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भगवान श्रीकृष्ण की १६ हजार पत्निया और उनके संतानों के नाम पहली बार ‘सत्य की शोध’ का ‘सत्यनामा’

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 नमस्कार ,

         श्रीकृष्ण और उनकी पत्नीया और संतानों के नाम

       भगवान श्री कृष्ण लीलापुरुषोत्तम की 16108 पत्नियां थी, प्रत्येक पत्नीसे उन्होंने 10-10 पुत्र प्राप्त किए थे| वे समस्त पुत्र शक्ति, सौंदर्य, बुद्धि, यश, संपत्ति और त्याग के ऐश्वर्यो में अपने पिता के समान ही थे| ‘ यथा पिता तथा पुत्र’  श्री कृष्ण की 16108 पत्नियां राजकुमारी थी|  उनमें से प्रत्येक ने देखा कि श्री कृष्ण सदैव उनके महल में उपस्थित रहते हैं,और घर से बाहर कहीं नहीं जाते, तब वे सोचने लगी की श्रीकृष्ण उन पर अत्यंत अनुरक्त तथा भार्या- शासित पति है| उनमें से प्रत्येक पत्नी सोचती थी कि श्री कृष्ण उसके अत्यंत आज्ञाकारी पति है,  किंतु वास्तव में श्रीकृष्ण को उनमें से किसी के प्रति कोई आकर्षण नहीं था | यद्यपि  प्रत्येक पत्नी सोचती थी कि वह श्रीकृष्ण की एकमात्र पत्नी है| और वह उनकी अतिशय प्रिय है, किंतु भगवान श्रीक़ृष्ण आत्माराम है, आत्मा- पूर्ण है |और वे उनमें से किसी से भी दुर्व्यवहार नहीं रखते थे, व समस्त पत्नियों के प्रति समभाव रखते थे और उन को प्रसन्न करने के लिए उनसे आदर्श पति की भांति व्यवहार करते थे| उनको एक भी पत्नी की कोई आवश्यकता नहीं थी| वस्तुतः स्त्री होने के कारण उनकी पत्नियां तो श्रीकृष्ण के श्रेष्ठ पद को समझ सकती थी, ना ही उनके विषय में सत्य को ही जानती थी,की श्रीक़ृष्ण तो सबके है और सब श्रीक़ृष्ण के है | 

            भगवान श्रीकृष्ण की सभी पत्नियां, जो राजकुमार या थी, अत्यंत स्वरूप वान थी|  उनमें से प्रत्येक श्रीकृष्ण के कमलदल के समान नैनो के प्रति आकर्षित थी| वे उनके सुंदर मुख, विशाल बाहु ,चौड़े कान, मुदित करने वाली मुस्कान, विनोदी वार्तालाप और मधुर वचनों के प्रति भी आकर्षित थी | भगवान श्रीकृष्ण इन विशेषताओं से प्रभावित होकर वह आकर्षक वस्त्र धारण करती थी| एवं अपने स्त्री सुलभ शारीरिक आकर्षण से श्रीकृष्ण को अपने प्रति आकर्षित करने की चेष्टा करती थी| वह अपने स्त्रियोंचित मुस्कुराहट और भ्रू- भंगिमा से प्रदर्शित करती थी| इस प्रकार श्रीकृष्ण के काम को जागृत करने के लिए वह माधुर्य प्रेम के तीक्ष्ण बाण चलाती थी| फिर भी वे श्रीकृष्ण के मन को अथवा काम- क्षुधा  को उत्तेजित न कर सकती थी| इसका अर्थ यह है कि अपनी अनेक पत्नियों में से किसी के भी साथ भगवान लीला पुरुषोत्तम श्री कृष्ण ने संतान प्राप्ति के अतिरिक्त कभी भी योन संबंध नहीं रखा |

          भगवान श्री कृष्ण श्रेष्ठ देवताओं,जैसे ब्रह्मा आदि के लिए भी अगम्य है | किंतु द्वारका की रानियां इतनी भाग्यशाली थी कि उन्हें पति एवं जीवन साथी के रूप में भगवान प्राप्त हुए थे| वह पति- पत्नी की भांति एक साथ रहते थे एवं आदर्श पति के रुप में श्री कृष्ण उनसे ऐसा व्यवहार करते थे कि प्रत्येक क्षण उनके स्मिथ व्यापार, वार्तालाप एवं परस्पर मिलन की दिव्य आनंद में वृद्धि होती रहती थी| प्रत्येक रानी के पास सैकड़ों, हजारों दासिया थी फिर भी जब श्री कृष्ण अपनी हजारों रानियों के महल में प्रवेश करते थे, तब प्रत्येक रानी स्वयं श्रीकृष्ण का स्वागत करती थी| वे स्वयं शश्रीकृष्ण को उत्तम आसन पर बैठाति थी, समस्त आवश्यक सामग्री से उनकी उपासना करती थी एवं स्वयं उनके चरण कमलों का प्रक्षालन करती थी| वे स्वयं पान -सुपारी देती थी, उनके पैरों की थकान दूर करने के लिए उनके पैर दबा दी थी, सेवा करटी थी , उन्हें पंखा डूलाती थी जुला जुलाती थी और उन्हें समस्त प्रकार के चंदन का लेप अर्पित करती थी| विशेष, उनके कंठ में पुष्प माला पहना ती थी,  उनका केसविन्यास करती थी, उन्हें शैया पर सुलाती थी तथा स्नान करने में उनकी सहायता करती थी| इस प्रकार वे सभी प्रकार से श्री कृष्ण की सेवा करती थी और विशेष रूप से जब श्री भगवान श्री कृष्ण भोजन करते थे,तब वे स्वयं भगवान की सेवा करती थी वे सदैव भगवान की सेवा में संलग्न रहती थी|

           भगवान लीला पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण की 16108 पत्नियों में से प्रत्येक के 10 -10 पुत्र थे| प्रथम बार आपके सामने रखते हुए हर्ष की अनुभूति होती है | रुक्मिणीजी से श्री कृष्ण को 10 पुत्र पुत्र प्राप्त हुए थे, जिनके नाम थे -प्रधूम्न,चारुदेष्ण ,सुदेष्ण ,चारुदेह ,सुचारु,चारुगुप्त ,भद्रचारु,चारुचन्द्र ,विचारु और चारु | उनमें से कोई भी अपने गुणों में अपने दिव्य पिता भगवान श्री कृष्ण से हिन नहीं था| इसी प्रकार सत्यभामा के भी 10 पुत्र थे जिनके नाम थे- सुभानु, भानु,  प्रभानु, भानुमान, बृहभ्दानु ,अतिभानु, श्रीमान, एवं प्रतिभानु |  अगली रानी जांबूवती केवी 10 पुत्र थे जिनमें साम्ब  बड़ा था|  पुत्रों के नाम थे साम्ब,सुमित्र,पुरुजीत ,शतजित,सहस्त्रजीत,विजय, चित्रकेतु, वसु मान,  द्रविड़ और क्रतु | 

       भगवान श्री कृष्ण को जांबुवती के पुत्रों से विशेष स्नेह था| राजा नग्नजीत की पुत्री सत्या भी श्रीकृष्ण की पत्नी थी,उनसे भी भगवान श्री कृष्ण को 10 पुत्र प्राप्त हुए थे|  उनके नाम थे- वीर, चंद्र, अश्वसेन,वेगवान, वृष, आम, शंकु, वसु तथा कुंती |  उन सब में से कुंती अत्यधिक बलवान था| उनकी पत्नी कालिंद्री से भी श्रीकृष्ण को 10 पुत्र थे जिनके नाम है- श्रुत, कवि,वृष , वीर, सुबाहु,  भद्र, शांति, दर्श, पूर्णमास और सबसे छोटा सोमक | श्री कृष्ण की अगली पत्नी, मद्रास प्रदेश के राजा की पुत्री लक्ष्मणा से श्री कृष्ण ने 10 पुत्र प्राप्त किए थे, उनके नाम थे- प्रघोष,ट्रागवान,सिंह, बल,प्रबल,उद्धर्वग,महाशक्ति,सह,ओज तथा अपराजित | इसी भांति उनकी अगली पत्नी मित्रविंदा के भी 10 पुत्र थे, जिनके नाम थे- हर्ष, अनिल, गृध्र ,अन्नाद ,महान्स ,पावन,वह्न ,और क्षुधि | उनकी अन्य पत्नी भद्रा के भी 10 पुत्र थे, जिनके नाम थे-  संग्रामजीत,बृहतसेन ,शूर,प्रहरण,अरिजित,जय, सुभद्र,आयु और सत्यक | भगवान श्री कृष्ण की इन आठ प्रमुख रानियों के अतिरिक्त श्री कृष्ण के 16100 पत्नियां और भी थी और उनमें से प्रत्येक को 10 पुत्र थे

          रुकमणी जी के जयेष्ठपुत्र  प्रधूम्न ,का विवाह उनके जन्म के समय ही मायावती से हो गया था, बाद में पुनः उनका विवाह उनके मामा की पुत्री रूक्मावती से भी हुआ|  रूक्मावती से  प्रद्युम्न को अनिरुद्ध नामक एक पुत्र प्राप्त हुआ|  इस प्रकार श्री कृष्ण के परिवार में, उनको उनकी पत्नियों पुत्रों पुत्रों तथा प्रो पुत्रों को लेकर लगभग 10 अरब सदस्य थे ऐसा प्रमाण श्रीमद्भगवद्गीता श्रील व्यास देव कृत श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध का संक्षिप्त अध्ययन में आलेखन है | ऐसा प्रमाण श्री कृष्णमई भारत की कई संस्थाओं के ऐतिहासिक धार्मिक पुस्तकों में भी मिलता है |

      भगवान श्री कृष्ण की प्रथम पत्नी रुकमणी जी का बड़ा भाई रुक्मी श्री कृष्णा के साथ युद्ध में अत्यंत पीड़ित और अपमानित हुआ था, किंतु रुकमणी जी की विनती पर उसकी प्राण रक्षा हो गई थी| तब से रुकमी के ह्रदय में श्री कृष्ण के प्रति विशेष ईर्षा थी| और वह उनके प्रति सदैव  बैर- भाव रखता था|  किंतु फिर भी उसकी पुत्री का विवाह श्री कृष्ण के पुत्र से हुआ था एवं उसकी पौत्री का विवाह श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से हुआ था| जब महाराज परीक्षित ने इस विषय में श्री सुखदेव गोस्वामी से सुना, तब उन्हे यह तथ्य आश्चयजनिक लगा |की मुझे आश्चर्य है कि रुक्मी तथा श्री कृष्ण जिनमें परस्पर इतना गौर बैर था, अपने वंशजों के मध्य विवाह संबंध के द्वारा पुनः संयुक्त हो सके |  महाराज परीक्षित इस घटना का रहस्य जानने के लिए उत्सुक थे, अतएव उन्होंने श्री सुखदेव गोस्वामी से आगे प्रश्न किया| श्री सुखदेव गोस्वामी एक व्यवहारिक योगी थे , अतएव उनकी अंतर्दृष्टि की शक्ति से कुछ भी छुपा हुआ नहीं था| ऐसे योगियों से कुछ भी गुप्त नहीं रखा जा सकता है | 

     रुकमणी जी के गर्भ से उत्पन्न, श्री कृष्ण के जेष्ठ पुत्र प्रद्युम्न स्वयं कामदेव थे|  वह इतने सुंदर एवं आकर्षक थे कि रुक्मी की पुत्री रूक्मावती अपने स्वयंवर में प्रद्युम्न के अतिरिक्त और किसी का वरण कर ना सकी |  अतएव उस  स्वयंवर में अन्य सब राजाओं की उपस्थिति में उसने प्रद्युम्न को वरमाला पहनाई|  जब राजाओं  मैं युद्ध हुआ,  तब प्रद्युम्न विजई हुए , रुक्मी को अपनी सुंदर पुत्री उन्हें समर्पित करने को बाध्य होना पड़ा|  श्री कृष्ण ने रुक्मणी की बहन रुकमणी का हरण किया था, अतः उसके ह्रदय में सदैव उनके प्रति शत्रुता की ज्वाला धधकती रहती थी|  किंतु अब उसकी पुत्री ने प्रद्युम्न को अपने पति के रूप में चुना तब अपनी बहन रुक्मणी को प्रसन्न करने की कामना से वह विवाह का विरोध न कर सका |और सहमत हो गया|  इस प्रकार प्रद्युम्न रूक्मावती का पति बन गया| ऊपर वर्णित 10 पुत्रों के अतिरिक्त रुक्मणीजी और श्रीकृष्ण की एक सुंदर विशालाक्षी पुत्री भी थी |  और उसका विवाह कृतवर्मा के पुत्र बली से हुआ था | 

          इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण के वंश का विवरण ‘सत्य की शोध’ मे आपके ज्ञान मे रखते हुए आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है ,भगवान श्रीक़ृष्ण की लीलाओके और प्रसंग से परिचित होने के लिए देखते रहिए , पढ़ते रहिए, सुनते रहिए “सत्य की शोध” जय श्री कृष्ण ||

आपका सेवक-लेखक 

     नरेंद्र वाला 

   {विक्की राणा}

 ‘सत्य की शोध’ 

सत्य की शोध

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