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बॉम्बे-बम्बई-मुंबई-माहिष्कावती के नाम का ‘सत्यनामा’ | मुंबई की बस्ती सिर्फ 10 हज़ार थी,

गुजरात के राजा भीमदेव सोलंकी जिसने माहिम को बसाया था
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नमस्कार ,

 मुंबई से पहले ‘माहिम’ माहिम से पहले ‘माहिष्कावती’ माँ अम्बा आई

       माहिम नाम से तो भारत के सभी लोग परिचित ही होंगे | क्यो की माहिम ही ‘बॉम्बे’-‘बम्बई’-‘मुम्बई’ को जन्म देने वाला नाम है ,वो भी अपभ्रंश हुआ है ,असल मे माहिम का नाम “गुजरात के राजा भीमदेव सोलंकी ने “माहिष्कावती” नाम दिया था | जिनके बारे मे प्रमाण के साथ स्पष्ट करूंगा | 

         आज जहा बोरिबंदर विक्टोरिया टरमीनल स्टेशन है , मुंबादेवी मंदिर पहले वहा था| यहा माहिम याने [माहिष्कावती] की स्थापना गुजरात के राजा भीमदेव सोलंकी ने की थी | भीमदेव सोलंकी गुजरात के सोमनाथ-पाटन के पराजय के बाद गुजरात छोडकर भागकर यहा बस गए थे , जब यहा दरिया किनारे मछुआरो की मूल ‘कोली’ जनजाति यहा के आरंभिक ज्ञात निवासी थे | गुजरात के राजा भीमदेव सोलंकी ने यहा ‘माहिष्कावती’ नाम देकर स्थापना की थी | भीमदेव सोलंकी के साथ अजमेर के राजपूत भी साथ आए थे जो माँ अंबादेवी के भक्त थे | उन्होने यहा माँ अम्बा देवी का मंदिर स्थापित किया था |राजपूत ‘माँ अम्बा’देवी’ सम्बोधन करते थे ,इस लिए यहा के आरंभिक स्थानिक मछुआरे और भण्डारी लोग माँ को आई के नाम से संबोधित करते है ,जो आज भी महाराष्ट्र मे माँ को आई के नामसे ही संबोधित करते है | इस प्रकार यह लोग माँ अंबादेवी को ‘माँ अम्बा आई’ कहने लगे और इस सम्बोधन से इस मंदिर को ‘माँ अम्बा आई’ के मंदिर के नामसे जानने लगे और इस सम्बोधन से ही ‘माँ अम्बा आई’ से ‘मुंबाई’ और आखिर मे आज ‘मुंबई’ नाम से दुनिया भरमे जानते है ,जो आज भारत देश की आर्थिक राजधानी बन चुकी है |और भारतीय युवा वर्ग के लिए आज यह सपनोकी नगरी बोलिहूड़ मुंबई  सबके दिलो मे राज करता है ‘मुंबई” | 

       पोर्तुगीज भाषा मे ‘बोम बोहियों’ जो सारा बंदर से ‘बॉम्बे’नाम मिला उनका कोई खास प्रमाण नहीं मिलता है ,यह एक कल्पना मात्र है की की पोर्तुगीज के समय उनके बोम बोहियों शब्द से कुछ लोगोने बॉम्बे नाम दिया था जो आज भी स्वीकृत नहीं है | हा , भारत के लोगो की जुबा पे यह नाम आज भी सुना जाता है | 

        हककीकत मे मुंबई तो गुजरात के राजा भीमदेव सोलंकी ने यहा आकार आजके माहिम को ‘माहिश्कावती’ के नामसे ही बसाया था जो प्रमाण ऐतिहासिक पुस्तके और बहुत सारे इतिहासकारो के जरिये भी मिलता है | हककीकत येही है की राजपुतो ने उनकी देवी माँ अम्बा देवी को मछुआरे की जनजाति ‘कोली’ लोगोने जो ‘माँ अम्बा देवी’ को ‘माँ अम्बा आई ‘ का जो उच्चार दिया उनसे ही ‘मुंबाई’ और समय बितते बितते ;मुंबई” स्थापित हो गया | 

         जब शुरुआती दीनो मे माँ अंबाई के शाब्दिक उच्चारण मे स्थानिक लोगो द्वारा ‘माँ अंबाई ‘ से बांबाई’ और इसी शब्द से बंबई हुआ हो ऐसा जाना जाता है | और इसी बंबई शब्द का प्रमाण हमे हिन्दी फिल्मी एक गाने से भी मिलता है | ई है बंबई नगरिया तू देख बबुआ ….. तो इसी प्रकार लोगो की जुबा पे जो शब्द निकलते गए वैसे मुंबई के नाम भी बदलते गए |

          देखा जाए तो ‘माहिश्कावती’ माहिम’ माँ अंबाई’ बंबाई’ ‘बॉम्बे’ मुंबई से पहले भी इस क्षेत्र मे बस्ती थी लोग बस्ते थे ऐसा प्रमाण पाषाण काल के पत्थरो के औज़ार कांदिवली प्पए गए थे ,जो यहा पाषाण काल की मानव बस्ती का प्रमाण देते है |प्राचीन यूनानी खगोलशास्त्री व भूगोलशास्त्री “टालेमी” के समय मे यह क्षेत्र “हेप्टेनीशिया”के रूप मे जाना जाता था | और यह 1000 वर्ष ई.पू. मे फारस और मिश्र के साथ समुद्री व्यापार का मुख्य केंद्र था | तीसरी सतापदी ई.पू. मे यह अशोक के साम्राज्य का हिस्सा था , छठठी से आठवि शताब्दी मे यहा चालूक्यो का भी शाशन रहा है | जिनहोने अपनी ऐतिहासिक छाप “घरपुरी” याने “एलिफ्रटा द्वीप “ पर छोड़ी है जो चर्च गेट से समुद्री मार्ग से जहाज के जरिये लाखो लोग आज भी जाते है जिनका प्रमाण मौजूद है | 

          आज का पोष विस्तार ‘मलबार हिल’ एक समय मे जंगल विस्तार था ,जहा गौ माता -गायों के लिए 1728 मे घास चरा ने के लिए वार्षिक -सालाना 130/- एक्सो तीस रुपैया भाड़ेपे दिया गया था | मलबार हिल नाम इस लिए पड़ा की मलबारी चांचिए [समुद्री लुटेरे] अरबी समुद्र मे घूमते हुए जहाजो को लूट कर मलबार हिल किनारे के आसपास उनके जहाजो को टिकाके यहाके जंगलो मे छुप जाते थे | इस लिए इस क्षेत्र का नाम हमे मलबार हिल मिला है | आज जहा देश के नामी लोग ही बस्ते है ,जहा एक दिन जंगल मे पशु और मलबारी लुटेरे अपना आशियाना बना रखते थे | समय के साथ दिशाए भी घूम जाती है | 

        1348 मे गुजरात के आक्रमांकारी मुसलमानो ने मुंबई जीत लिया लिया था और यह गुजरात राज्य का हिस्सा बन गया था ,जिनका प्रमाण वसई मे मौजूद है | 

       मोगल बादशाह हुमायु ने जब गुजरात पे आक्रमण किया था तब 1534 मे गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने उस वक़्त पोर्तुगीजों के साथ संधि करके पोर्तुगीजोने सुलटाङको वसई सोप दिया था जब मुंबई वसई के आधीन था | और वसई का किला गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने ही बनवाया था | 

मुंबई अंग्रेज़ो के हाथो मे गया तब मुंबई की बस्ती सिर्फ 10 हजार ही थी |

         1665 मे जब पोर्तुगीजों के कब्जे से मुंबई अंग्रेज़ो के हाथो मे गया तब मुंबई की बस्ती मुश्किल से 10 दस हजार जितनी ही थी | तब यहा देश से तड़ीपार हुए लोग छुपने के लिए आशरा लिया करते थे | मतलब तब देश के गुंडे-मवाली क्रिमिनल लोगो के लिए छुपने का मुंबई एक सहज आशरा था | जो की आज भी है | हालकी आज समय बदला है, और बड़े बड़े शक्तिशाली गुंडो को भी मुंबई छोडना पड़ा है | आज मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है |और हम हिन्दुस्तानी के लिए मुंबई मेरी जान एक अभिमान है, स्वाभिमान है ,और होना ही चाहिए , क्यू की येही मुंबई हमे अंबानी-बच्चन-अदानी-टाटा-बिरला-मित्तल-और सदियो से हमारा मनोरंजन कराने वाले फिल्मी सितारो को दिया है | 

            1668 मे मुंबई ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथोमे चला गया था जो सन 1868 मे महारानी विक्टोरियाने ईस्ट इंडिया कंपनी से मुंबई को वापस अपने हाथो मे ले लिया था |                                                                                                                               एक समय मे गुजरात का सूरत अंग्रेज़ो का मुख्य  मथक था | सर ज्योर्ज के बाद जब 1669 के जुलाई मे जिराल्ड एंजिनयर प्रेसिंडेंट बने तब हम्फ्री कुक ने जो गाकट कागजात के दम पर मुंबई का कब्जा लिया था ,वो सूरत काउंसिल प्रेसिडेंट सर ज्योर्ज ओक्सनड़ को भी जवाब नहीं देता था , इस लिए कुक को सीधा करनेके लिए 1672 मे अंग्रेजोने अपना मुख्य मथक सूरत से मुंबई ले लिया | और पूरा राज्य कारभार जिराल्ड एंजिनियर ने कुक के हाथोसे अपने हाथो मे ले लिया | जिराल्ड एंजिनियर ने गुजरात से व्यापारियो ,कारीगरों,को आग्रह पूर्वक मुंबई आने के लिए निमंत्रित किए जाने पर और गुजराती  व्यापारी कारीगरो के सहकार से मुंबई के आर्थिक विकास की निव डाली गई | 

          मुंबई सात द्वीपो से बना है | अगर आप भूल गए है तो याद दिलाता हु | 1-कोलाबा , 2-माजागाऊ [मजगाऊ], 3-ओल्ड वुमन द्वीप ,4-वाडाला [वडाला],5-माहिम, 6-पारेल [परेल] , 7-माटुंगा-सायन स्थित है | 

          माहिम मे हज़रत मखदूम जाइनूद्दीन फकीरअली महिमी रेमतुल्लाही ताला आले की दरगाह शरीफ है जो सभी धर्म के लोगो मे बाबा के प्रति बहुत बड़ी आस्था है | यहा हर साल बाबा के नाम उर्ष शरीफ मनाया जाता है जहा सबसे पहली चादर बाबा को मुंबई पोलिस की और से चड़ाई जाती जाती है | बाबा मखदूम अली मजहब से ऊपर थे , वो सबके बाबा थे और आज भी है | बाबा मानवता वादी थे ,इतिहासकारो के मुताबित बाबा अरब देस के रहने वाले यात्री संतान थे , उनका परिवार 1372 मे माहिम मे ही बस गया था | बाबा कुरान शरीफ के बहुत बड़े विध्वान थे | यहा सभी धर्मो के लोग बाबा पर आश्था लिए आते है और सबकी आश्था पूर्ण होती है ऐसा प्रमाण मिलता है |

         मुंबई के प्रभादेवी मे गणपती बाप्पा ‘सिद्धिविनायक’ मंदिर मौजूद है जहा हरडीन हजारो लाखो श्रद्धालु बप्पा के दर्शन के ल्ये आते है ,उनका प्रभाव भारत के करोड़ो लोगो मे है और बड़े बड़े सितारे और उद्धयोग पति भी सिद्धिविनायक बप्पा के दर्शन के लिए आश्था लिए आते है और मनोकामनाए पूर्ण होती है ऐसा प्रमाण है | यहा हर साल गणपती का त्योहार जगविख्यात है और देश विदेशो से भी श्रद्धालु सिद्धिविनायक बप्पा के देशन के लिए चलकर भी आते है | यहा एक और आश्था का केंद्र लाल बाग के गणपती बप्पा का है जहा भी गणपती के त्योहार के चार दिन लाखो करोड़ो लोग बप्पा के दर्शन और चरण पर शीश जुकाने बड़ी बड़ी आश्था लेकर आते है , यहा का महत्व भी लाखो करोड़ो विविध धर्मी लोगोके रिदय मे है | और हर साल यहा मुंबई पोलिस के सहकार से बड़ा त्योहार मनाया जाता है जो जग विख्यात है | ऐसे तो पूरे मुंबई मे हर साल अपने अपने इलाको मे गणपती जी बिठाये जाते है और पूरा मुंबई गणपतिमय बन जाता है | और गली गली मे ‘गणपती बप्पा मोरया , अगले वर्ष लौकर या ‘ के नारे बड़ी ही श्रद्धा से लगाए जाते है | 

          मुंबई मे माँ महालक्ष्मी का मंदिर भी माहिम मे स्थित है जहा हरडीन श्रद्धालु हजारो लाखोकी संख्या मे दर्शन के लिए आते है , और एक महादेव बबूलनाथ का भी जग प्रख्यात मंदिर है यहा भी लाखोकी संख्या मे लोग एसएचआरडीएचडीएचसे दर्शन के लिए आते है इन सभी विषय मे खास शृंखला हम आएंगे | इसके लिए देखते रहिए ‘सत्य की शोध’ का ‘सत्यनामा’

माँ अम्बा देवी , माँ मबा आई , मुंबा देवी , मंदिर माहिम
मुंबई किसने बसाया था ? मुंबई के मालिक कौन थे , की अमुंबई अंग्रेजोने बसाया था ?

    नरेंद्र वाला 

  विक्की राणा 

 ‘सत्य की शोध’  

 

 

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6 comments

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