नमस्कार ,
होली का आध्यात्मिक महत्व
आध्यात्मिक दृष्टि से मनुष्य की साधना के साधक में आत्मा के परमात्मा के साक्षात्कार ईश्वर ईश्वर के प्रति प्रेम ही होली है| इस रंग कर जाना इनका ही आध्यात्मिक स्वरूप है| उदाहरण- कृष्णा राधा, भक्त प्रहलाद की भगवान विष्णु प्रत्येक साधना | आर्थिक दृष्टि से होली का महत्व भी है ,जमीन के साथ जुड़े हुए खेडुत खेतों में सर्वप्रथम खेत से लेकर इस होली के दिन होली की अग्नि में अर्पण करते हैं, हकीकत इनका अर्थ कहूं तो खेडुत खेती करने वाले घर में नया अन्न , आने की खुशी में होली का त्यौहार मनाते हैं
सामाजिक दृष्टि से भी होली का महत्व है कि,सामाजिक दृष्टि से होली का अर्थ बीते हुए साल में आई उसी और आए हुए दुखों को भूलकर नई शुरुआत करना| यह बीते हुए दिनों की याद ना आए वह दुख भरे दिन होली की अग्नि में जलकर भस्म हो जाए उनकी खुशी में मनाया जाने वाला त्यौहार याने होली|
प्राचीन भारतीय इतिहास में भी होली का महत्व है इतिहासकारों का मानना है की, यह पर्व आर्यों में प्रचलित था, यह पूर्वी भारत में ज्यादा मनाया जाता था| अनेक प्राचीन और धार्मिक पुस्तकों में भी इस त्यौहार के लिए लिखा गया है, जिनमें खास’ जैमिनी’ की- सूत्र’ और कथा गद्य सूत्र’ के साथ जुड़ा हुआ है| ,|
पुराण के अनुसार होलिका के जलने की खुशी में लोग एक दूसरे को रंग लगाकर खुशी व्यक्त करते हैं, माना जाता है कि द्वापर युग में फाल पूर्ण भाग बाल लीला करते समय पूतना नाम की राक्षसी की हत्या की थी, इस कारण पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मालवा अन्य क्षेत्रों के लोगों होलिका दहन पर गाय का गोबर यानी उपले से बने हुए छोटे-छोटे अपनों से रस्सी में बांधकर मालाए बनाकर होलिका दहन पूर्व पूजन करके चढ़ाते हैं| अन्य मान्यता के अनुसार भगवान शिव जब अखंड समाधि में थे तब कामदेव उनकी समाधि तोड़ने के लिए आए थे तब भगवान शिव ने उनकी तीसरी आंख तीसरा नेत्र खोल के उन को भस्म कर दिया था|
मध्यकालीन भारतीय इतिहास में होली का महत्व है, प्रश मूसली अल भी खुद के ऐतिहासिक यात्रा के स्मरण में होलिका के उत्सव का वर्णन किया है, साथ-साथ भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने खुद की रचनाओं में भी इस बातों का उल्लेख किया है की होली का उत्सव मात्र हिंदू ही नहीं मुस्लिम लोगों का भी त्यौहार है, और वह भी मनाते हैं| अकबर हरका बाई के साथ, और जहांगीर नूरजहां के साथ होली खेलने का वर्णन इतिहास में प्रमाण के साथ है| अकबर के महल मे सोना और चांदी के बर्तनों को केसर और केवड़े के युक्त रंगों से धोया जाता था| और सम्राट ए खुद की बेगम और हरम की सुंदरियों के साथ होली खेलते थे| अलवर संग्रहालय में एक चित्र में जहांगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है, शाहजहां के समय में होली खेलने का अंदाज बदल गया था, शाहजहां के समय में होली को’ इर्द- ए- गुलाबी’ अथवा’ ‘आब – ए- पाशी’ [रंगो की बौछार ] कहते थे|
मुगल बाहर के कहा जाता था की इनके मंत्रियों के द्वारा उनको होली के दिन रंगों से रंगा जाता था, सैयद भाइयों में एक अब्दुल्ला खान ने वसंत और होली के त्योहारों में भाग लिया था, बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने भी ऐसे उत्सव में भाग लिया था| कहने का तात्पर्य कहा जाए या इतिहास देखा जाए तो होली का त्योहार सिर्फ किसी एक समाज के लिए नहीं है, बल आगे बताया इस तरह से बीते हुए सालों का दुख दर्द मुसीबतों को विरोध को, दुश्मनी को, भूल भाई चारे के साथ मिलकर रंग बिरंगी रंग उल्लास के साथ उमंग के साथ एक दूसरों के ऊपर डाल कर खुशी मनाने का नाम ही होली का त्यौहार है, या बन गया है ऐसा कहने में कोई हर्ज नहीं है|
इससे भी आगे अगर देखा जाए प्राचीन के चित्रों में, दीवाल चित्र मंदिरों की दीवारों पर यह उत्सव के चित्र मिल जाते हैं, विजयनगर की राजधानी हंपी में 16 वीं सदी के एक चित्र फलक पर होली के आनंददायक चित्र देखने को मिलता है, यह चित्र मैं राजकुमार और राजकुमारियों और दासी और सहित रंग और पिचकारी के साथ राज दंपति होली के रंगों के साथ खेलते हुए दिखाए गए हैं| 16 वीं सदी में अहमदनगर के एक चित्र में राज परिवार के एक दंपति ने बगीचे में झूले झूले पर झूलते हुए बताया गया है इनके साथ अनेक से सेविकाओं नृत्य गीत और रंग से खेलने में व्यस्त है,ल वह एक दूसरों पर पिचकारी और से रंग डालते हैं, ऐसा चित्रित है|
मध्यकालीन भारती मंदिरों के दीवाल चित्रों और आकृतियों में होली के सजीव चित्र देखने को मिलते हैं, उदाहरण रूप 17 वी सदी में मेवाड़ की एक कलाकृति में महाराणा ने खुद के दरबारियों के साथ चित्रित किए हुए दिखाए गए हैं, शासक बहुत सारे लोगों को भेंट दे रहे हैं, नृत्यांगना नृत्य कर रही है, सबके बीच एक रंग का कुंड रखा हुआ है, इस लघु चित्र में राजा ने हाथी दांत के सिंहासन पर बैठे हुए बताया गया है| जिनके गाल पर औरतें गुलाल लगा रही है|
आधुनिक इतिहास में होली का आधुनिक स्वरूप देखिए, होली के रंगों का त्योहार है, हास्य का त्यौहार है खुशी का त्यौहार है, परंतु आज होली के कुदरती रंगों की जगह रासायनिक रंगों का उपयोग किया जाता है, ठंड नशे हो रहे हैं, लोक संगीत की जगह फिल्मी गीतों का उपयोग हो रहा है| पहले के युग में लोग टिशू और कुदरती रंगो की होली खेलते थे, इस समय में ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के लिए लोग केमिकल युक्त रंगों से बाजार भरे दिखते हैं, जिनकी वजह से होली के बाद शरीर के अंगों में नित नए रोग दुख निकल आते हैं, हकीकत में रासायनिक रंग अपनी त्वचा के लिए बहुत नुकसान कारक है, और यह साबित भी हो चुका है| इस केमिकल्स के कलर्स में वाइटवॉश, वार्निश, पेंट, ग्रीस कॉल टू, विक्रय मिश्रित होने के कारण शरीर में खुजली और एलर्जी की सत्यता है बढ़ती जाती है| इसलिए होली के रंगो से खेलने से पहले हमें बहुत सारी चीज याने बताए गए केमिकल का ध्यान रख कर सचेत रहकर होली खेलनी चाहिए |
होली का प्राचीन शब्द आरंभ से ही होली के लिए शब्द ‘होलाका’ था भारत के पूर्वी भागों में यह शब्द प्रचलित था| जैमिनी और सब्र का निवेदन है कि ‘होलाका’ आर्यों द्वारा संपादित किया हुआ होना चाहिए| ‘होला’ एक कर्म विशेष है जो स्त्रियों के सौभाग्य के लिए संपादित है, इस कृत्य में’ राका’ देवता है, अन्य इन अन्य रूपों में की गई है,’ ‘होलाका’ क्रीडामें से एक है जो समग्र भारत में प्रचलित है, इनका उल्लेख वात्स्यायना के कामसूत्र में भी है जिन का अर्थ टीका कारों ने ‘जयमंगल’ किया है| हिमाद्रि ने ‘ बृहधम’ का एक श्लोक का उल्लेख मिलता है जिसमें ‘होली का पूर्णिमा’ को ‘हुताशनी’ कहां गया प्रमाण मिलता है| यह शब्द गुजरात में प्रचलित है होली को हुताशनी’ भी कहा जाता है, लिंग पुराण में फाल्गुन पूर्णिमा फाल्गुनी का कहा गया है जो बाल क्रीड़ा से पूर्ण है जो लोगों को विभूति, ऐश्वर्या देने वाली है| [काल,पृ.642] वराह पुराण इनको पटवास-विलासिनी कहता है|
होली के बारे में समग्र देश में एक मान्यता प्रचलित है जिनके अनुसार हिरण्यकशिपु की बहन होलिका की हत्या की स्मृति में यह त्यौहार मनाया जाता है, होलिका ने आग में जलने का वरदान प्राप्त था, उसने विष्णु भक्त प्रहलाद को इस अग्नि में जलाने का प्रयत्न किया था परंतु विष्णु भक्त प्रहलाद जी नहीं जले थे होलिका जल गई थी तब से होली की यह प्रथा भारत में प्रचलित है और इसी को ही मान कर हर साल होली मनाई जाती है|
शिक्षक में मैंने बताया है ” होलिका दहन” की “होली” का दहन ? आप भी सोचिए की हम होली के दिन होलिका का दहन करते हैं या गोबर के उपले जो पुरानी प्रथा है वह आज गांव में तो मिलता है परंतु शहरों में मिलना मुश्किल है इसलिए शहरों में तो हमने देखा है की उपयोग में नहीं लिया जाता वह लकड़िया, बांस, जैसी वस्तुओं का उपयोग करके मन को मना लेते हैं और “होली” का दहन करते हैं| गांव में गोबर के उपलो से जो होली मनाई जाती है वह शास्त्र के अनुसार गांव के चौराहे पर जमीन में गड्ढा बनाकर मिट्टी के मटके में गेहूं और नारियल का प्रसाद पानी के साथ डालकर गाढ़ा जाता है और ऊपर से मिट्टी डालकर जमीन जैसी जमीन बनाई जाती है, उनके ऊपर गोबर के उपलो से होली का रूप बनाया जाता है, प्रदर्शित किया जाता है, और बिन सनातनी या बिन हिंदू किसी के हाथ अग्नि से होली को प्रगट किया जाता है अग्नि दाह दिया जाता है, इस होली को ” होलीका” दहन मैं कहूंगा|
ऐसी ही रोचक सत्य बातें प्रमाण के साथ सत्य की शोध में हम आपके लिए लाते हैं आज का होली का दिन पवित्र दिन है और इस पवित्र दिन में हमने” होलीका” दहन का” सत्यनामा” प्रदर्शित करते हुए हमें आनंद की अनुभूति प्राप्त हो रही है| तो सत्य के साथ जुड़े रहने के लिए देखते रहिए- सुनते रहे “सत्य की शोध” का “सत्यनामा”
नरेंद्र वाला
विक्की राणा
“सत्य की शोध”