन गया था और कुछ जाट भूमि प्राप्त कर लिये थे और स्थानीय प्रभाव डाल रहे थे।

      समय के साथ जाट पश्चिमी पंजाब में मुख्य रूप से मुस्लिम, पूर्वी पंजाब में सिख और दिल्ली और आगरा के बीच के क्षेत्रों में हिंदू हो गए।18 वीं शताब्दी की शुरुआत में मुगल शासन के पतन के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के भीतरी इलाकों के निवासी जिनमें से कई सशस्त्र और खानाबदोश थे ने तेजी से बसे शहरवासियों और कृषकों के साथ परस्पर प्रभाव डालना शुरू किया। 18 वीं शताब्दी के कई नए शासक ऐसे घुमंतू पृष्ठभूमि से आए थे। जैसे ही मुगल साम्राज्य लड़खड़ाने लगा गया था उत्तर भारत में ग्रामीण विद्रोह की एक श्रृंखला शुरू हो गयी थी। यद्यपि इन्हें कभी-कभी “किसान विद्रोह” के रूप में चित्रित किया गया था, असल में छोटे स्थानीय जमींदार अक्सर इन विद्रोहों का नेतृत्व करते थे। सिख और जाट विद्रोहियों का नेतृत्व ऐसे छोटे स्थानीय जमींदारों द्वारा किया जाता था जिनका एक-दूसरे के साथ घनिष्ठ और पारिवारिक संबंध थे और उनके अधीन किसान थे।

     बढ़ते किसान-योद्धाओं के ये समुदाय अच्छी तरह से स्थापित भारतीय जातियों के नहीं थे बल्कि काफी नए थे। यह लोग मैदानों के पुरानी किसान जातियों, विविध सरदारों और खानाबदोश समूहों को अवशोषित करने की क्षमता के साथ थे। मुगल साम्राज्य, यहां तक ​​कि अपनी सत्ता के चरम में भी ग्रामीण वासियों पर सीधा नियंत्रण नहीं रखता था। यह ये ज़मींदार थे जिन्होंने इन विद्रोहों से सबसे अधिक लाभ उठाया और अपने नियंत्रण में भूमि को बढ़ाया। कुछ ने मामूली राजकुमारों की पदवी को भी प्राप्त किया जैसे कि भरतपुर रियासत के जाट शासक बदन सिंह। जाट गंगा के मैदान में क्रमशः सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में दो बड़े प्रवास में पहुंचें। वे सामान्य हिंदू अर्थ में जाति नहीं थे, उदाहरण के लिए जैसे पूर्वी गंगा के मैदान के भूमिहार थे; बल्कि वे किसान-योद्धाओं का एक समूह थे।

       भारत का जाट समूह शक्तिशाली योद्धा थे जो आज भी भारत की सेना मे जाट समूह भारत सेना की एक शक्तिशाली सेना है ,इस तरह भारत का इतिहास साक्षी साक्षी है पर हमारी युवा पीढ़ी ब्रिटिश अंग्रेजो की परंपरा को ज्यादा बढ़ावा देती आई है और नया साल मनानेमे लाखो रूपियों का और अपने समय का भी व्यर्थ ही खर्च करेंगे , हम सभी युवाओको विनम्र विनंती करते है की भारत के ऐसे सभी वीर योद्धाओको उनके बलिदान को मत भूले उन्हे याद रखे क्यू की हमे मिली आज़ादी सस्ती नहीं थी लाखो वीरों और महिलाओ ने अपने देश की आज़ादी के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया है तब हम आज अपना सुखी जीवन आज़ाद भारत मे जी रहे है |

       आजके दिन हम ‘सत्य की शोध’ की टीम वीर क्रांतिकारी योद्धा शहीद गोकुल सिंह जाट को सत सत नमन करते है और हृदय पूर्वक उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करते है | जय गोकुल सिंह जाट – जय हिन्द 

 आपका सेवक -लेखक

        नरेंद्र वाला 

     [विककी राणा]

     ‘सत्य की शोध’

satya ki shodh

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