नमस्कार,
मनुष्य के जीवन मे दुखोका सबसे बड़ा कोई कारण है तो ‘राजकारण’है
हम सब जानते ही है की एक छोटेसे गाउ से लेकर बड़े बड़े मेट्रो शहर मे हर एक मनुष्य अपने अपने जीवन मे खुद को दुखी ही मानता है | तो सुखी कौन है ? यह सवाल हमारे सामने आता है , अब जब सवाल सामने आता है तो जवाब भी ढूँढना आवश्यक है , क्यू की हम मानव जाती से है पशु या पक्षी योनि से नहीं है | इस पृथ्वी पर सबसे बड़ा बुद्धिवान प्राणी हम मानव समाज से है , और मानव समाज ही सबसे ज्यादा दुखी है ऐसा क्यू ? पृथ्वी पर सबसे बड़े बुद्धिजीवी प्राणी तो हम मानव ही है संजदार भी हम ही है , सबसे बड़े ज्ञानी भी हम ही है ,सबसे बड़े ताकतवार प्राणी भी हम ही है जो कितने भी बड़े शरीर वाले अन्य पशु प्राणी को भी अपने बस मे कर लेता है यहा मानव अपनी बुद्धि का उपयोग करता है |
गौतम बुध्ध ने बहुत ही सत्य वचन इस पृथ्वी को दिया है की संसार दुखोसे भरा है , उन दुखोका कारण है , और उन कारणो का निवारण भी है , तो हमे दुखी होने की जरूरत ही क्यू हो रहगी है और मानव दुखी क्यू है ? क्यू की वो अपने विचारो से जुकना नहीं चाहता है , इसी कारण ही दुखो के पहाड़ उन पर गिर पड़ते है , हककीकत मे यह विचारो से जुकना नहीं चाहता हुआ मानव हककीकत मे बड़ा हो ही नहीं शकता जो अपने आप को हममेशा बड़ा शाबित करनेकी कोशिश मे रेहता है |
अब यहा इस दुखो का मूल कारण राजकारण क्यू आता है ? क्यू की हमारी कोई भी समस्या को हल करनेकी शक्ति हमे ईश्वर ने कुडर ने दी ही है फिरभि हम छोटी छोटी समस्याओको लेकर किसी की मदद की आवश्यकता को बिचमे लाते है और हमारी खुद की समस्या को खुद के बदले एक राजकारणी के पास जाते है जो खुद भी किसी की मदद के शिवा एक कदम आगे बाद नहीं शकता है , अब यहा सबसे बड़ी समस्या उत्तपन्न हो जाती है जब आप अपनी समस्या को एक राजकारणी के पास प्रगत करते हो |
राजकारणी खुद दुखी होता है अपनी शीट अपना औदा और खास अपनी लालाच को समेटने मे लगा रहना पड़ता है , आज के दौर मे बहुत ही कम राजकारणी प्राप्त है जो खुदकों राजकारणी नहीं परंतु समाज सेवक के तौर पर प्रस्तुत करता है और हककीकत मे भी वो समाज सेवक ही होता है अपर वो सत्य के साथ रहते भी समाज का एक सच्चा सेवक होते हुए भी वो भी राजकारण की घिनौनी नीति का शिकार हो जाता है और दुखोका शिकार बन जाता है | यहा हम याद करेंगे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री को की आज भी आप राजधानी मे स्थित उनके दफ्तर मे जाओगे तो विश्वास नहीं कर पाओगे की यह दफ्तर हमारे भारत के प्रधानमंत्री का दफ्तर है , देखिये यहा भारत के एक सत्या सेवक पवित्र विचार के मालिक की मृत्यु का भी एक रहस्य आज है जो सुलजा नहीं है ,इसी तरह देश की आज़ादी के लिए आज़ाद हिन्द फौज की रचना करनेके के लिए मजबूर हुए देशभक्त सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु का कारण आजतक कोई जान नहीं शाके है , दुख तो सबसे बड़ा आज भी यह है की उनका शरीर भी हमे प्राप्त नहीं हुआ वो रहस्य रहस्य ही है यहा भी मे इस दुख का कारण राजकारण ही लाऊँगा |
पृथ्वी पर मानव समाज का दबदबा है , जो चाहे वो कर शकता है बस उनके पास शक्ति कितनी है ? येही मापदंड को यही मानव समाज नापते रेहता है | यही मानव शरीर से भलेही अशक्त हो पर आर्थिक शाकिओ का वो मालिक् है तो फिर वो उनका सहारा लेकर और बड़ी ऊंचाइओ पर छड़ना चाहता है जो एकदिन उनसे भी बड़ी शक्तिओ वाला कोई सामने आ जाता है तो उनकी राज नीतिओका शिकार बन जाता है और एक दिन सबकुछ होते हुए अपने जीवन मे सुख समृद्धि मे जीवन बिताता था वो भी और बड़ी शक्तिओको प्राप्त करने की लालच मे जितनी शक्ति थी वो भी गंदे राजकारण का शिकार बन जाता है और दुखो के बड़े बड़े पहाड़ उनपे गिर पड़ते है , देखिये यहा सबसे बड़ा दुखो का कारण कहासे आया ? इंसान खुद के दायरे मे संसार के मूलभूत नियमोसे जीवन गुजारे तो दुख उनके कदमो को छु भी नहीं शकता है |
आपका सेवक -लेखक
नरेंद्र वाला
[विक्की राणा]
‘सत्य की शोध’
