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“1857 से पहेले का विद्रोह” जिन्होने आज़ादी की निव डाली थी | सन 1764 से 1856 के वीर शहीद क्रांतिकारी

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नमस्कार,

जय हिन्द , जय भारत |

भारत की आजादी के बलिदान हम जानते हैं | उन्हे कभी भूल नहीं शकते है | 1857 का आंदोलन शुरू हुआ, और भारत के कई माता ,बहने ,युवाओने अपने प्राण तक के बलिदान देकर , अंग्रेग गोरो के असह्य अत्याचार,ज़ुल्म, सहे है | गुलामी की जंजीरोमे जकड़कर गुलाम बनाके रखे | उन क्रांतिकारिओके का एक ही सपना था अपने  देश की आज़ादी | और उन सभी आज़ादी के दिवानों के बलिदान ने अंग्रेज़ो को देश छोडने पर मजबूर होकर भागना पड़ा और 1947 मैं देश आजाद हो गया | मगर क्या आप जानते हैं ? की 1857 से पहले भी  हमारे देश के हजारों और लाखों की संख्या में माता ,बहने ,पुरुष, युवा ,बालक, जिन्होंने अंग्रेजों की निव  हिला डाली थी | आज उनको याद करते हैं, जिन्होंने भारत की आजादी का सपना देखा और आजादी की निव डाली थी | और आगे जाकर वो एक ऐसी चिंगारी बनी जो 1947 की आज़ादी तक नहीं बूजी |और गोरे अंग्रेज़ो को देश छोड़कर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा |  ‘जय हिन्द’

सन 1857 के प्रमुख विद्रोह से पहले ही भारत की जनता कोई ना कोई विद्रोह करने लगी थी |अंग्रेजों के अत्याचार के सामने यह विद्रोह मुख्यतः तीन भागों में बांटा जा सकता है |नागरिकों के विद्रोह ,आदिवासियों के विद्रोह ,किसान आंदोलन विद्रोह |

सैनिक विद्रोह: 1857 से पूर्व यह सैनिक विद्रोह  अंग्रेज़ सैनिक  अधिकारिओके आपत्तिजनक व्याहवाहर , उत्पीड़न तथा  सेवा शर्तो, वेतन भत्तों में रंगभेद और जातीय भेदभाव के कारण हुए | इन विद्रोह में सन 1764 का विद्रोह, बेल्लोर का सन 1806 का विद्रोह, सन 1825 का असम तोपखाना विद्रोह; सोलापुर का सन 1838 का और गोविंदगढ़ कासन 1849-50 का विद्रोह प्रमुख है |

जनजाति आंदोलन: सन 1760 से  1800 ई. तक बंगाल में सन्यासी विद्रोह रहा |इस विद्रोह में सन्यासियों ने स्थानीय जनता के साथ मिलकर ईस्ट इंडिया कंपनी की  कोठियो और कोषो  पर हमले किए |

चुआर विद्रोह : सन 1764 ई. मैं चुआर जनजातियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया |चुआर जनजाति बंगाल के मिदनापुर क्षेत्र में सुभाष करती थी |इस जाति ने आत्म  विनाश की नीति अपनाते हुए दलभूम, कैलापाल , ढोलका तथा  बाराभूम  के राजाओं के साथ मिलकर विद्रोह किया |विद्रोह के कारणों में अकाल ,भूमि कर में वृद्धि तथा अन्य आर्थिक कारण थे |

दीवान वेलु थंपी  का विद्रोह: सन 1805 मैं लार्ड वेलेजली ने त्रावणकोर के महाराजा दीवान वेलूथंपी को सहायक संधि के लिए मजबूर किया |महाराजा ने  सहायक कर देने में देरी की ,परिणाम स्वरूप सहायक कर की राशि बढ़ती गई |महाराजा दीवान  वेला थंपी  इस बात से नाराज हो गए |और उन्होंने नायर बटालियन का सहयोग प्राप्त कर विद्रोह कर दीया |

दीवान वेणु थंपी और उनके राज्यचीन्ह  मन्नाडी का वो मंदिर, जहां वेलु थम्पी ने आत्मदाह किया था |

दीवान वेणु थंपी एक अजोड़ क्रांतिकारी

भील विद्रोह: पश्चिमी तट के खान देश जिले में रहने वाली जनजाति में सन 1812-19 ई. अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठाए थे, इस विद्रोह का कारण अंग्रेज़ सरकार द्वारा कृषि संबंधी  यातनाएं तथा अंग्रेजी सरकार से भाय रहा | सन 1825 मैं सेवाराम की अगुवाई में भीलों ने दोबारा विद्रोह किया |ब्रिटिश इतिहासकारों के मतानुसार पेशवा बाजीराव द्रीतीय तथा उसके प्रतिनिधि त्रिबकजी  दांगलिया ने उन्हें प्रोत्साहित किया था |

हो’ तथा ‘मुंडा’ विद्रोह: छोटानागपुर तथा सिंहभूम की 2 जनजातियों ‘हो’ तथा ‘मुंडा’ ने सन 1820-22 तथा दोबारा सन 1831 मैं जो की सेना से टक्कर  ली |इन दोनों जनजातियों के कारण सन 1837 तक यह क्षेत्र तनावग्रस्त रहा |

टंटया भील ने नासिक के विद्रोह के मुख्य क्रांतिकारी

भील विद्रोह के मुख्या सेवाराम
रामोसी विद्रोह: रामोशी जनजाति के लोगों ने सन 1822 मैं अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध किया, इस युद्ध का नेतृत्व सरदार चितर   सिंह ने किया |उनके नेतृत्व में रामोशीओने सतारा के आसपास का क्षेत्र लूट लिया |यह विद्रोह पुन :सन1825-26 मैं भड़का  तथा सन 1829 तक संपूर्ण क्षेत्रों में अशांति रही |अंग्रेजी शासन पद्धति और उनके क्रिया-कलाप रामोशी जनजाति की अप्रसन्नता के कारण थे |  

अहोम विद्रोह: सन 1825 आसाम के अहोम आभिजात्य वर्ग के लोगों ने गोमधर  कुंवर को अपना राजा चुनकर विद्रोह किया | विद्रोह का कारण अंग्रेज़ो  द्वारा  अहोम प्रदेश को ब्रिटिश साम्राज्य में सामील करना था |1830 मैं  प्रथम अहोम विद्रोह की सफलता के बाद द्वितीय अहोम  विद्रोह हुआ |

वहाबी आंदोलन: सन 1831 ! इस आंदोलन के मुखिया रायबरेली के सैयद अहमद [1786-1831] थे | इस आंदोलन का नेतृत्व करने की प्रेरणा उन्हें अरब के अब्दुल वहाब तथा दिल्ली के  संत शाह वलीउल्लाह से मिली थी  |सैयद अहमद इस्लाम में किसी  तरह के बदलाव के खिलाफ थे ,तथा वे चाहते थे कि इस्लाम धर्म उसी  तरह चले जैसा हजरत मोहम्मद ने शुरू किया था,|
भारत में इस आंदोलन का मुख्य केंद्र  पटना था तथा हैदराबाद ,मद्रास ,बंगाल,उत्तरप्रदेश और बंबई में इसकी शाखाये थी | इस आंदोलन का उद्देश्य  काफिरो के देश [ दार- उल-हर्ब ] को मुसलमानों के देश  [दारुल- इस्लाम] मैं बदलना था | सन 1857 के विद्रोह में वहाबियों ने ब्रिटिश  विरोधी  भावनाओ  के प्रसार में अत्यधिक योगदान दिया | 

                                                        राईबरेली के वहाबी आंदोलन के मुख्या सय्यद अहमद

कोल विद्रोह: सन 1831 छोटा नागपुर के कोलोने बगावत कर दी |विद्रोह में लगभग  एक हजार विदेशियों अंग्रेजों की हत्या कर दी |यह विद्रोद बिहार के रांची ,सिंहभूम ,हजारीबाग, पलामू तथा मानभूम के पश्चिमी क्षेत्रों तक फैला था | इस विद्रोह की पुरुष भूमि में कारण ,कोलो के मुखिया मुंडो [एक जनजाति] से अंग्रेजी शासकों द्वारा जमीन छीनकर मुस्लिम किसानों और सिखों को देना था |


खासी विद्रोह: सन1833 नंक्लों राजा अनिरुद्ध सिंह ने खासी विद्रोह का नेतृत्व किया था |कंपनी ने पूर्व में जैंतिया तथा पश्चिम मे  गारो पहाड़ियों को सन 1833 मैं अपने कब्जे में ले लिया तथा ब्रह्मपुत्र घाटी सिलहट को जोड़ने हेतु एक सैन्य  योजना बनाई |इस योजना का विरोध  करने के लिए खांपट्टी तथा सिंहपो ने विद्रोह किया  | 

सतारा विद्रोह: 1839 में अंग्रेजों ने कूटनीति से सतारा के राजा प्रताप सिंह को सिहासन से हटा दिया और उन्हें देश निकाला दे दिया ,इस कारण इस क्षेत्र में विद्रोह हुआ |1840-41 मैं भयंकर उपद्रव हुए |नरसिंह दत्तात्रेय पेटकरने बहुत सारे सैनिकों को इकठ्ठा  करके अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करके बादामी का दुर्ग जीत लिया उस पर सतारा के राजा का ध्वज फहराया |

फराईजी विद्रोह: 1838-48 फराईजी लोग फरीदपुर के हाजी शरीयतुल्ला द्वारा प्रारंभ किए गए संप्रदाय के अनुयायी थे |यह संप्रदाय जमींदारों द्वारा अपने मू जारो [ जमीन खेती करने के लिए जमींदारोसे  से किराए पर लेने वाले] पर अत्याचारों के खिलाफ था |साथ ही साथ यह संप्रदाय धार्मिक  तथा राजनीतिक परिवर्तन का भी पक्षधर था |संप्रदाय के संचालक हाजी शरीयतुल्ला के पुत्र दूदू मियां सन 1819-60 ने बंगाल से अंग्रेजों को बाहर निकालने की योजना बनाई इसलिए विद्रोह किया| फराईजी विद्रोह 1838 से 1857 तक चलते रहे |

संथाल विद्रोह: सन1855-56 राजमहल [बिहार] जिले के संथा

लों ने 1855 मैं सिंधु तथा कानुके के नेतृत्व मे विद्रोह किया | क्योकि अग्रेज भूमिकर अधिकारी  दूर व्यवहार करते थे ,इसके साथ ही पुलिस दमन भी अत्यधिक था  |1856 मैं इन विद्रोह पर सेना ने ताकत से विजय पा ली थी  |अतः यह विद्रोह सिध्र ही समाप्त हो गया ||

स्पष्ट है कि सन 1857 की सशस्त्र क्रांति से पहले भारत की जनता ,जाति व कृषक समाज गुलामी बेड़िया तोड़ने के लिए छटपटाता रहा ||

जय हिन्द

नरेंद्र वाला

[विक्की राणा]

“सत्य की शोध”

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