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प्रजापति दक्ष के घर ‘शिवा’ [सती] का जन्म | युवा होते ही शिव से ही शिवा के विवाह बात लेकर ब्रहमाजी को भेजना |

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नमस्कार ,

         प्रजापति दक्ष की अनुमति लेकर ब्रह्माजी नारद से कहते है | नारद ! हिमालय के कैलाश शिखर पर रहने वाले परमेश्वर महादेव शिव को लाने के लिए प्रसन्नता पूर्वक उनके पास गए, और उनसे प्रार्थना की ! महादेव, सती के लिए मेरे पुत्र दक्ष ने जो बात कही है, उसे सुनिए ! और जिस कार्य को अपने लिए असाध्य मानते थे, उसे सिद्ध हुआ ही समजीए |प्रभों, दक्ष ने कहा है कि ‘ मैं अपनी पुत्री भगवान शिव के ही हाथ में दूंगा; क्योंकि उन्हीं के लिए यह उत्पन्न हुई है| शिव के साथ सती का विवाह हो यह कार्य तो मुझे स्वत: ही अभीष्ट है ;फिर आप के भी कहने से इसका महत्व और अधिक बढ़ गया| मेरी पुत्री ने स्वयं इसी उद्देश्य से भगवान शिव की आराधना की है| और इस समय शिवजी भी मुझसे इसी के विषय में अन्वेषण या ने पूछताछ कर रहे हैं; इसलिए मुझे अपनी कन्या अवश्य ही भगवान शिव के हाथ में देनी है|विधात: वह भगवान शंकर शुभ लग्न और शुभ मुहूर्त में यहां पधारे| उस समय में उन्हें शिक्षा के तौर पर अपनि ये पुत्री समर्पित कर दूंगा|  ब्रह्माजी ने कहा महादेव, मुझसे दक्ष ने ऐसी बात कही है| अतः आप शुभ मुहूर्त में उनके घर चलिए और सती को विवाह करके ले आइए |

        शिव ने ब्रह्माजी की इस बात का स्वीकार किया 

                ब्रह्माजी की यह बात सुनकर भक्तवत्सल रूद्र अलौकिक गति का आश्रय ले, हंसते हुए मुझसे बोले- संसार की सृष्टि करने वाले ब्रह्माजी; मैं तुम्हारे और नारद के साथ ही  दक्ष के घर चलूंगा! अतः नारायण का स्मरण करो| अपने मरीचि आदि मानस पुत्रों को भी बुला लो| मैं उन सब के साथ दक्ष के निवास स्थान पर चलूंगा|  मेरे पार्षद भी मेरे साथ रहेंगे| 

  शिव जी शिवा के साथ लग्न की बात करने दक्ष के घर पाहुचे  

                ब्रह्माजी ने कहा नारद ! लोकाचार के निर्वाह में लगे हुए भगवान शिव के इस प्रकार आज्ञा देने पर मैंने  तुम्हारा और मरीचि आदि पुत्रों का भी स्मरण किया|  मेरे याद करते ही तुम्हारे साथ मेरे सभी मानस पुत्र मन में आदर की भावना लिए शीघ्र ही वहां आ पहुंचे|  उस समय तुम सब लोग हर्ष से उत्फुल्ल हो रहे थे| फिर रूद्र के स्मरण करने पर शिव भक्तों के सम्राट भगवान विष्णु भी अपने सैनिकों तथा कमला देवी के साथ गरुड़ पर आरूढ़ हो तुरंत वहां आ गए|  तदनंतर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि में रविवार को पूर्वा- फाल्गुनी नक्षत्र में मुझ ब्रह्मा और विष्णु आदि समस्त देवताओं के साथ महेश्वर ने विवाह के लिए यात्रा की|  मार्ग में उन देवताओं और विषयों के साथ यात्रा करते हुए भगवान शंकर बड़ी शोभा पा रहे थे|  वहां  जाते हुए देवताओं, मुनियों तथा आनंदमग्न  मन वाले प्रथम गणों का रास्ते में बड़ा उत्सव हो रहा था|  भगवान शिव की इच्छा से वृषभ,व्यध्र,सर्प,जटा और चंद्रकला आदि सब के सब उनके लिए यथा योग्य आभूषण बन गए|  तदनंतर वेगसे चलने वाले  बलवान बलीवर्द, नंदीकेश्वर पर अरुण हुए महादेव जी श्री विष्णु आदि देवताओं को साथ लिए क्षण भर में प्रसन्नता पूर्वक दक्ष के घर जा पहुंचे| 

             वहां विनीतचित वाले प्रजापति दक्ष समस्त आत्मीय जनों के साथ भगवान शिव की अगवानी के लिए उनके सामने आए|  उस समय उनके समस्त अंगों में हर्ष जनित रोमांच हो आया था|  स्वयं दक्ष ने अपने द्वार पर आए हुए समस्त देवताओं का सत्कार किया|  वह सब लोग सूर श्रेष्ठ शिव को बिठा कर उनके पाश्वर्भाग मे स्वयं भी मुनियों के साथ क्रमशः बैठ गए|  इसके बाद दक्षिणी मुनियों सहित समस्त देवताओं की परिक्रमा की और उन सब के साथ भगवान शिव को घर के भीतर ले आए| उस समय दक्ष के मन में बड़ी प्रसन्नता थी| उन्होंने सर्वेश्वर शिव को उत्तम आसन  देकर  स्वयं ही विधिपूर्वक उनका पूजन किया|  तत्पश्चात श्री विष्णु का, मेरा, ब्राह्मणों का, देवताओं का और समस्त शिवगणों का भी  यथोचित विधि से उत्तम भक्ति भाव के साथ पूजन किया|  इस तरह पूजनीय पुरुषों तथा अन्य लोगों सहित उन सब का यथोचित आदर सत्कार करके दक्ष ने मेरे मानस पुत्र मरीचि आदि मुनियों के साथ आवश्यक सलाह  की|  इसके बाद मेरे पुत्र दक्ष ने मुझ पिता से मेरे चरणों में प्रणाम करके प्रसन्नता पूर्वक कहा- प्रभु, आप ही वैवाहिक कार्य कराए | 

                                

     दक्ष ने अपनी पुत्री शिवा का हाथ शिव जी के हाथो दे दिया 

             तब मैं भी हर्ष भरे  ह्रदय से  धन्यवाद कह कर उठा और वह सारा कार्य कराने लगा|  तदनंतर ग्रहों के बल से युक्त शुभ लग्न और मुहूर्त में दक्ष ने हर्ष पूर्वक अपनी पुत्री सती का हाथ भगवान शंकर के हाथ में दे दिया|  उस समय हर्ष से भरे हुए भगवान वृषभध्वज ने भी  वैवाहिक विधि से सुंदरी दक्ष कन्या का पाणी ग्रहण किया|फिर मैंने, श्री हरि ने, तुम  तथा अन्य मुनियों ने, देवताओं और प्रथम गणों ने भगवान शिव को प्रणाम किया और सबने नाना प्रकार की स्थितियों द्वारा उन्हें संतुष्ट किया|  उस समय नाच गान के साथ महान उत्सव मनाया गया|  समस्त देवताओं और मुनियों को बड़ा आनंद प्राप्त हुआ|  भगवान शिव के लिए कन्यादान कर के मेरे पुत्र दक्ष कृतार्थ हो गए| शिवा और शिव प्रसन्न हुए तथा सारा संसार मंगल का निकेतन बन गया|  

    शिव और शिवा का लग्न प्रसंग पूर्ण हुआ 

               इस प्रकार देवों के देव महादेव का विवाह दक्ष पुत्री शिवा याने सती के साथ  संपन्न हुआ और उस समय से इस शुभ रात्रि को भारतवर्ष में शिवरात्रि का शुभ त्यौहार बड़ी ही धाम धूम से मनाया जा रहा है और आज शिवरात्रि का दिन है सभी भक्तजन पूर्ण रात्रि भजन भजन शिव भक्ति के साथ  संपूर्ण रात्रि बड़े ही उत्साह से पसार करेंगे|  यह प्रसंग शिव पुराण अध्याय 18 में प्रमाणित किया गया है| ऐसे ही विवाह के बाद  का शिव और शिवा का  सांसारिक जीवन की खबर आप तक पहुंचाएंगे, तो देखते रहिए’ सत्य की शोध’ का सत्यनामां………..

  नरेंद्र वाला 

[विक्की राणा] 

“सत्य की शोध” 

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