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निर्वस्त्र नदीसे बाहर आनेके लिए श्रीकृष्ण ने गोपियो को क्यो कहा ?| वृन्दावन की गोपीओका ‘गोपीनामा’? |

श्रीकृष्ण ने गोपीओके वस्त्र क्यो चुराये थे ?
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नमस्कार , 

श्री कृष्ण लीला वृन्दावन 

        वृंदावन की कुमारिया तो पहले से ही कृष्ण के सौंदर्य के प्रति आकृष्ट थी| वे हेमंत ऋतु [शीत ऋतु के पूर्व] के प्रारंभ में देवी दुर्गा का पूजन किया करती थी|  हेमंत का पहला मास अग्रहायण [अक्तूम्बर -नवंबर] है और इस मास में वृंदावन की सारी कुमारी गोपिया है व्रत रखकर देवी दुर्गा की पूजा करने लगी|  वैदिक सभ्यता के अनुसार 10 से 14 वर्ष तक की कुमारीओ को अच्छे पति की प्राप्ति के लिए या तो शिव की या फिर देवी दुर्गा की पूजा करनी होती है|  सर्वप्रथम उन्होंने [हविष्यान्न ] ग्रहण किया, जिसे मूंग की दाल तथा चावल में कोई मसाला या हल्दी डाले बिना उबालकर तैयार किया जाता है| वैदिक आदेश के अनुसार कोई भी अनुष्ठान करने के पूर्व शरीर को शुद्ध करने के लिए ऐसे भोजन की संस्तुति की जाती है| वृंदावन की सारी कुमारी गोपिया यमुना नदी में नित्य प्रातः स्नान करके देवी कात्यायनी की पूजा करती थी| का क्या देवी दुर्गा| इस देवी की पूजा जमुना की बालू से प्रतिमा बनाकर की जाती है| वैदिक शास्त्रों में संस्तुति की गई है कि  पर्चा विग्रह की रचना विभिन्न प्रकार के  पदार्थों से की जा सकती है| इसे रंगा जा सकता है, इसे धातु, रत्ना, का, मिट्टी या पत्थर से बनाया जा सकता है या फिर पूजने वाला अपने हृदय के भीतर उसका चिंतन कर सकता है| मायावादी  चिंतकों के अनुसार यह सारे अर्चाविग्रह काल्पनिक है,  किंतु वैदिक साहित्य में इन्हें वास्तव में परमेश्वर या विभिन्न देवताओं के समरूप माना जाता है|

श्रीकृष्ण लीला

         सारी कुमारी गोपियां देवी दुर्गा का अर्चना विग्रह तैयार करके चंदन लेप, माला, धूप, दीप तथा फल,अन्न तथा  पौधों की शाखाओं जैसी भेटे चढ़ाकर पूजा करती थी| पूजा के बाद वरदान मांगने की प्रथा है| यह कुमारी काय देवी कात्यायनी की पूजा अत्यंत भक्ति पूर्वक करती और उन्हें इस प्रकार संबोधित करती’ हे भगवान की परम बहिरंगा शक्ति! हे परम योग शक्ति! हे जगत की परम नियंता! हे देवी! आप हम पर दयालु हो और नंद महाराज के पुत्र कृष्ण से हमारा विवाह कराने की व्यवस्था करें ! सामान्यतः वैष्णव जन किसी देवताओं को नहीं पूछते| श्रील नरोत्तम दास ठाकुर में उन लोगों को,  जो विशुद्ध भक्ति में अग्रसर होना चाहते हैं,  देवताओं की पूजा करने से नितांत मना किया है| फिर भी गोपिया, जिनका कृष्ण प्रेम अद्वितीय है| दुर्गा की पूजा करती थी देवताओं की पूजा करने वाले कभी कभी उल्लेख करते हैं कि गोपिया भी देवी दुर्गा की पूजा करती थी, किंतु हमें गोपियों का मंतव्य समझना चाहिए| सामान्य रूप से लोग किसी भौतिक वरदान के लिए देवी दुर्गा की पूजा करते हैं, किंतु यहां तो गोपियां देवी से भगवान कृष्ण की पत्नियां बनने का वरदान मांगती थी| कह कि यदि हमारे कर्म का केंद्र बिंदु कृष्ण हो, तो अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए वक्त किसी भी साधन को अपना सकता है|  गोपियां कृष्ण की सेवा करने या उन्हें प्रसन्न करने के लिए कोई भी साधन अपना सकती थी| यह  गोपियों की सर्वोत्कृष्ट विशेषता थी|  उन्हें कुशल को पति रूप में प्राप्त करने के लिए पूरे एक मास तक देवी दुर्गा की पूजा की|  वे प्रतिदिन नंद महाराज के पुत्र कृष्ण को अपना पति बनाने के लिए प्रार्थना करती|

        यह गोपिया बड़े सवेरे यमुना के तट पर स्नान करने जाती|  वहां एकत्र होती और एक दूसरे का हाथ पकड़कर कृष्ण की अद्भुत लीलाओं का उच्च स्वर में गान करती| भारत की यूट्यूब तथा स्त्रियों में यह पुरानी प्रथा है कि जब वे नदी में स्नान करती है, तो वे अपने सारे वस्त्र किनारे पर रख देती है और तब पूर्णतया नग्न होकर जल में डुबकी लगाती है|  अतः नदी के जिस भाग में व स्नान करती है वहां पुरुषों के आने पर कड़ा प्रतिबंध रहता है और यह प्रथा आज तक चालू है| भगवान कृष्ण कुमारी तरुण गोपियों के मन की बात जानते थे, अतः उन्होंने उनकी मनोकामना पूरी की| उन्होंने कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने की प्रार्थना की थी और कृष्ण उनकी इस मनोकामना को पूरा करना चाहते थे|

       महीना पूरा होने पर कृष्णा अपने साथियों सहित वहां पर प्रगट हुए| कृष्ण का दूसरा नाम योगेश्वर है| ध्यान का अभ्यास करके योगी अन्य पुरुषों की मानसिक स्थिति का पता लगा सकता है, अतः कृष्ण गोपियों की मनोकामना को निश्चित रूप से जान गए|  वह वहां प्रकट हुए और तुरंत गोपियों के समस्त वस्त्र उठाकर पास के वृक्ष पर चढ़ गए और मुस्कुराते हुए उनसे बोले: हे  युवतीओ!  तुम एक-एक करके यहां आओ और मुझसे प्रार्थना करके अपने अपने वस्त्र ले जाओ| मैं तुम लोगों से कोई हंसी नहीं कर रहा| मैं तुमसे सच सच कह रहा हूं| तुम लोगों से हंसी करने का मेरा कोई इरादा नहीं है, क्योंकि तुम देवी कात्यायनी की पूजा करते हुए एक मास तक अनुष्ठान कर के थक गई हो| हां, तुम सब एक साथ यहां मत आओ, तो अकेले अकेले आओ, मैं तुम में से प्रत्येक को तुम्हारे पूर्ण सौंदर्य के साथ देखना चाहता हूं, क्योंकि तुम सभी क्षीण  कटी वाली हो| मैंने तुम सबो से एक-एक करके आने के लिए कहा है, अतः मेरी आज्ञा का पालन करो|

श्री कृष्ण रास लीला

       जब जल के भीतर स्थित  कुमारी का ओने कृष्ण के ऐसे परिहास भरे शब्द सुने,  तो वे एक दूसरे की ओर देख देख कर हंसने लगी| वे कृष्ण के इस निवेदन को सुनकर परम प्रसन्न हुई, क्योंकि वह पहले से उन्हें प्रेम करती थी| वह लज्जा बस एक दूसरे की ओर देखती रही, किंतु जल से निकलकर बाहर ना आई,  क्योंकि वह नग्न थी| उन्हें अधिक काल तक जेल के भीतर रहने से ठंड सताने लगी जिससे वे थरथरा ने लगी | फिर भी गोविंद के मोहक तथा परिहास पूर्ण वचन सुनकर उनके मन परम प्रसन्नता से अशांत होने लगे| विनंती से कहने लगी’, है! नंदलाल! हमसे इस प्रकार की हंसी न करो| यह हमारे साथ घोर अन्याय है| तुम नंद महाराज के पुत्र होने के कारण अत्यंत प्रतिष्ठित हो और हमें अत्यंत प्रिय हो, कि तुम को इस, क्योंकि हम ठंडे जल के कारण ठिठुर रही है|  कृपा करके हमें तुरंत हमारे वस्त्र दे दो, अन्यथा हमें कष्ट होगा| वह पुनः कृष्ण से अत्यंत विनीत भाव से कहने लगी’ हे श्यामसुंदर! हम तुम्हारी शाश्वत दासी है| तुम हमें जो भी आज्ञा दोगे उसे हम बिना हिचक के करने के लिए बाध्य है, क्योंकि हम उसे अपना पुनीत कर्तव्य समझती है| किंतु यदि तुम हमारे समक्ष ऐसा प्रस्ताव रखोगे, जिस असंभव, तो यह समझ लो कि हमें नंद महाराज से तुम्हारी शिकायत करनी पड़ेगी| यदि नंद महाराज उस पर कोई कार्यवाही नहीं करेंगे, तो राजा कंस को कहेंगे|

         गोपियों की यह विनती सुन कर कृष्णा ने कहा,  हे बालिकाओं! यदि तुम अपने को मेरी शाश्वत सेविका यह मानती हो और मेरी आज्ञा का पालन करने के लिए सदैव तैयार रहती हो, तो मेरी यह विनती है कि तुम प्रसन्न मुख एक-एक करके यहां आओ और अपने अपने वस्त्र ले जाओ| यदि तुम नहीं आती और मेरे पिता से शिकायत करोगी, तो मैं कोई परवाह नहीं करूंगा, क्योंकि मैं जानता हूं कि मेरे प्रथम युद्ध है और मेरे विरुद्ध कुछ भी नहीं कर सकते|

           जब गोपियों ने देखा कि कृष्णा दृढ़ संकल्प है, तो उनके पास आज्ञा पालन के अतिरिक्त अन्य कोई चारा न था| वे एक-एक करके जल से निकलकर बाहर आई, किंतु पूर्ण नग्न होने के कारण अपनी नग्नता  छिपाने के लिए अपने गुप्तांगों पर अपना बाया हाथ रखे थे|  इसी मुद्रा में वह थरथरा रही थी| उनके इस सरल स्वभाव के कारण कृष्णा उन पर प्रसन्न हो गए| |कोई भी स्त्री अपने पति के अतिरिक्त अन्य किसी पुरुष के समक्ष अलग नहीं हो सकती| यह अविवाहित गोपी आए कृष्ण को पति रूप में चाहती थी और कृष्णा ने उनकी इच्छा इस तरह पूरी की| वे उन से प्रसन्न होकर उनके वस्त्रों को अपने कंधे में डालकर इस प्रकार बोले: हे बालिकाओ:! तुमने यमुना नदी के भीतर नग्न होकर बहुत बड़ा अपराध किया है| इस कारण यमुना के अधिष्ठाता वरुण देव तुम लोगों से परेशान हो गए हैं, अतः तुम सब हाथ जोड़कर वरुण देव के समक्ष झुककर प्रणाम करो जिससे वे तुम्हारी इस अपराध कार्य को क्षमा कर दें| गोपिया अत्यंत सरल जीवात्मा ए थी और कृष्णा जो भी कहते उसे वे सत्य मान लेती, अतः वरुण देव के कोप से मुक्त होने तथा अपनी मनोकामना की पूर्ति करने एवं अंततः आराध्य देव कृष्णा को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने तुरंत उनकी आज्ञा मांगी| इस तरह वे कृष्ण की सर्वोच्च प्रेमिका ए तथा उनकी परम आज्ञाकारिणी दासिया बन गई|

         गोपियों की कृष्ण भक्ति की कोई बराबरी नहीं कर सकता वास्तव में गोपियों को वरुण या किसी अन्य देवता की कोई परवाह न थी, वह तो केवल कृष्ण को प्रसन्न करना चाहती थी|  कृष्ण गोपियों के सरल आचरण से अत्यधिक प्रभावित तथा प्रसन्न थे, अतः उन्होंने तुरंत ही उनके वस्त्र वापस कर दिए| यद्यपि कृष्णा ने इन तरुण गोपी गांव को ठगा था और उन्हें अपने समक्ष नग्न खड़ा रखा था तथा उनसे परिहास का आनंद लूटा था और अब भी उन्होंने उन सबको पुतली का यह समझ कर उनके उपस्थित चुरा लिए थे, तो भी वह सब उनसे प्रश्न थी और उन्होंने कभी भी उनकी शिकायत नहीं की| गोपियों के इस मनोभाव का वर्णन चैतन्य महाप्रभु की इस प्रार्थना में मिलता है:’ हे भगवान कृष्ण! आप चाहे मुझे प्रेम करें या पैरों के नीचे रौंद दे या मेरे समक्ष प्रगट ना होकर मुझे भंगरे दे कर दे| आपको जो भाई शो करें, क्योंकि आप को पूरी छूट है| कि तो; मेरा कोई अन्य आराध्य नहीं है| क

श्रीकृष्ण लीला

       कुछ उनसे प्रशांत है और जो कि वे सभी उन्हें पति रूप में चाहती थी, अतः उन्होंने उनसे कहा,’ शिष्ट बालिकाओं!  मैं अपने प्रति तुम्हारी इच्छा से परिचित हूं और यह भी जानता हूं कि तुमने कात्यायनी की पूजा क्यों की| मैं तुम्हारे इस कार्य का पूरा अनुमोदन करता हूं| जिस किसी की पूर्ण चेतना, भले ही कामवासना में रहकर ही क्यों ना मुझसे तल्लीन रहती हो,वह उच्च पद प्राप्त करता है| जिस प्रकार भुना हुआ बीच नहीं उठ सकता उसी प्रकार मेरी प्रेमा भक्ति के प्रसंग में कोई भी इच्छा सकाम फल नहीं देती, जैसा कि सामान्य कर्मों में होता है|

         ब्रह्म- संहिता का एक कथन है:  कर्माणि निर्दहति  किंतु च  भक्तिभाजाम |  प्रत्येक मनुष्य अपने कर्मों से बंधा है, किंतु चूंकि भक्त भगवान को प्रसन्न करने के लिए ही कर्म करते हैं, अतः उन्हें ऐसे कर्म- फल भोगने नहीं पड़ते|  इसी प्रकार कृष्ण के प्रति गोपियों का मनोभाव, अति वासना में जान पड़ता है, किंतु उसे सामान्य स्त्रियों की काम- इच्छाओं के समान नहीं समझना चाहिए|  इसका कारण कृष्ण ने स्वयं बताया है|  कृष्ण की भक्ति के हेतु किए गए कर्म किसी भी कर्म- फल से परे हैं| 

       कृष्णा ने आगे कहा,” हे गोपियों!  मुझे पति- रूप में पाने की तुम्हारी इच्छा पूरी होगी, क्योंकि तुम सब उन्हें इसी इच्छा से देवी कात्यायनी की पूजा की है|  मैं कि अब और तुम अपने पति- रूप मैं  मेरे साथ आनंद भोग सकोगी|”

        थोड़े समय बाद कृष्णा अपने सिखाओ सहित वृक्षों की छाया में बैठकर अत्यंत प्रसन्न हो गए|  चलते समय उन्होंने वृंदावन वासियों को संबोधित किया,” है स्तोककृष्णा ,  हे वरुथप , हे भद्रसेन, हे सुदामा, हे सुबल, है अर्जुन, है विशाल, हे ऋषभ!  जरा, वृंदावन के इन परम भाग्यशाली वृक्षों को तो देखो! इन्होंने परोपकार में अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया है|  यह- अकेले- अकेले अंधड़ ,  वर्षा की झड़ी, प्रचंड आत्मकथा बेचने वाली शीत जैसे प्राकृतिक प्रकोप ओ को सह लेते हैं,  किंतु यह हमारे श्रम को हरने तथा हमें शरण देने में अत्यंत सतर्क रहते हैं|  मेरे विचार से यह वृक्षों के रूप में इस जन्म में धन्य है|  यह दूसरों को शरण देने मैं इतने सतर्क रहते हैं कि वे उन सहृदय तथा दानी व्यक्तियों के समान है,जो पास आने वाले किसी व्यक्ति को भी दान देने से इनकार नहीं करता|  यह वृक्ष किसी को भी छाया देने से इंकार नहीं करते| यह मानव- समाज को विविध प्रकार की सुविधाएं प्रदान करते हैं- यथा पतिया, फूल, फल, छाया, मूल, जड़, सुगंध तथा ईंधन | ये उदात जीवन के सर्वोत्तम उदाहरण है | यह उन उदार व्यक्तियों के समान है जिन्होंने अपना सर्वस्व- अपना तन, मन,  कर्म, बुद्धि तथा वाणी समस्त प्राणियों की भलाई में अर्पित कर दिया है| 

          इस तरह भगवान  श्रीकृष्ण, वृक्षो के फलो,पत्तों तथा टहनियों का स्पर्श करते एवं उनके यशस्वी परोपकारी कार्यों की प्रशंसा करते यमुना तट पर विहार करते रहे| विभिन्न प्रकार के लोग अपनी-अपनी दृष्टि ओक से मानव समाज के कल्याण हेतु कुछ कल्याण कार्य करते हैं, किंतु सामान्य जनों के शाश्वत लाभ के लिए जो परोपकार किया जा सकता है, वह है कृष्णभावनामृत  आंदोलन का प्रसार|  प्रत्येक व्यक्ति को इस आंदोलन के प्रचार के लिए उद्धत रहना चाहिए|  जैसा कि भगवान चैतन्य ने उपदेश दिया है, मनुष्य को भूमि की घात से भी विनम्र तथा वृक्ष से भी अधिक सहिष्णु होना चाहिए|  स्वयं भगवान कृष्ण ने वृक्षों की सहिष्णुता का वर्णन किया है और जो लोग कृष्णभावनामूर्त का उपदेश देते हैंउन्हें भगवान कृष्णा तथा चैतन्य की प्रत्यक्ष गुरु परम ब्रह्मा से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए| 

        यमुना तट स्थित वृंदावन के जंगल से जाते हुए कृष्णा एक सुंदर स्थान पर बैठ गए और गौवो को यमुना का स्वच्छ शीतल जल पीने दिया | थक जाने के कारण कृष्ण,  बलराम तथा वालों ने भी पानी पिया|  कृष्णा ने गोपियों को यमुना में स्नान करते देखने के बाद शेष प्रातः काल लड़कों के साथ बिताया| 

        इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण की लीला, वृंदावन की गोपियों का चीर हरण  का प्रसंग श्रीमद् भगवत गीता के 22 वे  अध्याय में प्रमाण मिलता है|  इससे आगे भी गोपियो के साथ की कृष्णलीला जो सामान्य जन के सामने कभी आई नहीं ऐसी श्रीकृष्ण लीला के अवसर ‘सत्य की शोध’ में  आपके लिए प्रमाण के साथ प्रस्तुत करने से हमें बड़े आनंद की अनुभूति होगी| इसलिए देखते रहिए, सुनते रहिए ‘सत्य की शोध’ का ‘सत्य नामा’

आपका सेवक-लेखक

     नरेंद्र वाला 

     विकी राणा 

   ‘सत्य की शोध’

    सत्य की शोध

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