



नमस्कार ,
यह भारतवर्ष शुभ और अशुभ फल का उदय करने वाला मध्यम चित्र है| जो समुद्र के उत्तर और हिमवन [हिमालय पर्वत] के दक्षिण की ओर है, वह देश भारत देश है, जहां यह भारतीय प्रजा है| प्रजाओ का भरण [पालन- पोषण] करने के कारण भरत मनु कह जाते हैं| इस निरुक्त के निवर्चन के कारण ऐसा वर्ष भारतवर्ष कहा गया है| निरुक्त के अनुसार जो प्रजा का पालन करें, वह भरत है | अतः भरत ने प्रजा का पालन किया था, इसलिए यथा नाम तथा गुण के अनुसार महाराज ऋषभदेव को भरत कहा गया तथा उनके नाम पर इस वर्ष का नाम भारत वर्ष हुआ | यहीं पर स्वर्ग, मोक्ष मध्य और अंत गति होती है| इस स्थान के अतिरिक्त भूमि पर कहींभी मत्स्यलोकवासीओ को कर्म विधान नहीं है| अर्थात यहीं पर लोग पाप पुण्य के फल के भोग का विधान करते हैं, पाप से डरते हैं ,तथा पुण्य के लिए सजग रहते हैं | इस भारतवर्ष के 9 भेदों को देखिये – यह 9 द्वीप समूह और परस्पर अगम्य है |
यह द्वीप है – इंद्र द्वीप, कसेरूमान, ताम्रवर्ण,गभस्तिमान,नागद्वीप,सोम्य ,गांधर्व और वारूँ ये सात हुए | उनमें नौवाद्वीप भारतवर्ष सागर से घिरा हुआ है , यह द्वीप दक्षिण से उत्तर तक एक हजार योजन है | यह गंगा की पुत्री स्थली से कन्याकुमारी तक तिर्यक उत्तर में 9000 योजन विस्तीर्णय है | यह दीप सब और से अपने अंदर म्लेछों से युक्त है,पूर्व में अंत तक किरात लोग रहते हैं और पश्चिम में यवनों का का वास प्रसिद्ध है| इस देश के मध्य भाग में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र है , जिनका कार्य वर्ण कम से यज्ञ करना, युद्ध करना, व्यापार आदि के द्वारा व्यवस्थित है | वर्णों का अपने अपने कर्मों में परस्पर व्यवहार धर्म अर्थ और काम से संयुक्त होता है |
अर्थात वे धर्म से अर्थ और अर्थ से काम की नीति रखते हैं | यहां पांच आश्रमों को यथा विधि पूरा किया जाता है, वैसे तो आश्रम चार ही | इन आश्रमो मे यहके मनुष्योकी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति से संबन्धित है | नौवा द्वीप है , वह निर्यक [तिरछा] फैला हुआ कहा जाता है, जो व्यक्ति इस समस्त को जीत लेता है, वही उनका सम्राट कहा जाता है, वह इस लोक में सम्राट अंतरिक्ष में विराट, अन्य लोक में स्वराट कहा जाता है ,विस्तार पूर्वक अगर कहा जाए तो इस देश में सुंदर पर्व [ चोटियों] वाले साथ कुल पर्वत प्रसिद्ध है |
वह है- महेंद्र,मलय,सह्य ,शुक्तिमान,ऋक्ष ,विंध्य,परियात्र यह कुल सात पर्वत | उनके समीप जाने वाले हजारों अन्य पर्वत है | इन, जो अभी तक नहीं जाने गए हैं तथा यह सब सारयुक्त है, विशाल है और विचित्र है | पर्वत श्रेष्ठ मंदर ,वैहार ,दुदुर्र,कोलाहल, ससुरस , मैनाक,तथा वैधुत,वातनधम,नागगिरी,पांडुर,तुंगप्रस्थ ,कृष्णगिरी,गोढंगीरी,पुष्पगिरी, उज्जयंत, रैवतक,श्रीपर्वत,चित्रकूट,तथा कुतशैलगिरी है | इनके अतिरिक्त अन्य छोटे छोटे भी कितने पर्वत है, जो अच्छी तरह ज्ञात नहीं है | उन पर्वतों से विशेष रूप से मिले हुए जनपद है, जहां पर आर्य और मलेच्छ भागश:ननिवास करते हैं, जिनके द्वारा इन निम्न नदियों का जल पिया जाता है |
नदिया है- गंगा, सिंधु, सरस्वती,शतद्रु ,चंद्रभागा, यमुना, सरयू, इरावती,वितस्ता वीपाशा,देविका,कुहु,गोमती,धृतपापा,बुदबुदा,द्रुषदवती ,कौशिका,त्रिदीवा,निष्ठिवी,गंड्वि ,चक्षु,और लोहिता यह नदियां हिमालय के पाददेश से निकली है,वेद स्मृति, वेदवती, वृत्रघनी ,सिंधु,वर्णाशा ,नंदना ,सदानीरा ,महानदी,पाशा,चर्मणवती ,नुपा,विदिशा,वेत्रवती ,क्षिप्रा ,अवन्ती , ये नदिया ,पारिपात्र पर्वत से निकलती है | शोण ,महानद ,नम्मर्दा ,सुरसा,क्रिया,मंदाकिनी ,दर्शाणा, चित्रकूटा ,तमसा,पिप्पला ,श्येना ,करमोदा,पिशाचिका ,चित्रोपला,विशाला,वास्तुवाहिनी,सनेरुजा ,शुक्तिमती,मंकुती,त्रिदीवा,नदिया ऋक्षवान ,पर्वत से निकली है तथा इंका जल मणितुल्य और कल्याणकारी है,तापी ,पयोष्णि,निर्विन्ध्या ,श्रुपा ,निशधा ,वेणी,वेतरणी ,क्षिप्रा ,वाला ,कुमुद्रति ,तोया ,महागौरी,दुर्गा,वान्निशिला ,ये नदिया विंध्या पर्वत केआर पाद प्रवेश से निकली है , कृतमाला ,ताम्रपर्णि ,पुष्पजाति,उत्पलावती,ये नदिया मलय पर्वत से निकली है ,जो सब शुभ और शीतल जल वाली है| त्रिसामा,ऋषिकुल्या ,बंजुला ,त्रिदीवा,बला,लांगुलिनी,वंशधरा,महेन्द्रतन्या ,ऋषिकुल्या ,कुमारी,मंदगा ,मंदगामिनी,कृपा और पलाशीनी ,ये नदिया शुक्तिमान पर्वत से निकली है | वे सभी सरस्वती गंगा आदि नदिया समुद्र मे जाकर गिरि है | वे सभी विश्व की माताए और संसार के पापी को हर्णे वाली काही जाती है | उनके अलावा सैकड़ों हजारो नदिया उपनदिया है ,उनके ये कुरुदेश,पांचाल ,शाल्व और माहेन्द्र जंगल है |
शूरसेन,भद्रकारा ,बोघा ,सहपटच्चर ,मत्स्य,कुशल्य ,सोशल्य ,कुंतल,काशीकोशल ,गोध ,भद्र ,कलिङ्ग ,मगध ,उत्कल,ये सब मध्यपरदेश के जनपद कहे गए है ,सह्य पर्वत के उतरान्त ,मे जहा गोदावरि नदी है | वह प्रदेश समस्त पृथ्वी पर मनोरम है | वहा अपर राम के द्वारा बनाया गया गोबर्धन नामका नगर है | वह स्वर्गीय वृक्ष और दिव्य औषधीय वाला नगर है | उस नगर को मुनि भारद्वाज ने राम की प्रिया सीता जी के लिए अंत:pउर के रूप मे बनाया था | अत: वह नगर उस उदेश्य से उन्होने मनोरम बनाया था | उतर की और इतने देश है -वाह्लिक ,वाटधान ,आभीर,कालतोयक,अपरान्त,सुहय,पाश्चाल ,चर्ममंडल ,गांधार,यवन,सिंधु,सौवीर,मण्डल,चीन,तुषार,पल्लव,गिरिगहर,शक,भद्र,कुलिंद,पारद,विंध्य ,चूलीक,अभिश ,उतूल,केकाय,दसमालिक,ये सब ब्राह्मण ,क्षत्रिय,वैश्य,एवं शूद्र कुलो के निवेश है | काम्बोज ,दरद ,बर्बर ,अंगलोही ,अतराय ,समरद्वाज ,प्रस्थल,दशेरक,लमक,ताल।शाल।भूषिक,इंजिक,ये देश उतर प्रदेश के देश संजिए | अंग,बोल, चोल,भद्र,किरातजाती,तोमर,हंसमार्ग,काश्मीर,तंगण ,जिल्लिका ,आहुका,हुढ्दर्वा,अंधवाका ,मुदगरका ,अंतर्गिरी बहीगीरी,प्लवंगव,मलद,मलवर्तिका , समंतर ,प्रावुशेय ,भार्गव,गोपपार्थिव,प्रागज्योतिश ,पुंड्र ,विदेह ताम्रलीप्तक ,मल्ल,मगध ,गोनर्द,ये पूर्व के जनपद कहे गए है |इसके बाद दूसरे जनपद दक्षिण पथ पर रहने वाले है| वे है-पण्डेय ,केरल,चोल,कुल्य,सेतुक,भूषिक,क्षपण,वनवासिक,महारास्ट्रा,महिशीक,कलिङ्ग,आभीर,सहैशिक,आटव्य,साख,पुलिंद,विंध्यमौलीय ,वैदर्भ ,दंडक ,पौरिक ,मौलिक,अशमक,भोग्बर्धन ,कोंकण ,कुंतल ,आंध्र ,कुलिंद,अंगार,मारीष,ये सभी देश दक्षिण भारत के समाजिए |दूसरे देश देखीये-सुर्पाकारा , कलीवना ,दुर्गा,कुंतल,पौलेय ,किरात,रूपक तापक,करीरती,करंधर और नासिक ,ये सब जनपद नर्मदा नदी के किनारे पर है | सहकच्छ ,समाहे,सहस,सारस्वत ,कच्छिप,सुरास्ट्रा ,आनर्त,अबुर्द ,| येसब अपरान्त के देश है | अब विंध्यवासिओको देखिये | मलद , करुष,मेक,चोत्कल,उतमार्ण ,दशार्ण ,भोज,किष्किंधक ,तोशल,कोशल,त्रेपुर ,वैदिश ,कुहुण्ड ,बर्बर ,षटपुर,नैषध ,अनूप,तुंडिकेर,वीतीहोत्र,अवन्ती ,
ये सब जनपद विंध्य विंध्य पर्वत के पीछे रहने वाले है |अत:अब पर्वताश्रई देशोका वर्णन करूंगा ,ये है -निहिर,हंसमार्ग, कुपथ ,तंगण,शक,अपप्रपावरण ,ऊर्ण ,,दर्व ,सहहुक,त्रीगर्त,मण्डल ,किरात,तामर,भारतवर्ष मे चार युग ऋषिओने बताए वे है – सतयुग,त्रेतायुग,द्वापरयुग,और कलयुग | इनके स्वभाव का पूर्ण वर्णन ऊपर से किया जाएगा ,एसा समजिये ||
नरेंद्र वाला
विक्की राणा
‘सत्य की शोध’