



नमस्कार ,
1857 की क्रान्ति मे राजस्थान के क्रांतिकारीओका बलिदान
देश का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं था, जिसने संग्राम में भाग नहीं लिया हो | राजस्थान भी इस क्रांति यज्ञ से अछूता नहीं रहा| 18 सो 57 का स्वाधीनता संग्राम पूरे देश में फैला था| अट्ठारह सौ सत्तावन में राजस्थान, नसीराबाद, नीमच, ब्यावर, [ टॉक], एरिनपुरा [जोधपुर] तथा खेरवाड़ा [ उदयपुर से सो किलोमीटर दूर] मैं छावनीया थी | इन बल अंग्रे राज राजस्थान संभाले थे | यूं तो राजस्थान देशी रियासतों का गढ़ था, पर 2-4 रियासतों को छोड़कर सभी ने अंग्रेजों से संधि कर रखी थी और वह अपने को अंग्रेजों के आधिपत्य में ही सुरक्षित समझते थे| परंतु क्रांति के संयोजको ने छावनीयों के देसी सैनिकों में स्वतंत्र होने की चेतना भरकर, उन्हें क्रांति के साथ जोड़ा|
28 मई, अट्ठारह सौ सत्तावन को अजमेर से लगभग 6 मील की दूरी पर स्थित नसीराबाद की छावनी दोपहर 2:00 बजे तोपखाने के गोले से गनगना उठी | छावनी की 15 वी ‘ नेटिव इन्फेंट्री’ के सैनिकों ने, बख्तावर सिंह नामक एक फौजी के नेतृत्व में तोपखाने पर कब्जा कर लिया| अंग्रेज ऑफ इसरो ने सिपाहियों को विद्रोहियों पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया| देसी सिपाहियों ने आदेश को नहीं माना, वह भी विद्रोहियों के साथ मिल गए| कर्नल न्यूबरी तथा मेजर स्पोर्टहुड को मौत के घाट उतार दिया| लेफ्टिनेंट लॉक तथा कप्तान फेनविक ने वहां से भागकर ब्यावर में शरण ली, जो संघर्ष में बुरी तरह घायल हो गए थे| ‘ हिंडौन’ मैं जयपुर राज्य की सेना थी, उसने भी क्रांतिकारियों का साथ दिया| एरिनपुरा छावनी के सैनिकों ने मेहराब सिंह को अपना जनरल चुना तथा उसने नेतृत्व में क्रांतिकारी पाली जिले में पहुंचे| पाली जिले में’ आउवा’ नामक छोटा सा गांव था, जहां के ठाकुर खुशाल सिंह क्रांति की मशाल थामे थे| जहां एक और क्रांतिकारी देश की आजादी के लिए अपना रक्त बहा रहे, वहीं दूसरी ओर अंग्रेज परस्त राजाओं की सेना क्रांतिकारियों से लड़ रही थी | जोधपुर के राजा अंग्रेजों के पिट्ठू थे, अतः उनकी सेना अंग्रेजों की रक्षा के लिए क्रांतिकारियों से संघर्ष कर रही थी| ऐसा पंडित सत्यनारायण शर्मा ने भी अपनी एक पुस्तक में प्रमाण दिया है |
8 सितंबर, अट्ठारह सौ सत्तावन को क्रांतिकारियों का संघर्ष अंग्रेज भक्त महाराजा जोधपुर की सेना से हुआ| जिस जो सेना अनाड सिंह मारा गया और अंग्रेज सेनानायक हित कोर्ट युद्ध के मैदान से जान बचाकर भाग निकला| ठाकुर कुशाल सिंह ने यहां क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया |
दूसरा संघर्ष, 10 दिन बाद आऊंगा के पास चेलावास में हुआ| अंग्रेजों की ओर से जॉर्ज लारेंस व जोधपुर का पोलिटिकल एजेंट माक मेसन इस लड़ाई का नेतृत्व कर रहा था | क्रांतिकारियों का नेतृत्व यहां भी ठाकुर कुशाल सिंह ने किया| इस संघर्ष में क्रांतिकारी जीते| इस युद्ध में माक मेसन मारा गया | क्रांतिकारी ने उसका सब आउवा के किले के दरवाजे पर उल्टा लटका दिया| 20 जनवरी, 18 सो 58 के तीसरी और अंतिम लड़ाई कर्नल होम्स और क्रांतिकारियों के बीच हुई| इस ठाकुर कुशाल सिंह के कामदार और किलेदार की दगाबाजी के कारण अंग्रेजों ने किले पर कब्जा कर लिया|
चौथा संघर्ष बेडसु में हुआ | यहां लड़ाई 40 दिन तक चली| इसमें अंग्रेजी विजई रहे| और उन्होंने राजस्थान पर अपना राज कायम रखा |
नरेंद्र वाला
[विक्की राणा]
‘सत्य की शोध’