नमस्कार ,
हर हर महादेव
शिवलिंग की स्थापना उसके लक्षण और पूजन की विधि का वर्णन तथा शिव पद की प्राप्ति कराने वाले सत्कर्म का विवेचन
शिवलिंग की स्थापना कैसे करनी चाहिए ? उसका लक्षण क्या है? तथा उसकी पूजा कैसे करनी चाहिए, कि- काल में करनी चाहिए और किस द्रव्य के द्वारा उसका निर्माण होना चाहिए ?
अनुकूल एवं शुभ समय में किसी पवित्र तीर्थ में नदी आदि के तट पर अपनी रूचि के अनुसार ऐसी जगह शिवलिंग की स्थापना करनी चाहिए, जहां नित्य पूजन हो सके | पार्थिव द्रव्य से, जल माई द्रव्य से अथवा तेजस पदार्थ से अपनी रूचि के अनुसार कल्पक लक्षणों से युक्त शिवलिंग का निर्माण करके उसकी पूजा करने से उपासक को उस पूजन का पूरा पूरा फल प्राप्त होता है| संपूर्ण शुभ लक्षणों से युक्त शिवलिंग की यदि पूजा की जाए तो वह तत्काल पूजा का फल देने वाला होता है| यदि चल प्रतिष्ठा करनी हो तो इसके लिए छोटा सा शिवलिंग अथवा विग्रह श्रेष्ठ माना जाता है और यदि अचल प्रतिष्ठा करनी हो तो स्थूल शिवलिंग अथवा विग्रह अच्छा माना गया है| उत्तम लक्षणोसे युक्त शिवलिंग की पिठ सहित स्थापना करनी चाहिए| शिवलिंग का पीठ मंडलाकार[गोल] चौकोर, त्रिकोण अथवा खाट के पाए की भांति ऊपर- नीचे मोटा और बीच में पतला होना चाहिए| ऐसा लिंगपीठ महान फल देने वाला होता है!
पहले मिट्टी से, प्रस्तर आदि से अथवा लोहे आदि से शिवलिंग का निर्माण करना चाहिए| जिस द्रव्य से शिवलिंग का निर्माण हो, उसी से उसका पृथ्वी बनाना चाहिए, यही स्थावर [ अचल प्रतिष्ठा वाले] शिवलिंग की विशेष बात है| चर [ चल प्रतिष्ठा वाले] शिवलिंग में भी लिंग और पीठ का एक ही उपादान होना चाहिए, किंतु बाणलिंग के लिए यह नियम नहीं है| लिंग की लंबाई निर्माणकर्ता या स्थापना करने वाले यजमान के 12 अंगुल के बराबर होनी चाहिए| ऐसे ही शिवलिंग को उत्तम कहा गया है| इससे कम लंबाई हो तो फल में कमी आ जाती है, अधिक हो तो कोई दोष की बात नहीं है| चर लिंग में भी वैसा ही नियम है| उसकी लंबाई कम से कम कर्ताके एक अंगुल के बराबर होनी चाहिए| उससे छोटा होने पर अल्पफल मिलता है, किंतु उससे अधिक होना दोष की बात नहीं है|
यजमान को चाहिए कि वह पहले शिल्प शास्त्र के अनुसार एक विमान या देवालय बनवाएं, जो देव गणों की मूर्तियों से अलंकृत हो| उसका गर्भगृह बहुत ही सुंदर, सुद्रढ और दर्पण के समान स्वच्छ हो| उसे 9 प्रकार के रत्नों से विभूषित किया गया हो| उसमें पूर्व और पश्चिम दिशा में दो मुख्य द्वार हो| जहां शिवलिंग की स्थापना करनी हो, उस स्थान के गर्त में नीलम, लाल वैदूर्य, श्याम, मरकत, मोती, मूंगा, गोमेद और हीरा- इन नौ रत्नों को तथा अन्य महत्वपूर्ण द्रव्य को वैदिक मंत्रों के साथ छोड़ें| सधोजात आदि पांच वैदिक मंत्रों द्वारा शिवलिंग का 5 थानों में क्रमशः पूजन करके अग्नि में हविष्यकी अनेक आहुतियां दें और परिवार सहित मेरी पूजा करके गुरु स्वरूप आचार्य को धन से तथा भाई बंधुओं को मनचाही वस्तुओं से संतुष्ट करें| याचको को जड़ [ सुवर्णा, ग्रुप एवं भू- संपति] तथा चेतन [ गौ आदि] वैभव प्रदान करें|
स्थावर जंगम सभी जीवो को यत्न पूर्वक संतुष्ट करके एक गड्ढे में स्वर्ण तथा 9 प्रकार के रत्न भरकर सघोजातादी वैदिक मंत्रों का उच्चारण करके परम कल्याणकारी महादेव जी का ध्यान करें| तत्पश्चात नाथ घोष से युक्त महामंत्र ओंकार [ओमकार ] का उच्चारण करके उक्त गड्ढे में शिवलिंग की स्थापना करके उसे पीट से संयुक्त करें| इस प्रकार तिथि योग की लिंग की स्थापना करके उसे नित्य- लेप [ दीर्घकाल तक टिके रहने वाले मसाले] से जोड़कर स्थिर करें| इसी प्रकार वहां परम सुंदर वेर [ मूर्ति] की भी स्थापना करनी चाहिए| सारांश यह कि भूमि- संस्कार आदि की सारी विधि जैसी लिंग प्रतिष्ठा के लिए कहीं गई है , वैसी ही वेर [ मूर्ति] प्रतिष्ठा के लिए भी समझनी चाहिए|
अंतर इतना ही है कि लिंग प्रतिष्ठा के लिए प्रणव मंत्र के उच्चारण का विधान है, परंतु वेयर की प्रतिष्ठा पंचाक्षर मंत्र से करनी चाहिए| जहां लिंग की प्रतिष्ठा हुई है , वहां भी उत्सव के लिए बाहर सवारी निकालने आदि के निमित्त वेर[ मूर्ति] को रखना आवश्यक है| वेर को बाहर से भी लिया जा सकता है| उसे गुरुजनों से ग्रहण करें| बाह्य वर वही लेने योग्य है, जो साधु पुरुषों द्वारा पूजित हो| इस प्रकार लिंग में और वेर में भी की हुई महादेव जी की पूजा शिवपद प्रदान करने वाली होती है |स्थावर और जंगम के भेद सेलिंग भी दो प्रकार का कहा गया है | वृक्ष, लता आदि को स्थावर लिंग कहते हैं और कृमिकिट आदि को जंगम लिंग | स्थावर लिंग की सींचने आदि के द्वारा सेवा करनी चाहिए और जंगम लिंग को आहार एवं जल आदि देकर तृप्त करना उचित है| उन स्थावर-जंगम जीवो को सुख पहुंचाने में अनुरक्त होना भगवान शिव का पूजन है, ऐसा विद्वान पुरुष मानते हैं| [ यो चराचर जीवो को ही भगवान शंकर के प्रतीक मानकर उनका पूजन करना चाहिए]
इस तरह महा लिंग की स्थापना करके विविध उपचारों द्वारा उसका पूजन करें| अपनी शक्ति के अनुसार नित्य पूजा करनी चाहिए तथा देवालय के पास ध्वजारोहण आदि करना चाहिए| शिवलिंग साक्षात शिव का पद प्रदान करने वाला है| अथवा चर लिंग में षोडशोपचारों द्वारा यथोचित रीति से क्रमशः पूजन करें| यह पूजन भी शिव पद प्रदान करने वाला है| आवाहन, आसन, अध्य,पाध , पाघांग आचमन, अभ्यंग पूर्वक स्नान, वस्त्र एवं यज्ञोपवित, बंद, पुष्प धूप, दीप, नए वेद, तांबूल, सम, निरंजन, नमस्कार और विसर्जन- यह 16 उपचार है| अथवा अधर्य से लेकर नैवेद तक विधिवत पूजन करें| अभिषेक, नए वेद नमस्कार और तर्पण – यह सब यथाशक्ति नित्य करें|
इस तरह किया हुआ शिव का पूजन शिव पद की प्राप्ति कराने वाला होता है| अथवा किसी मनुष्य के द्वारा स्थापित शिवलिंग में, रूसो द्वारा स्थापित शिवलिंग में, देवताओं द्वारा स्थापित शिवलिंग में, अपने आप प्रगट हुए स्वयंभू लिंग में तथा अपने द्वारा नूतन स्थापित हुए शिवलिंग में भी उपचार समर्पण पूर्वक जैसे तैसे पूजन करने से या पूजन की सामग्री देने से भी मनुष्य ऊपर जो कुछ कहा गया है, वह सारा फल प्राप्त कर लेता है| क्रमश:परिक्रमाँ और नमस्कार करनेसे भी शिवलिंग शिवपद की प्राप्ति कराने वाला होता है | यदि नियम पूर्वक शिवलिंग का दर्शन मात्र कर ल्या जाये तो वह भी कालयाणपद होता है| मिट्टी ,आता, गाय के गोबर , फूल,कनेर-पुष्प ,फल,गुड,मक्खन,भस्म अथवा अन्न से भी अपनी रुचि के अनुसार शिवलिंग बनाकर तदनुसार उनका पूजन करे अथवा प्रतिदिन दस हजार प्रनवमनत्र का जप करे अथवा दोनों संध्याओके समय एक-एक सहस्त्र प्रणव का जप क्या करे | यह क्रम भी शिवपद की प्र्प्ति कराने वाला है , एसा जानना चाहिए |
जपकाल मे मकारांत प्रणव का उच्चारण मन की शुद्धि करने वाला होता है | समाधि मे मानसिक जप का विधान है तथा अन्य सब समय भी उपांशु जप ही करना चाहिए | नाद और बिन्दु से युक्त ओंकारके उच्चारण को विध्वान पुरुष ‘समानप्रणव’कहते है |यदि प्रति दिन आदरपुरवाक दशजार पंचाक्षरमंत्र का जप किया जाये अथवा दोनों संध्याओके समय एक एक सहस्त्र का ही जप किया जाये तो उसे शिवपद की प्राप्ति करनेवाला समाजना चाहिए | ब्राह्मणोके लिए आदिमे प्रणवसे युक्त पंचाक्षरमंत्र अच्छा बताया गया है | कलश से किया हुआ स्नान ,मंत्र की दीक्षा , मातृकाओका न्यास , सत्या से पवित्र अन्तः कारण वाला ब्राहमन तथा ज्ञानी गुरु -इन सबको उतम माना गया है |
द्विजोके लिए ‘नमः शिवाय’के उच्चारण का विधान है | द्विजेटरों के लिए अंत मे ‘नमः’पद के प्रयोग की विधि है अर्थात वे ‘शिवाय नमः’इस मंत्र का उच्चारण करे | स्त्रियोके लिए भी कही-कही विधिपूर्वक नमोंत उच्चारणका ही विधान है अर्थात वे भी ‘शिवाय नमः’ का ही जप करे | कोई- कोई ऋषि ब्राह्मण की स्त्रीओके लिए नमः पूर्वक शिवायके जप की अनुमति देते है अर्थात वे ‘नमः शिवाय’ का जप करे | पंचाक्षरमंत्र का पाँच करोड़ जप करके मनुष्य भगवान सदाशिव के समान हो जाता है | एक, दो, तीन, अथवा चार करोड़ का जप करनेसे क्रमश: ब्रह्मा ,विष्णु,रुद्र तथा महेश्वर का पद प्राप्त होता है | अथवा मंत्र मे जीतने अक्षर है ,उनका पृथक-पृथक एक एक लाख जप करे अथवा समस्त एक साथ ही जीतने अक्षर हो उतने लाख जप करे | इस तरह के जप को शिवपदकी प्राप्ति करनेवाला समजना चाहिए | यदि एक हजार डीनो मे प्रतिदिन एक सहस्त्र जप के क्रम से पंचाक्षरमंत्र का दस लाख जप पूरा कर लिया जाये और प्रति दिन ब्राह्मण भोजन कराया जाये तो उस मन मंत्र से अभीष्ट कार्य की सिद्धि होने लगती है |
ब्राह्मणो को चाहिए की यह प्रतिदिन प्रातः काल एक हजार आठ बार गायत्री का जप करे | गायत्री क्रमश: शिवका पद प्रदान करने वाली होती है | वेद मंत्रो और वैदिक सूत्रो का भ नियम पूर्वक जप करना चाहिए | वेदो का पारायण भी शिवपद की प्राप्ति कराने वाला है | एसा जानना चाहिए | अन्यान्य जो बहुत से मंत्र है ,उनका भी जीतने अक्षर हो , उतने लाख जप करे | इस प्रकार जो यथा शक्ति जप करता है , वह क्रमश; शिवपद [मोक्ष] प्रपट कर लेता है | अपनी रुचिके अनुसार किसी एक मंत्र को अपनाकर मृत्युपर्यन्त प्रतिदिन उनका जप करना चाहिए अथवा ‘ॐ’ इस मंत्र का प्रतिदिन एक सहस्त्र जप करना चाहिए | एसा करने पर भगवान शिवकी आज्ञासे सम्पूर्ण मनोरथोकी सिद्धि होती है |
जो मनुष्य भगवान शिव के लिए फुलवाड़ी या बगीचे आदि लगाता है तथा शिव के कार्य के लिए मंदिर मे जादनेबुहारने आदिकी व्यवस्था करता है , वह इस पुण्यकर्म को करके शिवपद प्राप्त कारलेता है | भगवान शिवके काशी आदि जी क्षेत्र है , उनमे भक्ति पूर्वक नित्या निवास करे | वह जड़, चेतन साभिकों भोग और मोक्ष देनेवाला होता है | अतः विध्वान पुरुषको भगवान शिवके क्षेत्र मे आमरण निवास करना चाइए | पुण्य क्षेत्र मे स्थित बावड़ी ,कौआ और पोखरे आदिको शिव गंगा समजना चाहिए |भगवान शिव का एसाही वचन है | वाहा स्नान , दान और जप करके मनुष्य भगवान शिवकों प्रपट कर लेता है | अतः मृत्युपर्यंत शिवके क्षेत्र का आश्रय लेकर रहना चाहिए | जो शिव के क्षेत्र मे अपने किसी मरुत संबंधिका दाह,दशाह: मासिक श्राद्ध सपीणडैकरान अथवा वार्षिक श्राद्ध करता है अथवा कभभी शिवके क्षेत्र मे अपने पितरोको पिण्ड देता है , वह तत्काल सब पापोसे मुक्त हो जाता और अंतमे शिव पद पाता है | अथवा शिव के क्षेत्र मे सात , पाँच,तीन या एक ही रात निवास कारले |एसा करनेसे भी क्रमश: शिवपद की प्राप्ति होती है |
लोक मे अपने अपने वर्ण के अनुरूप सदाचरका पालन करने से भी मनुष्य शिवपद को प्राप्त कर लेता है | वर्णानुकुल आचरणसे तथा भक्तिभावसे वह अपने सत कर्म का अतिशय फल पाता है , कामनापुवरव किए हुए अपने कर्म के अभीष्ट फल को सिधरा ही पा लेता है | निसकामभावसे किया हुआ सारा कर्म साक्षात शिवपद की प्राप्ति करनेवाला होता है |
दिन के तीन विभाग होते है -प्रातः , मध्याहन , और सायाह्न | इन तीनों मे क्रमश: एक एक प्रकार के कर्म का सम्पादन किया जाता है | प्रातः काल को शास्त्रविहित नित्यकर्म के अनुष्ठान का समय जानना चाहिए | मध्याहंकाल सकाम-कर्म के लिए उपयोगी है तथा सायंकाल शांति-कर्मके उपयुक्त है , एसा जानना चाहिए | इसी प्रकार रात्रिमेभी समय का विभाजन किया गया है | रात के चार प्रहरोमेसे जो बिचके दो प्रहार है ,उन्हे निशीथकाल कहा गया है | विशेषत: उसी कालमे की हुई भगवान शिव की पूजा अभीष्ट फल को देने वाली होती है | एसा जानकार कर्म करने वाला मनुष्य यथोत्क फलका भागी होता है | विशेषत: कलयुग मे कर्मसे ही फलकी सिद्धि होती है | अपने अपने अधिकार के अनुसार ऊपर कहे गए किसिभी कर्म के द्वारा शिवाराधन करने वाला पुरुष यदा सदाचारी है और पाप्स ए दर्ता है तो वह उन उन कर्मो का पूरा पूरा फल अवश्य प्राप्त कर लेता है |
इस प्रकार आज शिवलिंग की स्थापना उसके लक्षण और पूजन की विधि का वर्णन तथा शिव पद की प्राप्ति कराने वाले सत्कर्म का विवेचन हमने शिवपुराण से सत्य प्रमाणलेकर आप पुण्यसाली श्रद्धालु भक्तो के लिए सावन मास की शुभ शुरुआत मे ‘सत्य की शोध’ मे शिवलिंग की स्थापना उसके लक्षण और पूजन की विधिका ‘सत्यनामा’ प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त हुआ है , यदि आपको यह ‘सत्यनामा’ भाता है तो हमारा उत्साह बढानेके लिए नीचे कॉमेंट बॉक्स मे कॉमेंट करके सबस्क्राइब जरूर करने की विनंती है |
‘हर हर महादेव’
नरेंद्र वाला
[विक्की राणा]
‘सत्य की शोध‘
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