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भारत पर सिकंदर के आक्रमण का ‘सत्यनामा’ पहली बार ‘सत्य की शोध’ मे एलेक्षजेंडर और सिकंदर एक ही है |

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        सिकंदर-एलेक्षजेंडर  का आक्रमण

 

        यूनानी और ईरानी ने दुनिया में सर्व शक्तिमान बनने के लिए  इसवी सन पूर्व चौथी शताब्दी में लड़ पड़े| मेसिडोनिया के सिकंदर के नेतृत्व में, यूनानीयों ने अंततः  ईरानी साम्राज्य को नष्ट कर दिया|  सिकंदर ने न केवल एशिया माइनर यानी तुर्की और इराक, बल्कि ईरान को भी जीत लिया था|  ईरान से वह भारत की और बड़ा, जाहिर है कि ऐसा उन्होंने भारत के अपार धन के लालच में किया|  हेरोडोटस,  जिससे इतिहास का पिता  कहते हैं, उसने और यूनान के अन्य लेखकों ने भारत की भव्यता का चित्रण किया था, जिससे सिकंदर यहां आक्रमण के लिए लालायित हुआ|  सिकंदर को भी भौगोलिक ज्ञान और प्राकृतिक इतिहास को जानने की लालच थी| उसने सुना था कि भारत के पूर्वी किनारे पर कैस्पियन सागर था| वह पूर्ववर्ती विजेताओं के मित्र किए कारनामों से भी प्रेरित था, जिसका अनुकरण कर वह उसे भी पार कर जाना चाहता था| 

          उत्तर-पश्चिम भारत की राजनीतिक स्थिति उसकी योजनाओं के अनुकूल थी|  यह क्षेत्र कई स्वतंत्रता राजशाहों और कबीलाई गण राज्यों में विभाजित था,लेकिन वह, जिन रियासतों के अंतर्गत आते थे, उससे वह संपूर्ण समर्पण भाव और दृढ़ता से जुड़े हुए थे|  सिकंदर ने इन रियासतों को बारी-बारी से जितना आसान समझा|  इन क्षेत्रों के शासक को में से दो शासक विख्यात थे- अभ्भी ,तक्षशिला के राजकुमार और पोरस, जिसका राज्य जेलम और चुनाव के बीच था| वे एक साथ मिलकर सिकंदर की बढ़त का प्रभावी रूप से विरोध कर सकते थे, लेकिन वे संयुक्त मोर्चा बनाने में असफल रहे; और इसलिए खैबर दर्रा बिना प्रहरी के था| 

        ईरान की विजय के बाद,  सिकंदर काबुल की  तरफ बड़ा, जहां से वह इसवी सन पूर्व 326 में खैबर दर्रे से होकर भारत की ओर चल दिया|  सिंधु तक पहुंचने में उसे 5 महीने लगे| तक्षशिला का शासक अभ्भी , सिकंदर से शुद्ध पराजित हो गया और सिकंदर की सेना और मजबूत हो गई साथ ही उसने अपने खजाने की भरपाई भी की| जेलम पहुंचने पर सिकंदर को पहले और कड़े प्रतिरोध का सामना पोरस से करना पड़ा| हालांकि, सिकंदर ने पोरस को हरा दिया, किंतु वह उसकी बहादुरी और साहस से प्रभावित था| इसलिए उसने अपने राज्य को उसके पास ही रहने दिया और उसे अपना सहयोगी बना लिया| सिकंदर व्यास नदी तक पहुंच चुका था| वो उत्तर  की तरफ आगे बढ़ना चाहता था|  लेकिन उसकी सेना ने उसके साथ जाने से इंकार कर दिया| यूनानी सैनिक युद्ध के कारण थकान और बीमारी के शिकार हो गए थे| बाहर जल और अभी से  बीमार बना दिया था| वह हिंदू के किनारे भारतीय लड़कों के युद्ध कौशल से भी परिचित हो चुके थे, जिससे वे आगे बढ़ने से कतरा रहे थे| यूनानी इतिहासकार एलियन बताते हैं कि युद्ध की कला में भारती उस समय के क्षेत्र में रहने वाले अन्य राष्ट्रों से कहीं ज्यादा श्रेष्ठ थे| विशेषकर, ग्रीक सैनिकों को गंगा पर तैनात एक विशाल सेना के बारे में भी सूचना थी| यह स्पष्ट रूप से नंदू के शासनकाल का मगध साम्राज्य था, जिनके पास सिकंदर से भी कहीं अधिक सैनिक थे, इस, आगे बढ़ने के लिए सिकंदर के कहीं आदेशों के बावजूद, ब्रिक सैनिकों ने आगे बढ़ने से मना कर दिया|  सिकंदर ने दुखी होते हुए कहा- मैं उनको जगाने की कोशिश कर रहा हूं जो निष्ठा हीन और कायर है, जो भाई से ग्रसित है| जो राजा अपने दुश्मनों के हाथों कभी नहीं हारा था, उसे अपने ही लोगों ने हरा दिया था|  उसे अपने ही लोगों ने पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया और पूर्वी साम्राज्य प्रशासन का उसका सपना अधूरा ही रह गया|  लौटते समय सिकंदर भारतीय सीमा के अंत तक पहुंचे हुए कही छोटे गणराज्य को पराजित करता गया|  वह निरंतर 19 महीनों[ई .पू . 326-5] तक भारत में युद्धरत रहा , जिससे उस उसके पास अपने विजय को व्यवस्थित करने तक का भी समय नहीं मिला|  फिर भी,  उसने कुछ व्यवस्थाएं की|  विविध राज्यों को अधिकांशत: उसके ही शासकों को सौंप दिया गया था, जिन्होंने उसकी अधीनता स्वीकार ली थी|  हालांकि, उनकी क्षेत्रीय संपत्ति को तीन भागों में विभाजित कर तीन ग्रीक राज्यपालों के अधीन रखा गया था|  उन्होंने इस क्षेत्र में अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए कहीं शहरों की स्थापना भी की थी| 

             सिकंदर के आक्रमण का भारत पर प्रभाव

            सिकंदर का भारतीय अभियान एक विजय सफलता थी|  सिकंदर के आक्रमण ने प्राचीन यूरोप को प्राचीन दक्षिण एशिया के निकट शंकर संपर्क में आने का पहला अवसर प्रदान किया |  उन्होंने अपने साम्राज्य को ऐसे भारतीय प्रांत से जुड़ा जो ईरान द्वारा विजित प्राप्त की तुलना में काफी बड़ा था|  हालांकि, यूनानी शासक को वाला क्षेत्र जल्द ही मौर्य शासकों के अधीन हो गया| 

                 सिकंदर के अभियान ने भूमि और समुद्र के माध्यम से चार अलग-अलग मार्ग प्रशस्त किए, भारत और ग्रीस के बीच कई क्षेत्रों में प्रत्यक्ष संबंध स्थापित होना इस आक्रमण का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम था|  जिससे यूनानी व्यापारियों और कारीगरों को व्यापार करने की मौजूदा सुविधाएं बढ़ गई| 

                इस आक्रमण से वहां गिरी किया यूनानी उपनिवेश स्थापित हुए|  अजब सिकंदर के आक्रमण से पहले भी उत्तर पश्चिम में रहने वाले कुछ यूनानी यों के बारे में सुना गया है,  इनमें सबसे महत्वपूर्ण काबुल क्षेत्र में अलेक्जेंड्रिया, जेलम तट पर बौकेफल  एवं सिंध में अलेक्जेंड्रिया शहर थे|  हालांकि मौर्य ने पूरे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, कि और, दोनों के शासनकाल में ग्रीक वहां बने रहे थे|

                    सिकंदर को उस रहस्यमई सागर की भूगोल में बहुत रुचि पैदा हो गई थी,  जिसने उन्हें सिंध के मुहाने पर पहली बार देखा था|  इसलिए उसने तटों को तलाशने और सिंह के मुहाने से यूफ्रेट्स [महानद ] तक बंदरगाहों की खोज करने के लिए एक जहाजी बेड़ा अपने मित्र नीयकर्ष के साथ भेजा, नतीजा यह निकला, कि सिकंदर के इतिहासकार उस मूल्यवान भौगोलिक इतिहास को लिख गए; जिसमें सिकंदर के अभियानों का सही-सही उल्लेख है, जिससे हमें आगामी घटनाओं के सही भारती कालक्रम स्थापित करने में मदद मिलती है|  सिकंदर के इतिहासकारों से हमें समय की सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है|  वह हमें सती प्रथा, गरीब माता-पिता द्वारा बाजारों में लड़कियों और उत्तर-पश्चिम भारत में बैलों की अच्छी नस्ल की बिक्री के बारे में बताते हैं|  सिकंदर ने वहां से गिरीश में उपयोग करने के लिए 200000 बेल मेसिडोनिया भेजें| बढ़ईगिरि की कला भारत में सबसे अधिक प्रख्यात थी समृद्ध थी; बढ़ाई रथ, नाव और जहाजों का निर्माण करते थे| 

               उत्तर-पश्चिम भारत में छोटे राज्यों की क्षमता नष्ट कर सिकंदर के आक्रमण ने उस क्षेत्र में मौर्य साम्राज्य के विस्तार के लिए मार्ग प्रशस्त किया|  जिससे उन्होंने नंदू की शक्ति का सर्वनाश कर दिया|  मां संस्था चंद सिख काम करते देखा और इससे कुछ ज्ञान प्राप्त किया, जिससे उन्होंने नंदू की शक्ति का सर्वनाश कर दिया था|  इस प्रकार सिकंदर को एलेग्जेंडर भी कहीं इतिहासकारों के मत से कहा गया है इसका प्रमाण हमें यह मिलता है ऊपर हमने बताया काबुल क्षेत्र में अलेक्जेंड्रिया नाम का एक प्रदेश है जो झेलम तत्पर सिंध में अलेक्जेंड्रिया शहर था शायद वहां से जब वह भारत आया तब उनको एलेग्जेंडर माना गया या कहा गया हालांकि अलेक्जेंडर ही सिकंदर है और सिकंदर ही एलेग्जेंडर है ऐसा प्रमाण हमें कई ऐतिहासिक पुस्तकों  से प्रमाण मिलता है|  इसी तरह के भारत के कहीं इतिहास के पत्ते जो नष्ट हो चुके हैं या तो भुला दिया गया है उन सभी भूले हुए या नष्ट किए हुए इतिहास को सत्य की शोध आपके सामने आपके लिए प्रमाण के साथ सत्य नामा प्रस्तुत करते रहेंगे| इसलिए देखते रहिए ‘सत्य की शोध’ का सत्य नामा |

   नरेंद्र वाला

  [विक्की राणा]

 “सत्य की शोध”  

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