नमस्कार,
भाई गोरामिया और बहन गोराबानु के पवित्र प्रेम की सत्य घटना ‘सत्य की शोध’ का “सत्यनामा”
अरूण ने सूरज के रथ के घोड़े को ऐसे उठा लिया है जैसे कोई पुरुष किसी नापसंद स्त्री को धोखा देकर अपनी प्रेयसी से मिलने के लिए उतावला हो घोड़े पर सवार हो। रात, एक काले गुंबद की तरह, सजावट के साथ खुद को सजाते हुए, उसके पीछे जाने के लिए दौड़ी। आगे डूबते सूरज की रोशनी, पीछे रात का अंधेरा, जिसके बीच में एक युवक का घोड़ा धीमा लगता है। उनको लगता है कि मैं घोड़े से उतर जाउ और तेजी से दौड़ने लगू । इसकी नज़र टिकी है ‘पिपराली’ [भावनगर] के एक मीनार के ऊपर।
बहन ने आज तक भाई को खूब लाड़-प्यार किया है। भाई के बचपन की लौरी से लेकर शादी के गानों तक में कोई कमी नहीं राखी है. ” 75 साल के बाद घर पहुंची औरत को ठेस लगती है तो वह कहेगी ‘खम्मा मारा वीरा’ [गुजराती शब्द है जो अपने भाई के लिए दुआ करती है ]। किसी ने नहीं कहा “खम्मा मेरे पति “। आम की गुटली खाकर पानी पीने से मीठा लगता है ,ऐसे एक बहन को अहसास एक भाई जैसा लगता है। गाजर के ऊपर पानी कड़वा लगता है ,ऐसे भाई को बहन कड़वी लगती होगी ?
लेकिन मैं एक बात कहना चाहता हूं कि भाई ने बहन के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी।भावनगर जिले में रंगोली नदी के किनारे पिपराली गांव चिड़िया के घोसले की तरह सज रहा है। ग्रामीण सैयद गोरामियां के माता-पिता कम उम्र में ही अल्लातला के खिदमत पहुंच गए हैं। बहन परिवार में इकलौता बच्चा है। नाम है ‘गोराबानु’। बचपन में भाई-बहन को दिए गए नाम सत्य हैं; लेकिन सुबह खिले हुए गुलाब जैसी कोमलता, कोमलता और निर्मलता देखकर लोग लाड में बहन-भाई दोनों को गोरमियां बापू और गोराबानु कहने लगे। तभी से दोनों भाइ-बहन को इसी नाम से जाना जाता है।
औलिया जैसे गोरमिया ने अपनि लाड़ली प्यारी बहन को माँ, बाप और भाई के प्यार से पाला। भाई-बहन के बीच प्यार का ऐसा बंधन कि दिल अलग-अलग हैं, लेकिन आत्मा एक है।
समय बीतते देर नहीं लगती । बीस सर्दियाँ, बीस गर्मियाँ और बीस सावन सुख और दुखो के बीच से गुजरे, बीस बीस साल के भाई-बहनों के बीच प्यार और स्नेह बुना गया। गोरा-मियां के शरीर में बचपन को मात देकर मानो युवानी चड बैठी हो, गालों पर दाढ़ी की काली काली भौहें चढ़ गई और चेहरे पर युवानी आ गए। ढोल-नगाड़ों की आवाज, शरनाई और मंगल गीतों के साथ मामा-मामी सहेरा और शेरवानी में घोड़े पर सवार भांजे को देखने के लिए उतावले हैं। लेकिन बहन के पवित्र प्यार में बंधा ये ओलिया अभी तक युवानी से पहचान नहीं हुई है |
आखिर एक दिन मामा ने समझाया और गोरामिया की शादी तय कर दी। जिस दुल्हन की शादी होने वाली है, उसने सुना है कि मेरे होने वाले पति को एक लाड़ली छोटी बहन भी है । लेकिन आज उस लाड़ली बहन के लाड़ प्यार घर में आकर रूबरू देखा।
सुबह में, बहन के माथे पर प्यार से हाथ रखकर भाई उठाता हैं, फिर सभी खातिरदारी खुद के हाथों से करते है । अपनी पत्नी को कुछ कहे या न कहे । दोपहर के समय जब बहन कुछ देर आराम कर रही होती है या सहेलिओ के साथ खेल रही होती है, तो उम्मीद भरी सैय्यिदनी अपने पति के पास आकर बैठ जाती है। वहीं गोरामियां के मुंह से बहन की कहानी शुरू हो जाती है।
हृदयमे पति के प्रेम की उम्मीद को धारण किये नइनवेली दुल्हन का मनोरथ आषाढ़ मास की राख की तरह जलकर राख हो जाता है। लेकिन गोरमियां के मुंह से बस एक ही बात निकलती है कि: “बहन की पहनी ओढ़नी आज कितनी सुंदर लगती है! बहन ने आज दोपहर कम क्यों खाया? बहन रात को क्या खाएगी?” इस तरह, “बहन बहन और बहन के आकर्षण को शब्दों में पिरोया गया है।” “अगर मेरी बहन रात को अकेली सोती है और नींद में मुझे याद करती है तो क्या होगा? अगर वह रात को पानी पीना चाहे तो? क्या हुआ अगर नींद की रजाई गिर गई और बहन को ठंड लगी तो ?” यह कल्पना करते हुए, गोरामिया अपनी खाट को बहन के बिस्तर के पास अपनी लाड़ली बहन के पास ही लगाकर सो जाते।
अब हद हो गई। पत्नी की ईर्ष्या स्त्री की तरह बढ़ने लगी। वह सोचने लगी, “यह कलमुई यहासे जाए तो ही घर में सुख आयेगा।”
धीरे-धीरे पत्नी गोरमियां को बहन जवान होने की बातें करने लगीं। “आप देखते हैं,बहन का अंग शरीर जवानी से उभर रहा है, लेकिन आप इसके बारेमे नहीं सोचते है । एक जवान बेटी तो अपने ससुराल मे ही शोभा देती है । एसी बहकी बाते करके गोरामिया को बहन के भविष्य को लेकर चिंतित कर दिया।
गोरामियां ने यह सोचकर कि राजा से लेकर रंक [गरीब] तक किसी की बेटी घर पर नहीं रहती, गोरामियां ने मांडवी से महुवा और भावनगर से पोरबंदर तक अपनी निगाहें घुमाईं और फिर दिल मे समा ली । बहन को जितना हो सके उतना करीब ब्याहने का फैसला किया जब उसे ऐसा लगा, लोलियाना गाउ में एक रिश्ता बनाने का फैसला किया। विवाह बकाया। मंगल गीत घर मे औरते गाती है। पूरा गांव आनंद के सागर में झूम रहा है। तब गोरमियां के अंतर में बहन की जुदाई का कांटा चुभता है। हर एक क्षण बहन के चेहरे को देखकर उसकी आंखें नम हो जाती हैं। बहन ने भ ई रो रो कर अपनी चुन्नी गीली करदी है ।
बीदाई की घड़ी नजदीक आ पहुँची। बारात चली जाने लगी। चौराहे पहोचकर गोरामियां ने बहन के सिर पर हाथ रखा, आशीर्वाद दिया और लौट गया। बारात लोलियाना गाउ की और चलने लगी , मानो कोई केंचुआ दो हिस्सों में बंटकर अलग-अलग दिशाओं में चला गया हो, दोनों भाई-बहन जुड़ा हो गए।
जीवन में पहली बार लाड़ली बहन के बिना का घर देखकर गोरामिया की आखे बरस रही है और गिर पड़े , बहन के बिना बमुश्किल रात गुजारी। ऐसा लगा जैसे एक ही रात में उम्र निकल गई हो। सुबह होतेही गोरेमिया घोड़े पर सामान बांधकर लोलियाना गाउ पहुंचे। भाई-बहन गले मिले। मानो सालोके बाद विदेश में आफ्नो को मिलते है | एक दिन, दो दिन, एक सप्ताह से अधिक बीत गए। गोरा-मियां को बहन को छोड़कर जाने का मन नहीं करता। घर से कहावतें आती हैं। इधर बहन को जेठानी, सास और ननन्द ने भी आमने सामने कहा था: “मेरे भाई पर फिदा होकर बहन-भाई दोनों से हुई है।” यह ताना गोराबानु को झकझोर दिया। भाई को घर जाने के लिए मनाया। आखिर अनुनय-विनय करने पर गोरामिया घर जाने को तैयार हो गया। लेकिन जीजाजी को लोलियाना गाउ मे एक मीनार बनाने के लिए कहा। मैं भी पिपराली में मीनार बनवाऊंगा। रोज शाम को बहन मीनार पर चढ़कर दीया दिखायेगी और मे भी। हम दोनों भाई बहन रूबरू मिले बराबर मान लेंगे ।
लोलियाना गाउ के किले में मीनारों की खुदाई। पिपराली में मीनार का काम भी शुरू हो गया है। थोड़े ही समय में दो मीनारें, जो रुद्रमाल के छोटे भाई हैंऐसे , बनकर तैयार हो गईं। फिर प्रतिदिन भाई-बहन हाथों में दीपक लेकर मीनार पर चढ़ते हैं, सामने से दिखाई देने वाले दीपक देखते हैं और दीदार करने के बाद खाना खाते हैं। साथ ही आठ घंटे के बाद दीए रोशन होनेकी की उम्मीद में दिन बिताते है। इस प्रकार नित्यकर्म हो गया।
एक दिन गोरर्मिया को जरूरी काम से अपने गाउ से बाहर जाना पड़ा। घर में सिफारिश की कि “मुझे देर हो सकती है, अगर मुझे देर हुई , तो मीनार को दिया जलाकर रोशन करें।” आनन-फानन में अपना काम खत्म कर घर की ओर एक दौड़ते हुए तेजीले घोड़े के साथ दौड़ता हुआ मीनार की और आता है ,। सूरज पर जलन से भरी एक अंधेरी रात ने गोरामिया को भीतर तक खींच लिया। जैसे ही अंधेरा उतरा, मीनार दिखाई देना बंद हो गई।
शाम होते ही गोरंबानु मीनार पर चढ़कर देखा। पिपराली में अंधेरा छा गया। बहन का दिलमे गहरा सदमा पहोचा: “निश्चित रूप से मेरे भाई के साथ कुछ अमंगल हुआ है , नहीं तो आज जलता दिया क्यो नहीं दिखाय दिया ?” हाथ में दिया लेकर आंखों में आंसू लेकर वह पिपराली मीनार के सामने आशुभरी आखोसे नज़र नहीं हटाई। बहन नहीं जानती कि मेरा भाई सड़क पर अँधेरे में लड़खड़ा रहा है रात के अंधेरे मे भटक रहा है , फँस रहा है, मीनार पे दिया का दीदार करने के लिए अंधेरी रात मे भटकता हुआ तेजी से आ रहा है। गोराबानु के दिये मे तेल खत्म हुआ , दिल ने सब्र खोया। आखिरी बार “हाय, मेरे भैया मेरा भाई ” कहते हुए एक सोनपरी अपने भाई से मिलने के लिए उड़ती हो ऐसे उसने पिपराली के मीनार को अपनी आखोमे उतारकर मीनार से कूद पड़ी भाई की जुदाई सही नहीं गई। गोरंबानु ने “भाई, भाई, भाई” शब्दों को प्रतिध्वनित करते हुए शरीर छोड़ दिया।
गोरामियां अंधेरे में भटकता हुआ घर पहोचा सासे फुल्ल गई है सासे अटक रही है और। उसने पूछा, “बहन को दीया दिखाया था न?” पागल सैयदानी [पत्नी] कहती हैं: “हाय … हाय …. मैं घर के कामकाज मे भूल गई हु ।” भूल गई हु इतना सुनकर बहेन का जनाज़ा भाई गोरामियां की नज़र के सामने दिखने लगा। दीये के साथ दौड़ता हुआ वह मीनार पर चढ़ गया। लेकिन दिन भर की भारी बारिश के बावजूद आज मीनार आकाश जितना ऊंचा दिखाय देता है। लोलियाना की ओर अँधेरे की भूतिया लहरों के बीच गोराबानों को “भाई, भाई” की आवाज़ का एहसास हो रहा । सामने से , “बहन , बहन, रुको , मैं आ रहा हूँ, मैं तुम्हें अकेले अंधेरे में नहीं जाने दूंगा।”
सरगापर गाउ के रास्ते बहन की खातिर बरदास करने जा रहा हो ऐसे , गोरामिया ने लाड़ली बहन की जुदाई के गम मे खुदकों मीनार से गिरा लिया । एक क्षण में, उनकी आत्मा ने बहन गोरंबानु की आत्मा को छू लिया। दो तारे आकाश से गिरे, प्रकाश की किरणें पृथ्वी पर उतरते ही आपस में मिल गईं।
भावनगर जिले के पिपराली और लोलियाना में भाइयों-बहनों के अतुलनीय प्रेम की याद दिलाती जर्जर मीनारें आज भी कोई दीये जालाएंगे की उम्मीद से समय के गहरे घाव सहकर खड़े हैं.यह सत्य घटना का प्रमाण श्री बापल भाई गढ़वी के लेखन मे भी मिलता है |
(इस मीनार को पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।)
आपका सेवक – लेखक
नरेंद्र वाला
[विकी राणा]
‘सत्य की शोध’
How useful was this post?
Click on a star to rate it!
Average rating 0 / 5. Vote count: 0
No votes so far! Be the first to rate this post.