



नमस्कार ,
बीस साल की राधा एक मध्यम परिवार मे कुछ ही समय पहले एक साधारण किशन नामके लड़के के साथ ब्याह करके आई है | राधा बहुत ही सुंदर है जिसे पहली ही बार देखते ही किशन मोह मे पड गया था ,और मुहसे शब्द निकाल गया था ! कितनी सुंदर प्यारीसी गुड़िया जैसी है | राधा के पिता एक मजदूर है ,जो कड़ी मेहनत करके अपना घर परिवार का गुज़ारा चलाते है , विवाह से पहले राधा के पिता ने समधी को स्पष्ट कर दिया की में एक गरीब मजदूर हु , मेरी बेटी राधा मेरी एक लौटी औलाद है, पर उनको देने के लिए मेरे पास आशीर्वाद के सिवा कुछ भी नहीं है | मेरी परिस्थिति को देखकर आप इस विवाह के लिए राजी-खुशी है तो हमारी भी राजी खुशी है |
राधा और किशन सिर्फ नाम के राधा किशन नहीं है , वास्तव जीवन मे भी दोनों राधा-और कृष्ण की तरह एक दूसरे को मन और हृदय से प्रेम करते है , चाहते है किशन अपने अंगत जीवन मे राधा को प्यारसे गुड़िया कहकर ही बुलाता है | राधा अपने ससुराल मे बहुत खुश है , मगर हर परिवार मे सभी लोग महान विचार धारक नहीं होते है , और माँ-बाप अपने बच्चो के लिए बच्चो की खुशी खुद की खुशी समजते है ऐसी समजदारी और महानता भी सभी परिवार के सदस्यो मे नहीं होती है ,इसी तरह राधा के ससुराल मे भी कुछ औरते है जो ताने मारने के लिए एक मौका भी नहीं छोड़ती है | राधा एक गरीब मात-पिता की लड़की जरूर है मगर उनके मात-पिता ने बचपन से ही जीवन की हककिकतों को यानि की हर बेटिया ब्याह करके अपने सही घर जो ससुराल ही है | वहा के सभी सदस्य को पूरे परिवार को अपना परिवार मानकर ,अपनाकर वहा के सुख-दुख को भी अपनाकर हस्ते हुए जीने का नाम ही ‘बेटिया’होती है | यह समाज राधकों बचपन से ही मात-पिता ने दी थी जो दहेज की किम्मत से लाखो गुना ज्यादा होता है |
राधा परिवार की उस औरतों के ताने जो मौका मिलते ही राधा को सुनाती रहती थी की सिर्फ मुखड़ा सुंदर होना ही सब कुछ नहीं होता , लकड़ी अपने माइके से कितना माल, रुपैया ,सोना लाई है ? उनसे ही ससुराल मे बहू को इज्जत मिलती है , इनको देखो नाम तो कृष्ण की राधा जैसा है पर लाई क्या ? खाख ? |और हमारा किशन तो सच मे ही कृष्ण कन्हैया है सर आखो पे रखता है गरीब राधा रानी को !| पर ये हमारी राधा रानी साथ मे क्या लाई है ? कुछ भी नहीं सिवा एक पुराने फटे कपड़े का खिलौना , जो बच्ची को अभी भी ,बीस साल की होते हुए भी और ब्याह के दहेज मे एक फूटी कौड़ी की जगह पुराने फटे कपड़ो से बनी ये ‘गुड़िया’ साथ लाई है |
राधा को पति की तरफ से बेहद प्यार मिलता था | सास ससुर से भी प्यार मिलता था | और परिवार की कुछ औरते जो हर मौके पर राधा को दहेज के लिए ताना मारती थी, उसकी बात किसी के पास छेडती भी नहीं थी , क्यू की की राधा भलेही एक मजदूर बाप की बेटी है ,पर संस्कार अमूल्य दिये थे , इस लिए सहा करती थी, और किसिकों भी इस बात का एहसास भी नहीं होने देती थी | इस तरह दिनबदिन कट्टू वाक्य प्रयोग करने वाली औरतों के कट्टू वाक्य , ताने मारने मे जब भी पूराने फटे कपड़ो से बना खिलौना जो राधा की जान से प्यारी ‘गुड़िया’ है | राधा इस ‘गुड़िया के बारे मे जब भी ताने सुनती थी, तब कुछ पल के लिए असह्य हो जाता था और ताने मारने वाली औरते के जहर भरे शब्दो के तीर सीधे राधा के हृदय मे लगते थे | पर क्या करे! संस्कार जो महान थे ,इस लिए कितनेभि धारदार तीखे जहरीले शब्दो के तीर हो, राधा चुपचाप हसकर सेह लेती थी ,क्यू की सत्य था |
एकबार किशन ने राधोको बड़े फुर्सत के वक़्त प्यार से मुशकुराते हुए पूछ लिया | की राधा ! यह ‘गुड़िया’ कितनी प्यारी है |तेरी बचपन की गुड़िया है ना ? इससे ही खेला करती होगी | राधाने गुड़िया को अपने सिने से लगाकर प्यार जताया , चूमने लगी | ये सिर्फ गुड़िया नहीं है किशन | मेरे लिए ये अनमोल खजाना है | जिनकी किम्मत नहीं लगाई जाती है | हा , बचपन पूरा इस प्यारी सी गुड़िया के साथ ही बीता है , बहुत सी यादे इस गुड़िया से जुड़ी हुई है , जो में जीवनभर भूलना नहीं चाहती , किशन ने मुशकुराते हुए पूछा ! राधा रानी मुजे तो बताओ बताओ इस अनमोल गुड़िया की कहानी , और ऐसी कौनसी यादे है जो तुम कभी भी भूलना नहीं चाहती ?
राधा किशन दोनों अपने कमरे मे थे प्यार भरी बाते करते करते किशन के इस सवाल को नज़र अंदाज़ करके कहा ! छोड़ो इस छोटीसी गुड़िया को | आपके पास तो आपकी यह जीती जागती आपकी गुड़िया ,जो पूरे दिनसे आपके आने का इंतज़ार करती है| वो आपके पास है , क्या यह बड़ी गुड़िया आपको प्यारी नहीं लगती ? किशन बड़े ही प्यार से राधा के बालो की लटकती हुई लटो को सवारते हुए प्यार भरी दुनिया मे खो जाते है |
दूसरे दिन रोज की तरह राधा के ससुरजी आँगन की खाट पर बैठकर अपने कुछ मित्रो के साथ हुक्के के दम फूंकते है | सासुमा एक तरफ धान-अनाज साफ कर रही है ,जेठानी और चाची भी अपना अपना रसोई घर मे काम कर रही है , किशन अपने काम पे चला गया है ,कुछ छोटे बच्चे खेल रहे है ,राधा अपने हिस्से का घरक़ी साफ सफाई का काम करती है तब राधा अपनी गुड़िया को हाथ मे लेकर प्यारसे उसे सवारती है उसी समय राधा ज्घरके जिस कमरे मे काम कर रही थी और अपनी गुड़िया को लेकर सवारती थी तब उनकी चाची सास और जेठानी घरमे प्रवेस करतेही देखती है की राधा अपनी गुड़िया को लेकर उसे सवारती है और कुछ काम मे ध्यान नहीं है और कुछ काम नहीं कर रही है तब , चाची सास और जेठानीने राधा को कडवे शब्दो के जहरीले शब्दो के ताने शुरू कर दिये | चाची ने कहा ! की, लो.. राधा रानी का बचपन घरके काम के समय भी लौट आया | घरमे इतना काम पड़ा है , हम सुबह से उठकर रात तक घरके काम काज और बच्चो को संभालते संभालते संभालते संभालते थक जाते है , और एक ये हमारे घरकी बीस साल की जवान बच्ची राधा रानी ,जिनको आज भी खिलौनो से खेलना ही अच्छा लगता है | घरके काम काज अच्छे नहीं लगते | जेठानी बोली ! पता नहीं इसके पिताजी ने दहेज मे ये फटे टूटे पुराने कपड़े से बनाई गुड़िया दहेज मे जो नदी है , एक फूटी कौड़ी तो दी नहीं ,और हमारे ब्याह मे तो बैल गाड़िया भर भर के दहेज दिया है , सोना दिया है , रूपिये दिये है फिरभि हम घरमे दिनरात नौकरानियों की तरह काम करते है | चाची बोली ! हा मुजे तो लगता है राधा रानी के पिताजी ने इस फटे टूटे पुराने कपड़ो से बनी गुड़िया मे हीरे जवेरात भरके दी होगी , इस लिए राधा रानी इस गुड़िया को अपने गले से लगाकर ही रखती है |
इतने भारी भरखम तीखे जहरीले शब्दो के तीर राधा के मन और हृदय के पार हो जाते है | राधा की शहन शक्तिओ का अंत आ जाता है, फिर भी राधा खुद पर काबू पा लेती है | मगर तीखे जहरीले कट्टू शब्दो के तिरसे जो घाव मन हृदय मे लगे है ! उनका दर्द राधा की आखोसे छलक आता है | ससुरजी और अन्य पुरुष, किशन भी घर के दरवाजे के पास पहोच जाता है, घरमे जो परिस्थ्ति उपस्थित हुई है उसे जान ने के लिए कुछ समजने की कोशिष कर रहा है तभी राधा का दर्द उनके होठो पे आ जाता है और कहते है ना की तलवार के घाव एमआईटी शकते है मगर शब्दो के घाव नहीं मिटते | वो अंदर ही अंदर खोखला किए जाता है | सास- ससुर किशन, और घरके बच्चे सहित सब देख सुन रहे है | राधा की आखे शब्दो से लगे घाव के दर्द आशु बनकर बहने लगते है | मन और हृदय के दर्द असह्य होके होठो तक आ गए है , दर्द से काँपते हुए राधा के होठो से मर्यादा के साथ बहुत ही धीरे मगर बेहद दर्द से भरे शब्दो की आहे निकलती है | की ! हा … मेरे पिता ने मुजे एक फूटी कौड़ी भी नहीं दी है | मेरे पिता ने मुजे ये फटे पुराने कपड़ो से बनी गुड़िया ही दी है | मेरे पिता गरीब मजदूर है इसका मतलब ये तो नहीं की वो अच्छे पिता नहीं है | वो अच्छे इंसान नहीं है! चाची.. , जब मुजे भूख लगती थी मेरी माँ मुजे प्यार से पेट भर खाना खिलाती थी ,जब मे पुछती थी की माँ तूने खाना खा लिया ? तब मेरे सर पे हाथ घुमाते हुए प्यार से बोलती थी , हा मैंने भ पेट भर खाना खा लिया | मेरे बापू को पुछती थी तब वो भी प्यार से बोलते थे | हा गुड़िया मैंने भी पेट भर खाना खा लिया | मगर जब ये गुड़िया जो आप इसे फटे पुराने कपड़ो से बनी गुड़िया कहते है , वो फटे पुराने कपड़े नहीं है है |
हरदिन में माँ और बापू को रो रो के कहती थी की बापू मेरी सब सहेलिया सब बच्चे अपने अपने खिलौने लेकर आते है , मेरे पास एक भी खिलौना नहीं है सब मुजे पुछते है की क्या तेरे पास कोई खिलौना कोई गुड़िया नहीं है ? तब मुजे बहुत रोना आता है | बापू -माँ , क्या मुजे एक छोटीसी गुड़िया भी नहीं मिल शक्ति ? क्या हम इतने गरीब है ? मेरी ये बात सुनकर माँ और बापू ने मन मे ठान लिया था की मेरे खेलने के लिए कोई गुड़िया खरीदे या बनाए | अपने हाथो मे थमाइ हुई गुड़िया को दिखाकर राधा फुट फुट कर रो रो कर कहती है की ये फटे पुराने कपड़ो से बनी हुई गुड़िया नहीं है | मेरी माँ और बापू ने अपना पेट खाली रखकर , जो भी मजदूरी मिलती थी उस पैसो को इकठ्ठा करके एक दिन रेशम और मल मल के कपड़े खरीद के , खुद भूके रहकर मेरे लिए मेरे माँ-बापू ने ये छोटी सी गुड़िया ,अपनी खुद की गुड़िया की खुशियो के लिए बनाके दी है |
ये फटे पुराने कपड़ो से नहीं , मेरे बापू ने मेरी माँ ने अपना खून पसीना बहाकर ये रेशम और मल मल के कपड़ो से ये गुड़िया बनाई है , इस गुड़िया मे मेरे माँ-बापू ने अपनी जान डाली है | यह बात मुजे मेरे माँ-बापू ने मुजे अपने घर से बिदा करते समय कही थी की , बेटा हमारे पास तुजे देने के लिए कुछ नहीं है? है तो बस बचपन मे तेरी खुशी के लिए ये रेशम और मल मल से गुड़िया बनाई थी जो पूरे गाउ मे किसी बच्चो के पास नहीं थी | बस ये गुड़िया ही मेरा सब कुछ है,जो बाबुल के घरसे दी गई है | राधा की आखोसे दर्द की नदिया बेह रही है , हृदय के दर्द का एक एक शब्द अंदर से अपने मात-पिता के स्वाभिमान के लिए निकल रहे थे | और कहती थी की ! माँ अपने बच्चो को नौ महिना अपने पेट मे जान से भी ज्यादा प्यार देकर पालती है | और बच्ची को जन्म देकर जवान हो जाने के बाद वो दुनिया के हरएक माँ-बाप अपने कलेजे के टुकड़ो को एक अंजाने घर मे, अंजाने लोगो के बीच, उनके हाथ सौप देते है | इससे बडा इस दुनिया मे कोई दहेज नहीं है |इससे बड़ा कोई दान नहीं है | इस लिए बेटियो के विवाह मे माँ-बाप कन्या दान करते है | और इससे बड़ा दान इस संसार मे कोई नहीं है |
किशन राधकों अपने सिने से लगाकर उसकी भावनाओ को समजकर सांत्वना दे रहा रहा है | तीखे जहरीले तीरो को छोडने वाली औरते भी एक और है , एक माँ है एक पत्नी है एक बहू है ,यह आखे खोलड़ी की वो भी आफ्नो को छोडकर पराये घर को अपना घर बनाया है | सास और ससुरजी भी राधा की ये दर्द भरी सच्चाई के शब्दो को सुनकर बहुत ही खुश है की राधा एक पूर्ण संस्कारी परिवार से है | और वो संस्कार इनमे पूर्ण रूप से भरे हुए है | ससुर जी राधा के सर पे हाथ रखकर कहते है की बेटा ..गुड़िया .. तू हमारे घरकी की बहू नहीं इस घरकी बेटी हो | हम सब भाग्यवान है ,पुण्यशाली है की हमारे बेटे किशन की बहू हो | घर की बेटी हो |
नरेंद्र वाला
विक्की राणा
”सत्य की शोध’