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अखंड भारत के खंडित,मलेशिया-थाइलेंड-सिंगापूर-इन्डोनेशिया-कंबोडिया-विएतनाम का ‘सत्यनामा’

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नमस्कार,

अखंड भारत के स्वर्ग समान देशो का ‘सत्यनामा’

#मलेशिया :

       वर्तमान के मुख्‍य 4 देश मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम और कंबोडिया प्राचीन भारत के मलय प्रायद्वीप के जनपद हुआ करते थे। मलय प्रायद्वीप का दक्षिणी भाग मलेशिया देश के नाम से जाना जाता है। इसके उत्तर में थाईलैंड, पूर्व में चीन का सागर तथा दक्षिण और पश्चिम में मलक्का का जलडमरूमध्य है। उत्तर मलेशिया में बुजांग घाटी तथा मरबाक के समुद्री किनारे के पास पुराने समय के अनेक हिन्दू तथा बौद्ध मंदिर आज भी हैं। मलेशिया अंग्रेजों की गुलामी से 1957 में मुक्त हुआ। वहां पहाड़ी पर बटुकेश्वर का मंदिर है जिसे बातू गुफा मंदिर कहते हैं। पहाड़ी पर कुछ प्राचीन गुफाएं भी हैं। पहाड़ी के पास स्थित एक बड़े मंदिर में हनुमानजी की भी एक भीमकाय मूर्ति लगी है। मलेशिया वर्तमान में एक मुस्लिम राष्ट्र है।

#सिंगापुर :

       सिंगापुर मलय महाद्वीप के दक्षिण सिरे के पास छोटा-सा द्वीप है। हालांकि यह मलेशिया का ही हिस्सा था। कहते हैं कि श्रीविजय के एक राजकुमार, श्रीत्रिभुवन (जिसे संगनीला भी कहा जाता है) ने यहां एक सिंह को देखा तो उन्होंने इसे एक शुभ संकेत मानकर यहां सिंगपुरा नामक एक बस्ती का निर्माण कर दिया जिसका संस्कृत में अर्थ होता है ‘सिंह का शहर’। बाद में यह सिंहपुर हो गया। फिर यह टेमासेक नाम से जाना जाने लगा। सिंगापुर का हिन्दू धर्म और अखंड भारत से गहरा संबंध है। 1930 तक उसकी भाषा में संस्कृत भाषा के शब्दों का समावेश रहा। उनके नाम हिन्दुओं जैसे होते थे और कुछ नाम आज भी अपभ्रंश रूप में हिन्दू नाम ही हैं। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के तहत यह दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रमुख बंदरगाह शहर में तब्दील हो गया। दूसरे विश्‍वयुद्ध के समय 1942 से 1945 तक यह जापान के अधीन रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद सिंगापुर वापस अंग्रेजों के नियंत्रण में चला गया। 1963 में फेडरेशन ऑफ मलाया के साथ सिंगापुर का विलय कर मलेशिया का निर्माण किया गया। हालांकि विवाद और संघर्ष के बाद 9 अगस्त 1965 को सिंगापुर एक स्वतंत्र गणतंत्र बन गया।

#थाईलैंड :

     थाईलैंड का प्राचीन भारतीय नाम श्‍यामदेश है। इसकी पूर्वी सीमा पर लाओस और कंबोडिया, दक्षिणी सीमा पर मलेशिया और पश्चिमी सीमा पर म्यांमार है। इसे सियाम के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीनकाल में यहां हिन्दू और बौद्ध धर्म और संस्कृति का एकसाथ प्रचलन था लेकिन अब यह एक बौद्ध राष्ट्र है। खैरात के दक्षिण-पूर्व में कंबोडिया की सीमा के पास उत्तर में लगभग 40 किमी की दूरी पर यूरिराम प्रांत में प्रसात फ्नाम रंग नामक सुंदर मंदिर है। यह मंदिर आसपास के क्षेत्र से लगभग 340 मी. ऊंचाई पर एक सुप्त ज्वालामुखी के मुख के पास स्थित है। इस मंदिर में शंकर तथा विष्णु की अति सुंदर मूर्तियां हैं।

       # सन् 1238 में सुखोथाई राज्य की स्थापना हुई जिसे पहला बौद्ध थाई राज्य माना जाता है। लगभग 1 सदी बाद अयुध्या ने सुखाथाई के ऊपर अपनी प्रभुता स्थापित कर ली। सन् 1767 में अयुध्या के पतन के बाद थोम्बुरी राजधानी बनी। सन् 1782 में बैंकॉक में चक्री राजवंश की स्थापना हुई जिसे आधुनिक थाईलैँड का आरंभ माना जाता है। यूरोपीय शक्तियों के साथ हुई लड़ाई में स्याम को कुछ प्रदेश लौटाने पड़े, जो आज बर्मा और मलेशिया के अंश हैं। 1992 में हुए सत्तापलट में थाईलैंड एक नया संवैधानिक राजतंत्र घोषित कर दिया गया।

#इंडोनेशिया :

       मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया के बीच हजारों द्वीपों पर फैले इंडोनेशिया में मुसलमानों की सबसे ज्यादा जनसंख्या बसती है। इंडोनेशिया का एक द्वीप है बाली, जहां के लोग अभी भी हिन्दू धर्म का पालन करते हैं। इंडोनेशिया के द्वीप, बाली द्वीप पर हिन्दुओं के कई प्राचीन मंदिर हैं, जहां एक गुफा मंदिर भी है। इस गुफा मंदिर को गोवा गजह गुफा और एलीफेंटा की गुफा कहा जाता है। 19 अक्टूबर 1995 को इसे विश्व धरोहरों में शामिल किया गया। यह गुफा भगवान शंकर को समर्पित है। यहां 3 शिवलिंग बने हैं। विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर यहीं पर है जिसे बोरोबुदुर कहते हैं और जो जावा द्वीप पर स्थित है। इस मंदिर की ऊंचाई 113 फीट है। यहीं पर विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर भी है जिसे प्रम्बानन मंदिर कहते हैं।

      #इंडोनेशिया में श्रीविजय राजवंश, शैलेन्द्र राजवंश, संजय राजवंश, माताराम राजवंश, केदिरि राजवंश, सिंहश्री, मजापहित साम्राज्य का शासन रहा। 7वीं, 8वीं सदी तक इंडोनेशिया में पूर्णतया हिन्दू वैदिक संस्कृति ही विद्यमान थी। इसके बाद यहां बौद्ध धर्म प्रचलन में रहा, जो कि 13वीं सदी तक विद्यमान था। फिर यहां अरब व्यापारियों के माध्यम से इस्लाम का विस्तार हुआ। 350 साल के डच उपनिवेशवाद के बाद 17 अगस्त 1945 को इंडोनेशिया को नीदरलैंड्स से आजादी मिली।

#कंबोडिया :

       पौराणिक काल का कंबोज देश कल का कंपूचिया और आज का कंबोडिया। पहले हिन्दू रहा और फिर बौद्ध हो गया। विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर परिसर तथा विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक कंबोडिया में स्थित है। यह कंबोडिया के अंकोर में है जिसका पुराना नाम ‘यशोधरपुर’ था। इसका निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53 ई.) के शासनकाल में हुआ था। यह विष्णु मंदिर है जबकि इसके पूर्ववर्ती शासकों ने प्राय: शिव मंदिरों का निर्माण किया था। कंबोडिया में बड़ी संख्या में हिन्दू और बौद्ध मंदिर हैं, जो इस बात की गवाही देते हैं कि कभी यहां भी हिन्दू धर्म अपने चरम पर था।

     माना जाता है कि प्रथम शताब्दी में कौंडिन्य नामक एक ब्राह्मण ने हिन्द-चीन में हिन्दू राज्य की स्थापना की थी। इन्हीं के नाम पर कंबोडिया देश हुआ। हालांकि कंबोडिया की प्राचीन दंतकथाओं के अनुसार इस उपनिवेश की नींव ‘आर्यदेश’ के शिवभक्त राजा कम्बु स्वायम्भुव ने डाली थी। वे इस भयानक जंगल में आए और यहां बसी हुई नाग जाति के राजा की सहायता से उन्होंने यहां एक नया राज्य बसाया, जो नागराज की अद्भुत जादुगरी से हरे-भरे, सुंदर प्रदेश में परिणत हो गया। कम्बु ने नागराज की कन्या मेरा से विवाह कर लिया और कम्बुज राजवंश की नींव डाली। कंबोडिया में हजारों प्राचीन हिन्दू और बौद्ध मंदिर हैं।

     कंबोडिया पर ईशानवर्मन, भववर्मन द्वितीय, जयवर्मन प्रथम, जयवर्मन द्वितीय, सूर्यवर्मन प्रथम, जयवर्मन सप्तम आदि ने राज किया। राजवंशों के अंत के बाद इसके बाद राजा अंकडुओंग के शासनकाल में कंबोडिया पर फ्रांसीसियों का शासन हो गया।

19वीं सदी में फ्रांसीसी का प्रभाव इंडोचीन में बढ़ चला था। वैसे वे 16वीं सदी में ही इस प्रायद्वीप में आ गए थे और अपनी शक्ति बढ़ाने के अवसर की ताक में थे। वह अवसर आया और 1854 ई. में कंबोज के निर्बल राजा अंकडुओंग ने अपना देश फ्रांसीसियों के हाथों सौंप दिया। नोरदम (नरोत्तम) प्रथम (1858-1904) ने 11 अगस्त 1863 ई. को इस समझौते को पक्का कर दिया और अगले 80 वर्षों तक कंबोज या कंबोडिया फ्रेंच-इंडोचीन का एक भाग बना रहा। कंबोडिया को 1953 में फ्रांस से आजादी मिली।

#वियतनाम :

     वियतनाम का इतिहास 2,700 वर्षों से भी अधिक प्राचीन है। वियतनाम का पुराना नाम चम्पा था। चम्पा के लोग चाम कहलाते थे। वर्तमान समय में चाम लोग वियतनाम और कंबोडिया के सबसे बड़े अल्पसंख्यक हैं। आरंभ में चम्पा के लोग और राजा शैव थे लेकिन कुछ सौ साल पहले इस्लाम यहां फैलना शुरू हुआ। अब अधिक चाम लोग मुसलमान हैं, पर हिन्दू और बौद्ध चाम भी हैं। भारतीयों के आगमन से पूर्व यहां के निवासी दो उपशाखाओं में विभक्त थे।

      हालांकि संपूर्ण वियतनाम पर चीनी राजवंशों का शासन ही अधिक रहा। दूसरी शताब्दी में स्थापित चम्पा भारतीय संस्कृति का प्रमुख केंद्र था। यहां के चाम लोगों ने भारतीय धर्म, भाषा व सभ्यता ग्रहण की थी। 1825 में चम्पा के महान हिन्दू राज्य का अंत हुआ। श्री भद्रवर्मन जिसका नाम चीनी इतिहास में फन-हु-ता (380-413 ई.) से मिलता है, चम्पा के प्रसिद्ध सम्राटों में से एक थे जिन्होंने अपनी विजयों और सांस्कृतिक कार्यों से चम्पा का गौरव बढ़ाया। किंतु उसके पुत्र गंगाराज ने सिंहासन का त्याग कर अपने जीवन के अंतिम दिन भारत में आकर गंगा के तट पर व्यतीत किए। चम्पा संस्कृति के अवशेष वियतनाम में अभी भी मिलते हैं। इनमें से कई शैव मंदिर हैं।

     19वीं सदी के मध्य में फ्रांस द्वारा इसे अपना उपनिवेश बना लिया गया। 20वीं सदी के मध्य में फ्रांस के नेतृत्व का विरोध करने के चलते वियतानाम दो हिस्सों में बंट गया। एक फ्रांस के साथ था तो दूसरा कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रेरित था। इसका परिणाम हुआ दोनों गुटों में युद्ध। इस जंग में नॉर्थ वियतनाम के साथ कम्युनिस्ट समर्थक देश थे। साउथ वियतनाम की ओर से कम्युनिस्ट विरोधी अमेरिका और उनके सहयोगी लड़ रहे थे। राष्ट्रवादी ताकतों (उत्तरी वियतनाम) का मकसद देश को कम्युनिस्ट राष्ट्र बनाना था।

       1955 से 1975 तक लगभग 20 सालों तक चले युद्ध में अमेरिका को पराजित हो पीछे हटना पड़ा। कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज से प्रेरित होकर ही वियतनामियों ने यह युद्ध जीता था। हालांकि कई विशेषज्ञों का मानना है कि 20 साल तक चले भीषण युद्ध में किसी की भी जीत नहीं हुई। युद्ध में 30 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे। इसमें 58 हजार अमेरिकी भी शामिल थे, वहीं मरने वालों में आधे से ज्यादा वियतनामी नागरिक थे। बाद में वियतनाम की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा सोशलिस्ट रिपब्लिक ऑफ वियतनाम बनाया गया।

     तो यह थी संक्षिप्त में भारत वर्ष के खंड-खंड होने की कहानी। दुख तो इस बात का है कि भारत विभाजन के समय जो विभाजन हुआ उसे आजादी मान कर जश्न मनाया जाने लगा। विभाजन भी स्पष्ट रूप से नहीं किया गया। मुट्ठीभर लोगों ने मिलकर विभाजन कर दिया। हालांकि इस अधूरी आजादी के बाद भी आज भी जारी है विभाजन का दर्द और विभाजन। वर्तमान में माओवाद, नक्सलवाद, आतंकवाद, अलगाववाद, अवैध घुसपैठ, धर्मान्तरण, वामपंथी राजनीति, जातिवाद और सांप्रदायिकता की राजनीति, भ्रष्टाचार, देशद्रोह ने आजादी और सीमाओं को खतरे में डाल दिया था।

       आज भारत को देखने का नज़रिया बादल गया है , एक नए भारत की और हम कदम पर कदम रख रहे है , देश की आज़ादी मे हमारे उस सामी के क्रांतिकारिओने ना दिन देखा ना रात, न धूप देखि न छाव ,क्रांतिकारिओकी तकदीर मे ऐसे भी छाव कहा थी | वो तो आज़ादी के दीवाने थे और उन्होने अपनी जान की बाज़ी लगाकर हमे आज़ादी दिलाई और कुछ मुट्ठीभर लोगोने मिलकर अखंड भारत की सनातनी सिंधुघाटी सभ्यता को हमसे जुदा कर दिया ,जो दुनिया का सबसे पुराना प्रमाण हमे मिलता है हड़प्पा और मोहेंजोदड़ों की संस्कृति जिनकी जीती जागती तस्वीर उस सिंधुघाटी मे आज भी है जो फिरसे किसी चाहनेवालों का आज़ादी के दिवानों का बेसब्री से इंतज़ार करके बैठी है, की कल कोई दिवाना आएगा और हमे हमसे बिछड़ी हमारी भारत माँकी गोद मे समा देगा , आज हजारो साल पुरानी हमारी संस्कृति का कोई चोकीदार भी नहीं है , अखंड भारत का सपना सच हो और फिरसे हम भाईचारे के साथ रास्ट्रप्रेम के साथ अखंड भारत मे निर्विवाद जीवन गुज़ारे| 

अखंड भारत के विषय मे लिखना बहुत कठिन होता है क्यू की भारत आज जितना महान है उनसे 10 गुना महान था , कुछ मुट्ठीभर लोगोने देश के सत्य इतिहास को मिटाने की कोशीशे तो बहुत की है पर सत्य सामने आहि जाता है , ऐसे अकहन्द भारत के कुछ सत्य को हमने अभीतक प्रसिद्ध हुए ग्रंथो से,इतिहासिक पुस्तकोसे, कई महान लेखको के लेख और डिजिटल मीडिया , इंटरनेट के ऐसे कई संदर्भोसे सत्य पुख्ता प्रमाण लेकर अखंड भारत की शृंखला का पहला भाग आपके लिए प्रस्तुत कर रहे है |

 

आपका सेवक -लेखक 

      नरेंद्र वाला 

   [विक्की राणा]

   ‘सत्य की शोध’  

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