satyakishodh
महात्मा गांधी के बाल विवाह
Blogइतिहासप्रेरणाशख्सियतसाहित्य

मोहनचंद गांधी [मोनियो] का बाल विवाह, खुद की कलम से [सत्य के प्रयोग]

Share

 नमस्कार,

 

 मोहनचंद गांधी ‘मोनिया’ का बाल विवाह

     काठियावाड़ में विवाह का अर्थ लग्न  है, सगाई नहीं|  दो बालकों को ब्याहने के लिए मां-बाप के बीच होने वाला करार सगाई है| सगाई टूट सकती है| सगाई के रहते वर यदि मर जाए तो कन्या विधवा नहीं होती| सगाई में वर कन्या के बीच कोई संबंध नहीं रहता| दोनों को पता भी नहीं होता| मेरी एक एक करके तीन बार सगाई हुई थी| यह तीन सगाई कब हुई, होगी मुझ|

       हम तीन भाई थे| उनमें सबसे बड़े का विवाह हो चुका था| मजले भाई मुझसे दो या 3 साल बड़े थे|  घर के बड़ों ने एक साथ तीन विवाह करने का निश्चय किया- मजले भाई का, मेरे काका जी के छोटे लड़के का, जिनकी उम्र मुझसे एकाद साल शायद अधिक रही होगी और मेरा|

       हम दो भाइयों को राजकोट से पोरबंदर ले जाया गया| वहां हल्दी चढ़ाने आदि की जो विधि हुई, वह  वह मनोरंजन होते हुए भी उसकी चर्चा छोड़ देने लायक है|

       पिताजी दीवान थे, फिर भी थे तो नौकर ही, 30 पर राज- प्रिय थे, इसलिए अधिक पराधीन रहे| ठाकुर साहब ने आखिरी घड़ी तक उन्हें छोड़ा नहीं| अंत में जब छोड़ा तो विवाह के 2 दिन पहले ही रवाना किया| उन्हें पहुंचाने के लिए खास डाक बैठाई गई| पर! पर विधाता ने कुछ और ही सोचा था| राजकोट से पोरबंदर सा कोर्स है| बैलगाड़ी से 5 दिन का रास्ता था| पिताजी 3 दिन में पहुंचे| आखिरी मंजिल में तांगा उलट गया| पिताजी को कड़ी चोट आई| हाथ पर पट्टी, पीठ पर पट्टी| विवाह- विषयक उनका और हमारा आधा आनंद चला गया| फिर भी विवाह तो हुए ही| लिखे मुहूर्त कहीं चल सकते हैं? मैं विवाह के बाल उल्लास में पिताजी का दुख भूल गया|

     मंडप में बैठे, फेरे फेरे, कंसा- खिलाया और तभी से वर वधु साथ में रहने लगे| वह पहली रात! दो निर्दोष बालक अनजाने  संसार सागर में कूद पड़े!  भाभी ने सीख लाया कि मुझे पहली रात में कैसा बर्ताव करना चाहिए| धर्मपत्नी को किसने सीख लाया, 100 पूछने की बात मुझे याद नहीं| जहां  संस्कार बलवान है, वहां सिखावन सब गैर- जरूरी बन जाती है| धीरे-धीरे हम एक दूसरे को पहचानने लगे, बोलने लगे| हम दोनों बराबरी की उम्र के थे| पर मैंने तो पति की सत्ता चलाना शुरु कर दिया| कस्तूरबाई में यह भावना थी या नहीं, इसका मुझे पता नहीं| वह निरक्षर थी| स्वभाव से सीधी, स्वतंत्र, मेहनती और मेरे साथ तो कम बोलने वाली थी| उस आज्ञा आसन| अपने बचपन में मैंने कभी उसकी यह इच्छा नहीं जानी कि मेरी तरह वह भी पढ़ सके तो अच्छा हो| इससे मैं मानता हूं कि मेरी भावना एक पक्षी थी| मेरा विषय सुख एक स्त्री पर ही निर्भर था और मैं उस सुख का प्रति घोष चाहता था| जहां प्रेम एक पक्ष की ओर से भी होता है, वहां सर्वास में दुख तो नहीं ही होता| मुझे कहना चाहिए कि मैं अपनी स्त्री के प्रति विसयाशक्त था |  शाला में भी उसके विचार आते रहते हैं| कब रात पड़े और कब हम मिले, ये| वियोग असह्य था| अब वर्क में कष्ट जग| मेरा ख्याल है कि इस आ सकती के साथ ही मुझ में कर्तव्य परायणता ना होती तो मैं व्याधि ग्रस्त होकर मौत के मुंह में चला जाता, अथवा इस संसार में बहुत ग्रुप बन कर जिंदा रहता| सवेरा होते ही नित्य कर्म में तो लग ही जाना चाहिए, किसी को धोखा तो दिया ही नहीं जा सकता अपने इन विचारों के कारण में बहुत से संकटों से बचा हु | [सत्य के साथ प्रयोग ‘महात्मा गांधी’]

 

   नरेंद्र वाला

[विक्की राणा]

‘सत्य की शोध’ 

 

Related posts

शिव+शिवा=विवाह | शिव और शिवा पति-पत्नी का हिमालय जीवन और शिव द्वारा पत्नी शिवा का त्याग |

cradmin

पद्मश्री,पद्मभूषण,उस्ताद ज़ाकिर हुसैन जी को 72 वे जन्मदिन की शुभकामनाए | जन्म 9 मार्च 1951 |

cradmin

विदेशो के ये शिव मंदिर पाकिस्तान सहित विश्वभर मे शिव का प्रमाण देते है |

cradmin

Leave a Comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Privacy & Cookies Policy