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28 sep.शहीद भगतसिंह आज़ादी के दीवाने का जन्मदिन और उनका पहला का मुक़दमा ,शहीद भगत सिंह,सुखदेव,राजगुरु…आजादी के दीवाने 23 मार्च 1931

आज़ादी के दीवाने
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जय हिन्द -वंदेमातरम

             हिंदुस्तान की आज़ादी के दीवाने ऐसे ही दीवाने नहीं हुए थे , इनके पीछे अंग्रेज़ो के ब्रिटिश शाशकों द्वारा हुए राजकीय दमन मुख्य आधारभूत कारण है | अंग्रेज़ो की नीति तय थी की जो भी आज़ादी की आवाज़ उठाए , उनकी आवाज़ जल्द से जल्द किसी भी तरह बंध की जाये ,मगर क्रांतिकलरीओकी इंकलाबी आवाज़ इतनी बुलंद थी की उन्हे अंग्रेज़ बंध नहीं कर शाके थे | चाहे आर्थिक तौर पर हो या शारीरिक | इन दोनों से हिंदुस्तान की आज़ादी के दीवाने ना तो आर्थिक वार से डरते थे, ना तो शारीरिक ज़ुल्म से डरते थे | हा , अंग्रेज़ जरूर डरते थे ! क्रांतिकारीओके रुआब ,क्रांतिकारिओका आज़ादी के लिए उभरा जज़्बा , क्रांतिकारिओकी निडर ताकत,क्रांतिकारिओकी मौत से भी नहीं डरने की शक्तिओ से अंग्रेज़ सरकार की निव हिल गई थी |

             आज़ादी की बुलंद आवाज़ के मालिक भगत सिंह और उनके सहयोगी मित्रो की असाधारन हिम्मत भरे क्रांतिकारी प्रवूतिओका सम्पूर्ण वर्णन करना अशक्य होगा,क्यो की 1928 के वर्ष मे लाहोर मे जिस घटनाओने भगत सिंह और उनके सहयोगी मित्रो को डेप्युटी पोलोस सुपरिन्टेंडेंट जे.पी.सांडर्स को मारना और 1929 के वर्ष मे दिल्ली मे सेंटरण एसेम्बली पर बॉम्ब डालने के लिए प्रेरित हुए ,उनका संक्षिप्त विवरण देनेका आशय है | 

            देश मे यह समय बहुत बड़ी अशांति का था, जब ज़्यादातर लोग ब्रिटिश शाशन के द्वारा होते राजकीय दमन और आर्थिक नुकशान से बचने के लिए जोरदार मांग कर रहे थे | भारतीय लोगो की भावनाओको समजकर उनकी भावनाओको संतुष्ट करनेके लिए ‘सर साइमन’ 1928 मे उनकी मंडली के साथ, देश की राजकीय परिस्थिति का परीक्षण करने के लिए भारत आए थे| परंतु इस सर साइमन कमीशन मे एक भी भारतीय को सदस्य के तौर पर लिया नहीं गया था | इस लिए गांधीजी ने इस कमीशन का बहिस्कार करने का आहवान किया | 

          लाला लजपत राय के नेतृत्व मे पंजाब ने आगेकुच की ,30 ओक्टोबर 1928 के दिन एक शांत सरघस लाहोर की गलिओमे निकला , जिसके नारे थे ; ‘साइमन वापस जाओ ‘ साइमन वापस जाओ’ ‘भारत भारतीयो के लिए है ‘ के जंडे लेकर सरघस  निकला | इस सरघस शांत आंदोलन की अगवाई -नेतृत्व लाला लजपत राय और भगत सिंह ने की थी | 

          डेप्युटी पोलिस सुप्री।स्कॉट और आसिस्टन पोलिस सुप्रि।सोंडर्स के हुकम से किसी भी प्रकार की चेतावनी या जानकारी दिये बिनाही मनस्वी प्रकार अपनाकर इन शांत आन्दोलंकारिओ पर अचानक बेरहमी से लाठीचार्ज शुरू कर दिया जिसमे लाला लजपत राय बहुत ही गंभीर रूप से घायल हुए थे , इस कृत्य को 15-16 दिन ही हुए थे और अंग्रेज़ो की लाठोके जख्मसे 17 नवंबर 1928 के दिन लाला लजपत राय का अवशान हो गया ,जीससे देशभर मे रोष पैदा हो गया ,भगत सिंह ने इस रास्ट्रीय अपमान का बदला लेने का प्रण अपने माथे पे ले लिया और ‘खून का बदला खून’का रास्ता अपनाने का सोच लिया | यहा आपको सूचित करदु  की जब भगत सिंह का जन्म हुआ तब लाला लजपत राय और भगत सिंह के चाचा अजित सिह बर्मा जेल मे एक ही कोठरी मे थे |अच्छे मित्र थे और देश मे आज़ादी के लिए क्रान्ति की शुरुआत करनेमे भी मुख्य योगदान रहा है |उनके दादा का भी उस समय कॉंग्रेस को खुल्लम खुल्ला सहयोग रहा |इससे यह प्रमाण मिलता है की भगत सिंह के पारवार मे पहले से ही एक रास्ट्रीय भावनाओकी धारा बेह रही थी | जिसकी वजह से ही भगत सिंह के खून मे बचपन से ही क्रांतिकारी विचारो ने जन्म ले लिया था | 

             17 डिसेम्बर 1928 के दिन भगत सिंह उनके दो आत्मीय सहयोगी राजगुरु और आज़ाद के साथ , पोलिस सुप्रि. स्कॉट की ओफीस पहोच गए ,पंजाब सेंट्रल सेक्रेटेरियम मे स्थित इस ऑफिस मे भगत सिंह और उंकर दोनों मित्र सहयोगी ने पूर्वनिईजित जगह लेली | थोड़ी देर के बाद एक अंग्रेज़ ऑफिस से बाहर आया ,भगत सिंह के एक सहयोगी जय गोपाल ने उनको स्कॉट मान लिया , हककीकत मे वो स्कॉट नहीं था ,आसि. पोलिस सुप्रि.जे.पी.सांडर्स था | जिस वक़्त सांडर्स ने अपनी मोटरसाइकल स्टार्ट की जब साम के 4.20 का समय था वो गेट के बाहर आया ,तब जय गोपाल के इशारे का इंतज़ार करते , इशारा मिलते ही राजगुरु ने सांडर्स पर गोली चलाई जो सांडर्स के गले मे लगी थी | सांडर्स गिर गया , तुरंत ही भगत सिंह उनके पास पहोच गए और चार से पाँच गोली उनके सर मे उतार दी ताकि काम पूरा हो जाए | और काम पूरा होते ही तीनों वहासे निकाल गए | पूरे देश ने सांडर्स की हत्या का आनंद मनाया ,कारण की ये कोई आतंकवादी हिंशात्मक कार्य नहीं था ,परंतु लाला लजपत राय के गौरव के समर्थन और उनके द्वारा समग्र देश के गौरव का समर्थन करने का कार्य था | 

          1929 मार्च मे ब्रिटिस सरकार ने बिना कारण टेर्ड उनियान के नेताओकी गिरफदारी की और स्वतन्त्रता सेनानिओको एक बड़ा जटका दिया |गिरफदारी मे प्रख्यात मजदूर नेता एस.ए. डांगे ,मुजफ्फर एहमद,एस. वी. घाटे और 29 और लोग थे | 

         सेंट्रल एसेम्बलिने पब्लिक सेफ़्टी बिल और ट्रेड डीस्प्युट्स बिलकी चर्चा कर शाके इस लिए 8 एप्रिल 1929 के दिन मिलनेका निर्णय किया | प्रेक्षक गण और प्रैस के प्रतिनिधिओकी भीड़ हॉल मे हाजिर थी ,प्रेक्षकगण की गेलेरी मे खाकी शर्ट और चड्डी मे भगत सिंह और बी. के . दत्त को किसिने बैठते हुए देखे नहीं थे | 

          ट्रेड डीस्प्युट्स बिल का मतदान पूर्ण हो गया , और प्रेसिडेंट ने बिल को स्वीकृत करने का ऐलान कर दिया | प्रेसिडेंट उनका यह बिल का सरक्युलर प्रमाणित करके जाहीर करे उनसे पहले वहा एक बड़ा बॉम्ब धमाका हुआ ,और चारो तरफ धुया निकालना शुरू हो गया | हॉल मे पूरा अंधेरा छा गया | महिलाओकी बेथक से बड़ी बड़ी चिसे निकालने लगी दरका माहोल छा गया ,चारो तरफ अंधाधुनी फेल गई | चारो तरफ धुया निकाल रहा था , इस हादसे की असर अभी शांत नहीं हुई की एक औए बड़ा धमाका हुआ ,चारो तरफ अफरातफरी छा गई , ज़ोर ज़ोर की आवाज़े आ रही थी कुछ लोग हॉल के बाहर निकाल ने एम सफल हुए कुछ वहा ही दर ही दर मे बैठे रहे की ये क्या हो रहा है | इतने एक और डरावनी घटना को अंजाम मिला , लोग यहा वहा दरके मारे भाग रहे थी और दो पिस्टल के गोलियो की आवाज़ सुनाई दी | हॉल मे जीतने प्रेक्षक थे पुतले बन के खड़े रेह गए | 

         एसेम्बली के धमाके के बाद भगत सिंह और बी.के.दत्त को यहासे भागने का आसान मौका था पर इस कार्य को करने के बाद भागना नहीं है यह पहले से ही तय था | दोनों निडर पराक्रमी क्रांतिकारी गिरफदारी के लिए खड़े थे , और  ‘इंकलाब ज़िन्दाबाद’ के क्रांतिकारी नारे लगाकर हाथ मे रहे पेंप्लेट हॉल मे उड़ाए हुए सामने से बड़ी हिम्मत के साथ ब्रिटिस पोलिस के हाथो गिरफदारी स्वीकृत करली | 

        समय बीतने के बाद क्रांतिकारिओका यह प्रयास ‘आत्मदाह’ के समान साबित हुआ | इनमे एक गहरा अर्थ छुपा था , देश और दुनिया के लिए एक संदेश छुपा था ,ब्रिटिस राज के दमन के अस्तित्व के विरुद्ध | असंतोष की अभिव्यक्ति थी ,दोनों क्रांतिकारिओको एकांत मे कड़ी सुरक्षा के बीच जेल मे रखे गये | 

        हिंदुस्तान प्रैस का एक अहेवाल था की अंग्रेज़ सरकार इस हादसे के बाद कोई जोखिम उठाना नहीं छाती थी | इस लिए आरोपिओको जेल मेही समन्स भेज दिया था | और कोर्ट की कार्यवाही के समय बड़ी सुरक्षा व्यवस्था बनाई गई थी | और यह डर होना ही चाहिए था क्यो की भगत सिंह खुद सामने थे और हमारे इस शेर से अच्छे अच्छे अंग्रेज़ो के पिछवाड़े गीले हो जाते थे , ये थे हमारे भगत सिंह आज यह लिखते समय 22 मार्च के दिन हमारे क्रांतिविरो के जीवन की आखरी रात थी | यह जानते हुए भी मौत का डर या कोई खौफ उनके चेहरे पे नहीं था , बस अफसोस था उनको , की उनको अभी तो देश के लिए बहुत सारे काम को अंजाम देना था | एक दोस्त थे उनके जो एक महीने पहले ही मुलाक़ात हुई थी उनको भगत सिंह ने लिखा था की मैंने अभी एक हज़ार मे से एक प्रतिसत काम भी नहीं किया है , अभी तो बहुत सारे काम देश को आज़ाद करने के लिए करने है ऐसा भगत सिंह मानते थे , 

         राजपुर रोड पर स्थित मेजिस्ट्रेट रेसिडेंसी से जेल तक के चारो तरफ के रास्तोपर लाठीधारी पोलिस और सीआईडी के लोग सामान्य पोशाक मे साइकल पर बैठ कर रास्तो पर नज़र रखते थे | जेल के बाहर का कंपाउंड भी कड़ी सुरक्षा मे था | ट्राफिक इंस्पेक्टर जॉन्सन तीन सार्जेंट के साथ जेल की गेट पर तैनात थे ,जब अदालत की अंदर की व्यवस्था आसि.पोलिस सुप्रि.अली ,डेपुटी पोलिस सुप्रि.आर. बी.मलीक ,और देवी दयाल ,और जेलर पंडित माधव के हाथ मे थी | अदालत मे प्रवेश करने से पहले सबकी पूरी तरह तलासी ली जाती थी , यहा तक की प्रैस प्रतिनिधिओ की भी तलासी ली जाती थी | 

पहला मुक़द्दमा

      दिल्ली के जानेमाने युवा वकील श्री असफ अली , बचाव पक्ष के लिए हाजिर थे | ताज का प्रतिनिधित्व लोकाभियोजक वकील आर.बी.सूर्यनारायन ने किया था| इस मुक़द्दमे के लिए ब्रिटिश न्यायाधिस एफ.बी.पुल थे ,वकीले और प्रैस के प्रतिनिधि के साथ यहा श्रीमति असफ अली, श्री किशन सिंह भगत सिंह के पिता ] भगत सिंह की माता ,अजित सिंह की पत्नी,और दो तालीमी मेजिस्ट्रेट सामील थे ,

         भगत सिंह और बी.के.दत्त को सुबह दस बजकर आठ मिनिट पर अदालत मे लाये गये , अदालत मे कदम रखते ही भगत सिंह ने शेर की दहाड़ मे इंकलाबी नारा पुकारा ‘ इंकलाब ज़िन्दाबाद ‘ बी.के.दत्त ने पुकारा ‘साम्राज्यवाद मुर्दाबाद’ इस गर्जनाने अदालत मे हंगामा मचा दिया , अदालत ने इस गर्जना को नोट भी किया , [और यहा कहने मे बड़ा गर्व होता है की अंग्रेज़ सरकार के न्यायाधीसों की भी पेंटे भगत सिंह और साथीओकी आवाज़ से गीली हो जाती थी] शेरो की इस दहाड़ से गभराके न्यायाधिस ने पोलिस को हुक्म किया की सभी आरोपिओको दोनों हाथो मे हथकड़ी के साथ अदालत मे पेश किया जाये | [यह डर था अपने शेरो का ] 

         रेपोर्टर प्रैस ने भी प्रमाण दिया था की | भगत सिंह और बी.के.दत्त दोनों अदालत की कार्यवाही के समय प्रसन्नचित थे | और पूरा दिन मंद मंद हस्ते रहते थे , अंग्रेज़ो को डर इतना था की लोहे की हथकड़ी दोनों हाथो और पैरो मे लगाने के बाद भी अदालत की विरुद्ध दिशा मे लोहे की सलाखों के पीछे एक लकड़े की बेंच पर बिठाये थी, जहा उनके पीछे एक जेल अधिकारी औए कुछ सीआईडी के लोग तैनात किए थे| 

          सरकारी प्रमाण पेश किए गये और नोटिंग होते गये ,टोटल 11 ग्यारह साक्षी थे [ जो सभी सरकारी लोग थे ] सभी की जुभानी हुई , इनमे एक भी स्वतंत्र साक्षी नहीं था |

        दोपहर के भोजन के लिए अदालत की कार्यवाही बर्खास्त की गई तब ,पोलिस अधिकारी समक्ष भगत सिंह को उनके परिवार के साथ मिलने दिये थे | भगत सिंह उनके पिता किशन सिंह को बारंबार ये कहते दिखे की सरकार उनको फांसी देने के लिए तत्पर है -कृतनिश्चई है | इस लिए आप हमारी चिंता ना करे | 

          दोपहर के भोजन के लिए अदालत बर्खास्त हुई तब भगत सिंह ने दैनिक न्यूज़ पेपर उनको पड़ने के लिए दिया जाये जो सभी राजकीय बंधिओको उस समय दिया जाता था जो मेरठ केश के दरम्यान यह किया गया था , तब अदालत ने यह अरजी के जवाब मे यह कहकर निकाल दिया की वो कोई भी पूर्वनिर्णयो को अपनानेके लिए बंधित नहीं है | 

        दूसरे दिन 8 मय 1929 के दिन अदालत फिरसे कड़ी व्यवस्था के साथ शुरू हुई , और भगत सिंह और दत्त को अदालत मे लोहेकी जंजीरों के साथ लाया गया तब भी भगत सिंह और दत्त ने इंकलाबी नारे शेर की दहाड़ के जैसे लगाए ‘इंकलाब ज़िन्दाबाद’ ब्रिटिश साम्राज्य मुर्दाबाद’ 

         सरकारी साक्षीओकी तपासी के बाद भगत सिंह और बी.के.दत्त को खुद का दिवेदन देने के लिए कहा गया | जिनका दोनों ने इंकार किया , चु की भगत सिंह ने खड़े होकर जवाब दिये थे जो इस तरह है | 

नाम : भागार सिंह 

व्यवसाय : कुछ भी नहीं 

रेसिडेंस : लाहोर 

महोल्ला : हम एक से दूसरी जगह घूमते रहते है | 

सवाल : 8 एप्रिल 19290के दिन तुम एसेम्बली मे मौजूद थी ? 

जवाब : जबतक यह केश का पीआरएसएचएन है ,इस समय निवेदन देना मे उचित नहीं समजता | अगर मौजे जरूरी लगा तो बाद मे मे निवेदन दूंगा | 

सवाल : कल तुम अदालत मे आए और आज भी फिरसे ‘इंकलाब ज़िन्दाबाद’ के नारे लगाए , इनका अर्थ तुम क्या करते हो?

            वकील असफ अली ने इस प्रश्न पर प्र्श्नार्थ किया और अदालत ने समर्थन किया | इसी तरह दोनों ने प्रश्नो के जवाब दिये ,परंतु निवेदन देने का इंकार किया | उनके बाद अदालत ने बचाव पक्षके वकील असफ अली को सुना ,उन्होने कुशलता पूर्वक 40 मिनिट के भाषण मे अपनी दलीले पेश की थी | 

            भगत सिंह और दत्त को फिरसे अदालत ने पूछा की तुम अपना निवेदन देना चाहते हो ? तब दोने ने वही कहा की उनपर निर्णय बाद मे लेंगे | इसके बाद ये मुक़द्दमा सेसन्स कोर्ट के हवाले किया गया | 

        1929 ना जून के पहले वीक मे सेसन्स कोर्ट मे मुक़द्दमा शुरू किया गया , ताज तरफ़से मुक़द्दमा चलते हुए सरकारी वकील ने कुछ और साक्षी पेश किए |

       बचाव पक्ष के वकील की दलील सुनने के बाद ,अदलत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 307 के तहेत ,हत्या करनेका प्रयत्न और स्फोटक पदार्थ काड़ा की धारा 3 के तहेत दोनों आरोपीओके विरुद्ध उन्होने एसेम्बली मे लोगो को मारना और घाव पहोचाने के लिए बॉम्ब फेका गया था ,ऐसा आरोपनामाँ दाखिल किया | 

         सरकार की तरफ से दिये गए साक्षी -आधार सबूत पूरे होने एक बाद भगत सिंह को लगा की अब अपना दिवेदन देने का वक़्त आ गया है | उन्होने अपना निवेदन खुद के हाथो से ही लिखा था | वो ऐतिहासिक निवेदन भगत सिंह और दत्त का प्रतिनिधितत्व करते वकील श्री असफ अली ने 6 जून 1929 के दिन अदालत मे पढ़कर पेश किया था| यह निवेदन एक गौरव से भरा अध्याय समान है | भारत के क्रांतिकारी विचारो के इतिहास मे और क्रांतिकारी -मार्क्सवादी सिद्धांतो के आधार पर रचा हुआ एक उतम दस्तावेज़ है | यह दिवेदन इतना हृदयस्पर्शी था की चार मे से तीन मूल्यांकारों मे से तीन की आखे नम होटी हुई रोक नहीं शके थे | 

        भगत सिंह का ऐतिहासिक निवेदन 6 जून 1929 

            ” हम यहा कुछ गंभीर आरोपो के लिए खड़े है , और इस समय हम हमारे बर्ताव के लिए खुलासा दे वही बराबर है | इस संदर्भ मे नीचे दिये गए प्रश्न उपस्थित होते है | 

“क्या बॉम्ब चेम्बर मे फेंके गए थे ? और अगर फेंके गए तो क्यू फेंके गए थे ? नीचे की अदालत ने जो आक्षेप -आरोप रखा है वो बराबर -ठीक है की नहीं ? 

“पहले प्रश्न के पूर्वार्ध के लिए हमारा जवाब हकारात्मक है ,परंतु बहुत से साक्षी जो सिर्फ कहने के साक्षी है ‘ खुद की द्राशती से देखने वाले साक्षीओने जूठी साक्षी – गवाही दी है | और हम एक हद तक हमारी ज़िम्मेदारी को अस्वीकृत नहीं करते है इस लिए , उनके संदर्भ मे हमारे निवेदन का फेसला उनकी खुद की निहित किम्मत पर करना रहा | [for exam] अमे सार्जंट टेरी ना प्रमाण की और ध्यान केन्द्रित करते हुए की उन्होने हम मे से किसी एक के पास से पिस्टल जप्त की है वो हेतु पूर्वक का जूथ है | क्यू की जब हमने आत्मसमर्पण किया तब हम दोनों मे से किसी के पास पिस्टल नहीं थी | दूसरे साक्षी जिनहोने कहा है की हमने उनको बॉम्ब फेंकते हुए देखा है | वो जूथ बोलते हुए थोड़ा भी रुकते नहीं है | जिनका लक्ष्य न्याय की पवित्रता और निष्पक्षता है ,उनके लिए हकीकत मे ,एक नैतिक बोध छुपा हुआ है | 

        ” यह बॉम्ब , इंगलेंड को उनके सपनोमे से जागृत करनेके लिए जरूरी था | हमारे खातिर ,और जिनके पास ,खुद की हृदयविदारक तीव्र पीड़ा को व्यक्त करनेके लिए और कोई रास्ता बाकी नहीं था | उन लोगो के खातिर हमने यह बॉम्ब एसेम्बली की चेम्बर की जमीन पर ,हमारा विरोद्ध दर्ज कराने के लिए फेंका था | बेहरे सुन शके और बेदरकार और उपेक्षा करने वाले समयसर एलर्ट हो जाये ,वही एक मात्र हमारा उदेश था | हमारी तरह दूसरों ने भी उत्कटता का अनुभव किया है | भारतीय मानवसामुद्र की ये भ्रामक शांत निश्छलता मे से एक हकीकत का तूफान फटेगा | हमने तो मात्र ‘संकट’की चेतावनी का बोर्ड उन लोगो के लिए खड़ा किया है | जो बेदरकारीसे ज्यादा गंभीर जोखिम की और बड़ी स्पीड से जा रहे है ,हमने मात्र एक अहिंसक काल्पनिक रामराजय के युग का अंत ला दिया है ,जिनकी निरर्थता के विषय मे आजकी उदय होती हुई पीढ़ी को जरा भी शंका नहीं है” |   

      ” बल अगर योग्य उदेश की प्रगति के लिए उपयोग होता है तो ,उनमे उनका नैतिक समर्थन है | बल को किसी भी किम्मत मे दूर रखना ,नाबूद करना ,वो तो काल्पनिक आदर्श है | जो नए आंदोलन का देश मे उदय हो रहा है और उनकी चिंगारी प्रगट होने की हमने चेतावनी दी है , उनकी पप्रेणना का प्रचार गुरु गोविंद सिंह,और शिवाजी ,कमाल पाशा,और रेज़ा खान,वॉशिंगटन,और गेरीबाल्डी ,लाफायेत ,और लेनिन केआर आदर्शो ने किया है | 

        ” जो लोग थोड़े ज़ख्मी हुए उनकी तरफ या एसेम्बली मे मौजूद किसी भी व्यक्ति से हमे रोष,राग,द्वेष,की बेर नहीं है ,उनसे उल्टा ,फिरसे कहते है की मानवजीवन को हम इतना पवित्र मानते है की की उनके लिए हमारे पास शब्द नहीं है | और किसी के भी प्राण लेने से अच्छा ,मानवजाति की सेवा के लिए हम हमारे प्राण देने के लिए तत्पर है / तैयार है “

          ” यह एक सार्थक पद्धति थी जिनके द्वारा अपने समय के महान सामाजिक प्रश्नोने – ज़्यादातर लोग जो मजदूर वर्कर और खेती काम करने वाले है ,उनको राजकीय और आर्थिक स्वतन्त्रता देने की समस्याओका निराकरण कर शके” | 

“इंकलाब ज़िन्दाबाद”

               मुक़द्दमे की कार्यवाही का अंत 10 जून 1929 के दिन आया था ,और फ़ैसला 12 जून 1929 को सुनाया गया था | फ़ैसला सुनाने वाले न्यायाधीश ने आक्षेप किया : 

             आरोपीओ एसेम्बली चेम्बर मे बॉम्ब फेंकने का स्वीकार करते है | दोनों पिस्टल चलनेका अथवा उनके पास से पिस्टल जप्त की गई है उन आरोपो का इन्कार करते है | उनका कहना है की पिस्टल किसी दुसरेने चलाई थी ,जिनका नाम वो देते नहीं है | 

        ” उनका कहना है की सरकार का पिस्टल जप्त करनेका प्रमाण गलत है और बॉम्ब फेंकेने के कई प्रमाण भी गलत है |       ” वो स्वीकार करते है की मानव जीवन को वो पवित्र समजते है और कहते है की उन्होने विरोद्ध दर्शानेके लिए और चेतावनी देनेके लिए बॉम्ब फेंका था | ज़ख्मी हुए किसी भी व्यक्ति के साथ उनको रोष,द्वेषभाव,या दुश्मनी नहीं थी ; बॉम्ब द्वारा हुए नुकसान को वो साधारण कहते हैऔर मानते है की उनका कोई गंभीर नुकसान का परिणाम आए ,ऐसा उनका उदेश नहीं था |

         ” जस्टिश  एफ.बी.पुल का जजमेंट”

             आरोपिओने कहा की वो मानवजीवन को ‘पवित्र’मानते है | उनके कर्मो द्वारा उनका कथन नकारा गया है |  उनका कारी उचित गिन शके ,और न्यायसंगत है ऐसा दर्शानेका उनकी कोशिश सतत रही है | ऐसी कोशिशों के साथ उनके कृत्य ऐसे मनुस्य के है जो क्षणिक गुस्से मे आकर इस गुनाहीत कृत्य मे नहीं आए है , परंतु जो इरादा पूर्वक कोई गुनाह करता है | ऐसे नज़रिये के साथ तो ऐसा भी हो शकता है की जो उन्होने एक बार किया वो दूसरी बार भी कर शकते है | भविष्य मे फिरसे ना हो इस द्रष्टि से उनका यह अपराध शख्त से शख्त सजा के गुनहगार है | 

           ” आरोपिओके कृत्य ऐसे थे की वो जाहेरट मांगते थे | एक गुनाहीत मन को ये नकल योग्य भी लगे | प्रतिबंधक के द्रष्टिकोण से ये अपराध शख्त से शख्त सजा के पात्र है | आरोपी युवा है ,परंतु उनके काम इरादा पूर्वक के थे और इस जटिल कृत्य के लिए उन्होने पूर्व तैयारी की थी | ऐसी परिस्थिति मे ये युवानोको अपूर्ण सजा की और नहीं जाने देना चाहिए | मे भगत सिंह और बी.के.दत्त को आजीवन देशनिकाला की सजा सुनाता हु | “

           कोई अपील करनेका इनका इरादा नहीं था , क्यू की जानते थे की सब निरर्थक है | परंतु खुद के कार्यक्रमोकी ज्यादा से ज्यादा जाहेरात [पब्लिसिटी] हो और उनके द्वारा जनता जागृत हो ,इस द्रष्टि से हाईकोर्ट का उपयोग करना यह सोचकर ,भगत सिंह और  बी.के.दत्त ने अपील दाखिल की | अपील जस्टिश फोर्ड और जस्टिश एडिसन ने सुनी ,ढाई दिन तक वकील असफ अली ने दलीले की ,तीसरे दिन बाकी के भाग मे सरकारी वकीलोने जवाब दिये ,असफ अली के निवेदन के मुताबित बिचमे भगत सिंह ने खुदने खुद के लिए दलील पेश की थी , पूर्ण ज्ञान था इस लिए 13 जान्यूआरी 1930 के दिन हाईकोर्ट ने अपील खारिज करदी ,और सेशन्स कोर्ट के फैसले का समर्थन किया | 

        दूसरा मुक़द्दमा    

[लाहोर मे सांडर्स की हत्या का मुक़द्दमा ]ये मुक़द्दमा भी जेल मे ही चलाया गया ,10जुलाई 1929 के दिन यह शुरु हुआ ,यह किस्से मे 27 लोग सामील थी | इस 27 लोगो मे 6 लोग पकद्मे नहीं थे जिनका काही भी पता नहीं मिलता था | इनमे से तीनको विविध धाराओके तहेत छोड़ दिया गया था| फनींद्रनाथ घोष और भगत सिंह सहित बाकी के लोगो पर मुक़द्दमा चलाया गया था | 

        शम सरनदास ,ब्रह्म दत्त,जय गोपाल,मनमोहन बेनर्जी ,हंसराज वोहरा ,और ललित कुमार मुखर्जी, सरकारी साक्षी-गवाह बन गए थे | पहेले दो विश्वास पात्र साबित नहीं हुए इस लिए सरकारी मुक़द्दमा बाकी रहे हुए साक्षीओके प्रमाण पर आधारित था | 

       इस मुक़द्दमे के सभी आरोपी युवा थे ,उनको पता था की क्या होनेवाला है | इस लिए उन्होने इस किस्से को गंभीरतासे नहीं लेनेका निर्णय किया था ,और इस लिए इनहोने बेपरवाही का नज़रिया अपनाया था | अदालत और उनकी कार्यवाही को नज़रअंदाज़ करने के कई चाल इन लोगोने विचारे थी, उनमे से एक थी भगत सिंह की क्रांतिकारी गीत गानेकी | कार्यवाही के दरम्यान साथीओके साथ नारे लगाना ताकि अदालती कार्यवाही मे विक्षेप आए विघ्न आते रहे | 

       पंजाब सरकार ने भारत सरकार का संपर्क किया 1 माय , 1930के दिन भारत सरकार ने एक हुकम नंबर .111 जारी किया ,ये हुकमने एक खास ट्रिब्यूनल को सोपा ,इस ट्रिब्यूनल को हेतु पूर्वक किए हुए अवरोधो के लिए फ़ैसला लेनेका खास अधिकार दिया था | ‘ ध गेजेट ऑफ इंडिया एक्स्ट्रा ओर्डिनेरी ,जिनकी तारीख , सिमला 1 मय 1930 थी | 1930का ये हुकम नंबर.111 प्रकाशित किया गया | इस हुकम का नाम लाहोर षड्यंत्र का मुक़द्दमा’ था | 

        ट्रिब्यूनल की नियुक्ति ,उनको दी गई हुकूमत और दिये हुए अधिकार , सभी फोजदारी न्याय के स्थापित सिद्धांतो की बिलकुल विरुद्ध था | यह एक असाधारण कार्यवाही थी ,और इनका परिणाम वो पूर्वज्ञात निष्कर्ष था | 

      लाहोर षड्यंत्र का मुक़द्दमा लाहोर के पुंछ हाउस मे चलाया गया था , और खास ट्रिब्यूनल की कार्यवाही 5 मय 1930 के दिन शुरू हुई जिनमे जस्टिस श्री जे. कोल्डस्ट्रीम प्रेसिडेंट थे और जस्टिस श्री आगा हैदर और जस्टिस श्री जी.सी.हिल्टन उनके सदस्य थे | 

       जिन क्रांतिकारिओ पर मुक़द्दमा चलाना था वो सुबह दस बजकर दो मिनिट पर अदालत मे आए | कायदेसर कार्यवाही सुबह ग्यारह बजे शुरू हुई | समकालीन अहेवाल के प्रमाण से क्रांतिकारिओने थोड़ा वक़्त क्रांतिकारी नारे बाज़ी की थी ,और बराबर आठ मिनिट तक सभिने एक साथ क्रांतिकारी मंत्रोका पाठ किया | 

          जिस तरह पहले दिल्ली मे , एसेम्बली बॉम्ब मुक़द्दमे मे किया इस तरह यहा भी भगत सिंह ने खुद के बचाव के लिए कानूनी मदद-सलाह लेने से इंकार कर दिया ,कारण की वो द्रढता से मानते थे की यह मुक़द्दमा एक फारस है , गलत है [froud hai] परंतु मित्रो और परिवार के दबाव से एक कानूनी सलाहकार के लिए सम्मति दी थी | जो ट्रिब्यूनल की कार्यवाही पर नज़र रख शके| अदालत ने उनको स्पएसएचटी कर दिया की यह सलाहकार साक्षीओकी उलटतपास [क्रॉस इन्क्वायरी] नहीं करे गे और अदालत को संबोधित भी नहीं करेंगे | श्री दूनी चंदने कानूनी सलाहकार की तौर पर नियुक्त करने एक लिए वो सम्मत हो गए | 

         मुक़द्दमे के दरम्यान भगत सिंह ने कोई बचाव नहीं किया ,उनके लिए मुक़द्दमा एक मंच था , जहासे वो क्रांतिकारी विचारो का प्रचार कर शके ,वो कोई उनका जीवन बचाने का अवसर नहीं था ,20 सप्टेंबर 1930 के दिन जब यह स्पष्ट होने लगा की भगत सिंह को मृत्युदंड दिया जाएगा | तो उनके पिता श्री किशन सिंह ने पितृप्रेम की भावनाओमे आकार फांसी से बचाने ने के लिए प्रयत्न किया | उन्होने एक अरजी ट्रिब्यूनल को प्रस्तुत की और उनकी एक नकल भारत न वाइसरोय को भेजी, और परवानगी मांगी की वो ऐसा प्रमाण पढे जो साबित करे की सांडर्स की हत्या के दिन भगत सिंह लाहोर मे नहीं थे | वो उनकी गुनाह के स्थल पर गेरमौजूदगी स्थापित करना चाहते थे | जब भगत सिंह को इस बात का पता चला तब वो गुस्से मे आ गए थे ,की ऐसा बचाव तो वो सुनना ही नहीं चाहते थे | उन्होने पिता को लिखा : 

           भगत सिंह का पिता को पत्र |

            ” मेरे बचाव के संदर्भ मे ,आपने ट्रिब्यूनल के सदस्यो को एक अरजी-दरख्वास्त लिखी है | जिनकी जानकारी से मे दाङ रेह गया हु | यह खबर ऐसा बड़ा आघात है की स्वस्थतासे सेह नहीं शकता | उस पत्र ने मेरे मन की समतुलना अस्थव्यस्त कर दी है | मेरी समाज मे यह नहीं आ रहा की आपने इस मौके पर इस परिस्थिति मे ,अरजी देनेके के विचार को उचित ही क्यो मान लिया ? पिता की संवेदना और भावनाये होने के बाद भी , मे नहीं मानता की आपको यह कदम भरनेका अधिकार है  और वो भी मौजे पुछे बिना | आप जानते है की राजकीय क्षेत्र मे मेरे विचार आपके विचार से जुदा है | आपको पसंद है या ना पसंद है उनकी परवाह किए बिना ,मैंने हममेशा स्वतंत्रतासे काम किया है | “

          मृत्युदंड के सामने ऐसा था उनका द्रढ़ विश्वास और ऐसी थी उनकी हिम्मत और रास्ट्रभक्ति ,सबको पता था ऐसे ,भगत सिंह और उनके साथीओको अदालत ने दोषी माना है | 

         इस मुक़द्दमे मे साक्षीओने भगत सिंह के विरुद्ध प्रमाण दिया था, जिनमे उनके दो साथी जो हत्या मे उनके साथ सामील थे , कमबक्त -हरामि -क्रांतिकारिओके साथ रहकर नामर्द साबित हुए 1-जय गोपाल , 2- हंसराज , और स्कॉट की जब हत्या हुई तब भगत सिंह ने लिखे हुए पोस्टर जो अदालत मे साबित हुए थे की भगत सिंह के हस्ताक्षर से ही लिखे गए है | भगत सिंह को सजा,भारतीय दंडसंहिता की धारा 121,302,के तहेत और भारतीय द्नंडसंहिता की धारा 120[बी] के साथ पढ़कर उनके तहेत मृत्युदंड  की सजा सुनाई दी थी | 

        इस मुक़द्दमे का फ़ैसला 7 अक्तूम्बर 1930 के दिन सुनाया गया था | “हेतुपूर्वक की हुई हत्या के संदर्भ मे जिसमे षड्यंत्र की अगवानी प्रमुख सदस्य के तौर पर हिस्सा लिया था उनको, मृत्यु हो जाये ताबतक गले मे फांसी देने की सजा सुनाई गई| 

          भगत सिंह कितरह उनके सहयोगी ‘सुखदेव और राजगुरु को भी मृत्युदंड की सजा सुनाई गई | बाकी साभिकों आजीवन देशनिकाला की सजा सुनाई गई | कुंदनलाल को सात साल की सजा ,और प्रेम दत्त को पाँच साल की सजा हुई ,अजोय घोष ,जे. एन .सन्याल और हेमराज को निर्दोष करार दिया गया | जो फरार हुए थे उनमे से भगवती चरण का एक बॉम्ब विशफोट मे अकस्मात हुआ और चन्द्र शेखर आज़ाद ,फरवरी 1931 मे अल्लाहाबाद के आज़ाद पार्क मे पोलिस के साथ की लड़ाई मे उनकी पिस्टल मे बची आखरी गोली से खुद को ही मार दिया , मगर अंग्रेज़ो के हाथ नहीं मरे | 

        मृत्युदंड के बाद जाहीर कार्यकर्ताओकी एक बचाव काउंसिल ने प्रीति काउंसिल मे एक अरजी दाखिल की जिसमे खास ट्रिब्यूनल को नियुक्त करनेका जो हुकम था उनको ललकारा गया ,पर 10 फरवरी 1931 को इस अरजी को खारिज कर दिया था | इस कदम को पीछे नहीं हटाकर 14 फरवरी 1931 को श्री पंडित मदन मोहन मालविया , ने वाइसरोय को एक आओइल प्रस्तुत की जिसमे मानवीयता के आधार पर मृत्युदंड की सजा को हटाकर उनको आजीवन देशनिकाला की सजा उनके विशेष अधिकार के तौर पर की जाये , 16 फरवरी ,1931 के दिन मेसर्स जीवनलाल ,बलजीत और श्यामलाल ने हाईकोर्ट मे बंदी प्रत्यक्षीकरण का आज्ञापत्र दाखिल किया जिसमे उनको रोकनेका और मृत्युदंड का अमल करनेसे कायदाकीय तौर पर सामना किया था , इनका आधार था की मृत्युदंड की जो तारीख [अक्तूम्बर ,1931 मे कही] थी , वो निकलगाई थी और ट्रिब्यूनल अब अस्तित्व मे भी नहीं थी , परंतु वो कोशिश भी नाकाम रही और आज्ञापत्र को खारिज किया गया | 

       इस मुक़द्दमेने देशभर मे खलबली मचादी थी,चिंगारिकी ज्वाला फट चुकी थी , इस वक़्त थोडा प्रोत्साहन मिला की स्वतन्त्रता सेनानिओकी एकता जुडनेमे राहत -प्रोत्साहन मिला | 

       सरकार ने निर्णय लिया की फांसी 23 मार्च 19314 के दिन दी जायेगी ,जिनसे यह निर्णय की जानकारी केंद्र सरकारने ,पंजाब सरकार की औरसे टेलीग्राम द्वारा की गई थी | 

           ” भगत सिंह ,राजगुरु,और सुखदेव को मार्च 23 के दिन शाम 7 बजे फांसी दी जाएगी | यह समाचार की जानकारी  लाहोर मे 24 मार्च को सुबह दी जाएगी | 

          इस तरह ” जाहीर जनता को खबर दी जाती है की भगत सिंह, राजगुरु,और सुखदेव को 23 मार्च शाम 7 बजे फांसी दी गई है । उनके सबों को जेल से निकाल कर सतलज नदी के किनारे ले जाकर वहा उनको शिख और हिन्दू धर्म के अनुसार धार्मिक विधि अनुसार अग्निदाह देकर उनकी अस्थिओको नदी मे बहाई गई है | ” 

      ग्रेट ब्रिटन माँ लेबर सरकार सता पर थी तब न्यूयोर्क के ” ध डेली वर्करे ” इस घटना का प्रमाण दिया था | 

              दोस्तो आपको यह जानकारी भी देदु की भगत सिंह को फांसी के हुकम से एक दिन पहले ही भारतीय लोगो की जानकारी के बाहर चुपचाप रातको जेलमे ही फांसी दे दी गई थी और रात कोही एक वेन मे लेजाकर सतलज के किनारे अग्निदाह दे दिया गया था इस घटना का प्रमाण भी बहुत सारी ऐतिहासिक किताबों मे मिलता है , और कुछ जानकार लेखको के लेख मे भी प्रमाण मिलता है जो हम खाश भगत सिंह के जीवन पर क्रांतिकारी शृंखला का ” सत्यनामा” लेकर आएंगे तब स्पस्टिकरण के साथ पुख्ता प्रमाण के साथ ‘सत्य की शोध ‘ मे लेकर आएंगे |

          शहीद भगत सिंह और उनके साथी मित्र सहयोगीओ को सत सत नमन , दंडवत प्रणाम | भारत के ऐसे वीर नौजावनों के बलिदान से आज हम और आप पूरा भारत आज़ादी का जशन मनाते है , जिनकी बदौलत हम आज़ाद है , जिनहोने आज़ादी के सपने सजाये थे , शारीरिक मानसिक कष्ट उठाई थी , भगत सिंह 116 दिन तक अनसन याने अन्न का त्याग करके उपवास आंदोलन किए थे , आज शहीद भगत सिंह,राजगुरु,और सुखदेव जी को याद करके उनका भारत के प्रति रास्ट्रप्रेम आज़ादी के प्रति जीवन को देश के लिए समर्पित करने की भावनाओको देखकर ,पड़कर यह लिखते समय आखे नम हो गई है | 

            जय हो शहीद भगत सिंह , जय हो शहीद राजगुरु , जय हो शहीद सुखदेव | 

जय हिन्द , वन्देमातरम |    

      नरेंद्र वाला 

[ विक्की राणा ]

  ‘  सत्य की शोध’

satya ki shodh

              
                                                                 

    

 

              

 

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47kfzyxinf y07m2b8s5a

शिव + शिवा = विवाह , शिव और शिवा एक ही है ? शिव ही शिवा है ? shiv ki dharmpatni shiva

narendra vala

2 comments

Dee March 25, 2024 at 12:16 AM

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47kfzyxinf y07m2b8s5a March 31, 2024 at 2:40 PM

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