



नमस्कार ,
परशुराम ने 21 बार क्षत्रियो का वध -विनास किया था
गुरु वशिष्ट ने कहा कि जब 12 वर्ष तपस्या करने के बाद परशुराम घर लौटे तो उन्होंने मार्ग में जाते हुए मुनियों से आदि से लेकर अंत तक सारा वृतांत सुना कि राजपूतों ने तुम्हारे पिता को स्वर्ग पहुंचाने का व्यवसाय और व्यवस्था किया| तुम्हारे पिताजी का जीव हरण ही नहीं, उनका चीरहरण भी हो गया अर्थात उनका निर्दयता से सिर काट कर ले गए| पिता और माता के मरण को सुनकर महाबाहु परशुराम दुख और शोक से समन्वित होकर विलाप करने लगे, तो अकृतव्रण ने उन्हें आश्वस्त किया|
शास्त्री निर्दिष्ट कारणों तथा पराक्रम सामर्थ्य सूचक युक्ति अलौकिक दृष्टांत ओ द्वारा उनका शौक शांत हुआ| अर्थात अकृतव्रण ने कहा कि शास्त्रों के अनुसार केवल शरीर मरता है, आत्मा नहीं मरती तथा आप पराक्रमी है, आप में पूरी तरह बदला लेने की सामर्थ्य है तथा लोक में जो भी जन्मा है, उसे अंत में मरना ही है, यह मारा वह मरा तथा अंत में सबको मरना है, इस प्रकार की बातों द्वारा आकृतव्रण ने परशुराम को समझाया तथा उनका शौक कम किया| इस प्रकार अकृतव्रण के उस कथन से मेघावी परशुराम शांत हो गए और फिर धैर्य का अवलंबन कर अकृतव्रण के साथ भाइयों को देखने की इच्छा से चल दिए| तब दुखी वह परशुराम उन दुखी भाइयों को देखकर उन्हें अभिवादन कर उन सब के साथ 3 दिन तक रह कर शोक मनाते हुए ठहरे| उस अपने समर संसार का संहार करने में समर्थ संस्था अत्यंत क्रोधित हुए| माता के लिए की गई पूर्व प्रतिज्ञा को उन्होंने अपने रजाई में दर्ज कर लिया तथा सभी क्षत्रियों का वध करने के लिए तैयार हो गए| तब परशुराम ने यह प्रतिज्ञा की कि क्षत्रियों के वंशज को पूरी तरह मारकर उनके शरीर के गुणों से पिता का तर्पण करूंगा, ऐसा निश्चय करके परशुराम अपने सभी भाइयों को अपनी प्रतिज्ञा बताकर उनकी अनुमति से पिता की अंत्येष्टि संस्कार क्रिया करके चलने लगे| उसके बादअकृतव्रण के साथ माहिष्मती पूरी को प्राप्त करके उसके बाहरी उपवन में ठहर कर उन्होंने महोदर [ गणेश जी को] याद किया| उन परशुराम के लिए रथ धनुष और घोड़े सहित सब मारक अस्त्रों को भेज दिया| परशुराम ने रथ पर चढ़कर तैयार हो हाथ में धनुष बाण लेकर शत्रु को जीतने वाले रूद्र दत्त को पूर्ण किया| रूट कम के समान प्रत्यंचा को घोष किया| अचानक साथियों में श्रेष्ठ रूद्र दत्त ने सारथी का कार्य संभाल लिया| रथ की प्रत्यक्षा के शंखनाद ओ से पिता के वध से और सहनशील परशुराम के उस राजा की वर्षभ नगरी संक्षुब्धराजाओं से युक्त हो गई|
परशुराम को पूरी तरह आया हुआ जानकर समस्त क्षत्रिय कुल का अंत करने वाले, राजा के पुत्र व्याकुल होकर संग्राम के उद्योग करने लगे| उसके बाद पंचायत, सुर और असुर सेन आदि परशुराम से युद्ध करने के लिए एक होकर उधम करने लगे| चार प्रकार के रथ आरोही, गज आरोही अश्व रोही, और पैदल सेना संयुक्त वैश्य क्षत्रिय श्रेष्ठ राजा लोग परशुराम के पास आग के पास पतंग के समान आ गए| उन्नति पराक्रमी परशुराम ने युद्ध में उन सब राजाओं से एक रात से ही युद्ध किया| उसके बाद परशुराम का राजाओं के साथ पुनः युद्ध हुआ| जहां की उदार बुद्धि वाले क्रोधित परशुराम ने सैकड़ों राजाओं को मार डाला| उस सो आज ऑन और मां मारकर क्षणभर में क्षत्रिय मंडल को भूमि पर गिरा दिया| उनके बाद जिनके संकल्प भंग हो गए तथा सेना और वाहन जिनके नष्ट हो गए हैं, ऐसे मरने से बचे हुए राजा सब दिशाओं की ओर भागने लगे| इस प्रकार सेनाओं को भगाकर और युद्ध में सेनाओं को मारकर राजा के सैकड़ों सुरों को श्रेष्ठ अग्निबाण से मार डाला| उसके क्रोध से व्याप्त आत्मा वाले समस्त पूरी को जलाने की इच्छा वाले परशुराम ने काला अग्नि के समान अस्त्र को चला दिया|
उस अग्निअस्त्र ने समस्त नगर के चारों ओर की चहारदीवारी को आग ने अपना ग्रास बना लिया अर्थात समस्त नगरी को आग ने खा लिया तथा उस आग ने नगरी के सब हाथी घोड़े और मनुष्य को जला दिया| जब अग्नि अस्त्र याने अग्निबाण से समस्त नगरी को जलाकर सब शत्रुओं को मार कर, अखिल लोगों को खाने वाले काल यमराज के समान परशुराम अकृतव्रण के साथ पूरे साहस के साथ रथ के घोष से पृथ्वी को कम पाते हुए चले गए| सभी क्षत्रियों को मारकर पृथ्वी तल पर शांति स्थापित कर धैर्य धारण करने वाले परशुराम तब के लिए महेंद्र पर्वत पर चले गए| वहां पर उन्होंने 12 वर्ष तक व्रत धारण किया तथा वह इसलिए कि जब तक क्षत्रियों की उत्पत्ति होगी मैं उनकी पुनः पुनः जाकर हत्या करूंगा|
क्षत्रियों के क्षेत्रों में अर्थात क्षत्रियों की विधवाओं में जो ब्राह्मणों ने अथवा सवर्णों ने जो क्षत्रिय उत्पन्न किए, उन सब हजारों राजाओं को परशुराम ने पुनः भूमि पर मार डाला| तथा फिर 2 वर्णों में पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर 24 वर्ष तक पुनः तक किया| ब्राह्मणों ने क्षत्रियों को पैदा किया, फिर उन सबको साक्षात काल यमराज के समान भूमि पर गिरा कर मार डाला| उतने समय से जब जब क्षत्रियों की उत्पत्ति हुई, परशुराम ने लगातार 2 वर्ष तक पृथ्वी पर क्षत्रियों को मारते हुए विचरण किया| अब वशिष्ठ जी कहते हैं कि अधिक क्या? पिता के वध को स्मरण करने वाले उन परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन कर दिया| जब 21वीं बार उनकी माता ने जो अपने वक्षस्थल को पीटना शुरू कर दिया, तब परशुराम ने पृथ्वी पर क्षत्रियों को छोड़ दिया|
इस प्रकार भारत पृथ्वी पर पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए परशुराम ने वर लिया और ऊपर बताया गया उसी तरह जिस तरह परशुराम के पिता का शेर वध करके यानी शरीर से शरीर को काटकर अलग कर दिया था उसी तरह हजारों क्षत्रियों को राजाओं को परशुराम ने अपनी क्रोध से तलवार से क्षत्रियों के 21 बार युद्ध करके पिता की मृत्यु का बदला लिया, इतना बड़ा युद्ध खेलकर परशुराम तपस्या के लिए महेंद्र पर्वत की ओर चले जाते हैं जिनका विशेष वर्णन हम अगली बार सत्य की शोध के सत्य नामा में आपके लिए प्रस्तुत करेंगे इसके लिए देखते रहिए सत्य की शोध यह श्रृंखला हम ब्रह्मांड महापुराण के अध्याय 46 का प्रमाण देते हुए आपके सामने रखा है||
narendra vala
[vicky rana]
‘satya ki shodh’