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मुंबई को सिर्फ 10 पाउंड मे भाड़े से दे दिया था | जानिए किसने किसको मुंबई सौप दिया था |

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नमस्कार ,

                                          मुंबई का “सत्यनामा’

23 जून 1661 मुंबई के लिए अति महत्व का दिन इस लिए है की ब्रिटेन के राजा चार्ल्स [दूसरे] और पोर्तुगल के राजा आल्फ़ोंसस [छठे] के बीच दहेज के लिए विवाह करार हुआ था | इस लग्न-विवाह करार मे बहुत सारी कलमे-शर्ते जोड़ी गई थी इनमे से 11 वी कलम मे मुंबई बंदर और मुंबई के सभी टापू चार्ल्स [दूसरे] को हमेशा के लिए सौप दिया था | कारण ये था की पोर्तुगल के राजा की बहन इंफंटा केथेरीन ब्रज़ांजा के साथ हुआ था | खास बात तो ये है की ये मुंबई टापू ना तो ब्रिटेन के चार्ल्स ने देखा था ना तो पोर्तुगल राजा ने देखा था | सिर्फ मुंबई के नक्शे मे देख कर ये करार किया गया था | 

 ब्रिटेन के राजा चार्ल्स [दूसरे] पैसा खर्च ने एम पीछे नहीं हटते थे , खुल्ले हाथो से खर्च करने के सौखिन थे , इस लिए उनको पैसो की जरूरत भी ज्यादा रहती थी | इस लिए ब्रिटेन के राजा चार्ल्स [दूसरे] ने इस खूब सूरत मुंबई को 1668 के मार्च महीने मे ईस्ट इंडिया कंपनी को सिर्फ 10 पाउंड [वार्षिक] किम्मत मे भाड़े पे सौप दिया था | ओहह  ,दिल और मन दोनों ये जान कर मचल गए | 10 पाउंड याने आजके लगभग 934 रूपिये मे हमारी आर्थिक राजधानी , करोड़ो लोगो क सपनों की नगरी मुंबई भाड़े पे दे दिया , जो आज मुंबई के सामान्य से सामान्य इलाको मे एक रूम एक दिन के लिए भी भाड़े पे मिल नहीं शकता |

          18 फरवरी 1665 की की तारीख भी याद रखने जैसी है | उस समय मे मुंबई ,वसई के पोर्तुगीज गवर्नर के पास था | और वास्तव मे इसी तारीख को ही मुंबई का कब्जा अंग्रेज़ो को सौपा गया था | पोर्तुगीज गवर्नर मुंबई का महत्व जानते थे इस लिए वो मुंबई को अंगेजों के हाथ नहीं आने देना चाहते थे | 

           दहेज विवाह करार [ लग्न करार भी] गोवा के पोर्तुगीज गवर्नर जनरल और वसई के गवर्नर की जानकारी से बाहर ही पोर्तुगल के राजा ने कर दिया था | गोवा के गवर्नर जनरल एंटोनिओ डिमेलों दी केस्टो थे , उन्होने पोर्तुगल के राजा को पत्र लिखकर स्पष्ट किया था की मुंबई के बदले ब्रिटेन के राजा को नकद रकम दी जाये | और वो नकद रकम भी सिर्फ 5 या 6 हजार पाउंड जितनी ही दी गई थी | लेकिन पोर्तुगीज की कमनसिबी देखिये उस वक़्त पोर्तुगीज की तिजोरी मे इतने पैसे भी नहीं थे | 

          गोवा के गवर्नर जनरल पोर्तुगीज के राजा के जवाब का इंतज़ार कर रहे थे ,तब ही चार्ल्स [दूसरे] का पत्र ले कर सर अब्राहम शिपमेन 1662 के सप्टेंबर महीने मे पाँच जहाजो के काफिले के साथ मुंबई का कब्जा लेने के लिए मुंबई के बंदर पर पहोच गए थे | परंतु वसई के पोर्तुगीज गवर्नर ने गोवा के गवर्नर जनरल के पास भेजा , मगर गोवा के गवर्नर जनरल ने बहोत सारे फोल्ट निकाले और दुखी सर अब्राहम की किसिने गोवा के टापू के पास हत्या कर दी | जिनकी किसिकों जानकारी आजतक नहीं है | इस लिए पोर्तुगल और ब्रिटेन के बीच का संघर्ष और कठिन होने की संभावनाये बढ़ गई थी | तब चार्ल्स [दूसरे ] ने हमफ़ी कुक को दूसरी बार मुंबई भेज कर 18 फरवरी 1665 के दिन मुंबई का कब्जा ले लिया | 

    मुंबई को उस समय कोई मुंबई के नाम से नहीं जानते थे | मुंबई उस समय “माहिम” के नामसे जाना जाता था ,और मुंबा देवी का मंदिर तब आज जहा बोरिबंदर विक्टोरिया टर्मिनल स्टेशन है वह था | है ना मज़े की बात ? क्या आप जानते थे ? नहीं तो आगे और सत्य जानकारी देता हु | अपनी आखे और कान खुल्ले रखना , क्यो की ‘सत्य की शोध’ मे आज मुंबई का सत्यनामा पेश कर रहे है | 

मुंबई नगरी का तब ‘माहिम’ नाम था ,मुंबई शब्द कोई जानता भी नहीं था तब और माहिम भी बसा नहीं था तब गुजरात के राजा भीमदेव सोलंकी सोमनाथ-पाटन से पराजित हुए तब भागकर आजके माहिम मे आए और उन्होने “महिष्कावाती” के नाम से स्थापना की और इसी महिष्कावाती के नाम से ” माहिम ” नाम हुआ | राजा भीमदेव सोलकी के साथ अजमेर तरफ के राजपूत आए थे , और वो अम्बा देवी के भक्त थे | उन्होने ही यहा अंबादेवी के मंदिर की स्थापना की थी | माँ अम्बादेवी नाम उच्चारण करते थे ,इस लिए यहा के स्थानिक कोली मछुआरे और भण्डारी लोग “माँ अम्बाआई” कहने लगे और इस कारण मंदिर को माँ अम्बाआई से ही आगे ‘मुंबाई’ – और आखिर मे मुंबई नाम हो गया | ऐसा मूलचंद वर्मा की एक अखबारी यादी मे भी बताया गया प्रमाण मिलता है |

             बोम्बाई [बंबई ]नाम से भी सब जानते थे और कई लोग आज भी ये शब्द बोलते भी है | पोर्तुगीज भाषा का एक शब्द है “बोम बोहियों ” -सारा बंदर से ही ‘बॉम्बे’ नाम हुआ है ये सिर्फ एक कल्पना हो शक्ति है | मुंबाई से ही मुंबई [ माँ अंबाई ] की पहचान मिली है | अब एक और चौकाने वाली बात जो सत्य है वो आपके सामने रखता हु | 1728 मे मलबार हिल जो उस समय सिर्फ जंगल ही था वो मलबार हिल को मात्र 130 रुपैया मे भाड़े पे दिया था | तब नारिमान पॉइंट और मलबार हिल गवर्नर हाउस के बीच एक जमीन का पट्टा था ,जहा गाय और बेल आशनी से आवन जावन करते थे | मलबारी समुद्री लुटेरे समुद्र मे फिरते जहाजो को लूटकर मलबार हिल किनारे के आसपास जहाजो को रखकर जंगल मे छुप जाते थे इस लिए आज का ये मलबार हिल नाम मिला | आप समजे आज का समसे महंगा इलाका जहा सामान्य व्यक्ति एक रूम किचन भाड़े पर भी नहीं ले सकता वो मकबारी समुद्री लुटेरे का छुपने का आशरा था | इस लिए मलबार हिल नाम पड़ा | 

           जब मुंबई वसई के आधीन था तब गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह का राज था | और वसई का किल्ला उसीने बनवाया था| मोगल बादशाह हुमायु ने जब गुजरात पर आक्रमण किया था तब सुल्तान शाह ने पोर्तुगीज के साथ संधि करके इ.स.1534 मे वासी तब उनको सौप दिया गया | याने तब मुंबई वसई के आधीन था | 1665 मे जब मुंबई पोर्तुगीजों के हाथ से अंग्रेज़ो के हाथ गया तब मुंबई की बस्ती मुश्किल से 10 हजार जितनी होगी | और देश भरसे तड़ीपार लोग यहा आके बस्ते थे छुपते थी  | हम्फ्री कुक ने मुंबई का कब्जा तो लिया पर वो एक लोमड़ी जैसा आदमी था ,एक गद्दार था | वो सर अब्रहमशाह का एक सेक्रेटरी मात्र था ,उसने गलत दस्तावेज़ – कागजात बनवाके वो मुंबई का सेक्रेटरी बाँके बैठा था | और मुंबई का पूरा महसूल चबा गया था ,और खुद को मुंबई का मालिक ही मानता था | 

         तो आपने देखा की मुंबई जो आज भारत की आर्थिक राजधानी है | भारत के नौजवानो के लिए सपनों की नगरी है | और नीसी नगरी मे अंबानी से लेकर अदानी और अमिताभ बच्चन भी इसी सपनों की नगरी मे बने है | परंतु इस सपनों की नगरीका ‘सत्यनामा’ आज आपके लिए ‘सत्य की शोध’ मे प्रस्तुत करके हमे अपार आनंद की अनुभूति हो रही है | आगे 1665 के बाद मुंबई पोर्तुगीजों के हाथ से अंग्रेज़ो के हाथ मे कैसे आया और क्या हुआ यह जानने के लिए देखते रहिए सुनते रहिए “सत्य की शोध ” और उनका “सत्यनामा”

जय हिन्द 

   नरेंद्र वाला 

[ विक्की राणा ] 

“सत्य की शोध ”    

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