Blogआज़ादी के दीवानेइतिहासक्रांतिकारीप्रेरणाब्रेकिंग न्यूज़राजनीतिशख्सियत

गुजरात मे १८५७ की क्रान्ति की चिंगारी | राजा जीवाभाई ठाकोर को गुजरात मे फांसी दी गई | तात्या तोपे के सहकार से अंग्रेज़ो की नींद उड़ादी |

Share
0
(0)

   नमस्कार ,    

 

      गुजरात के तीन भागों में सशस्त्र विद्रोह हुए उनमें प्रमुख थे अहमदाबाद जिला, महिकांठा , खेड़ा, पंचमहाल, रेवा कांठा , तथा गायकवाड राज्य| स्वतंत्रता के इस महासमर की गूंज गुजरात में भी पहुंची थी|

          थानी फौजी छावनी की सातवीं रेजिमेंट के सूबेदार ने जून,  एक विद्रोह की योजना अपने साथियों के सामने रखी, योजना के अनुसार क्रांतिकारी सैनिकों को पहले अहमदाबाद पर कब्जा करना था तथा बाद में बड़ौदा की और कुछ करके श्री गोविंदराव, और बापू राव गायकवाड को अपना सेनापति घोषित करना था| जो क्रियान्वयन से पहले ही अंग्रेजों को इसकी भनक पड़ गई| सूबेदार को गिरफ्तार कर उसे फांसी पर लटकाया गया और समस्त सातवीं रेजिमेंट के हथियार ले लिए गए |

           दूसरा विद्रोह, 9 जुलाई को सातवीं घुड़सवार सेना द्वारा किया गया,  परंतु अन्य रेजीमेंट दो द्वारा सहयोग न मिलने के कारण,  वह अकेले पड़ गए|  अंग्रेज सैनिक टुकड़ी ने उन्हें घेर लिया |  संघर्ष में 2 घुड़सवार सिपाही मारे गए|  बाद में 5 सैनिकों को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया | इन सैनिकों का संबंध ग्रेनेडियर रेजीमेंट से था |

            ग्रेनेडियर्स सैनिकों की एक टुकड़ी ने 14 सितंबर को पुनः विद्रोह किया, पिछली बार की तरह इस बार भी सातवीं मराठा रेजीमेंट का साथ नहीं मिला, यह प्रयास भी असफल रहा |  विद्रोह करने के अभियोग में अनेक सैनिकों का कोर्ट मार्शल हुआ| उन्हें गोली से उड़ाया गया | कुछ को फांसी | 16 अक्टूबर, 18 सो 57 की क्रांति में भोसले राजा, भाऊसाहेब पवार, श्री मगन भुखण  तथा द्वारकादास [निहालचंद जवेरी] शर्राफ़  तथा जेठा माधव जी शामिल थे तथा गोविंद  राव गायकवाड उर्फ बापू राव गायकवाड उनके नेता थे | किसी गद्दार ने सारी योजना महाराजा, खंडेराव को बता दी, जो अंग्रेज समर्थक थे |  कंपनी की सेनाओं ने अचानक क्रांतिकारियों के कैंप पर आक्रमण कर दिया |  योजना असफल हो गई |

           प्रतापपुरा तथा खेड़ा जिला के अंगेर  गांव को योजना में महत्वपूर्ण भाग लेने तथा क्रांतिकारियों को शरण देने के अपराध में जलाकर खाक कर दिया गया |  6 जुलाई, अट्ठारह सौ सत्तावन को दाहोद में विद्रोह फूटा | दाहोद की तरह गोधरा में भी विद्रोह हुआ | कांत भाव, पंचमहाल के भाग में नायकड़ों को विद्रोह के लिए प्रेरित किया |

          खेड़ा जिले में, आणंद से 10 मील दूर एक गांव खानपुर है |जीवा भाई ठाकुर इस क्षेत्र के विद्रोहियों का नेता था | जीवा भाई को आणंद के मुखिया गड़बड़ दास और उनके साथियों का पूरा पूरा सहयोग प्राप्त था | जीवा भाई ने लगभग 2000 जुझारू क्रांतिकारियों की एक सेना तैयार की थी,  जिसमें कोली, भील, नायकड़े  तथा सिबंडी शामिल थे  |

         बड़ौदा स्थित, कंपनी सेना के गुरु सवारों ने अचानक हमला किया | क्रांतिकारी सेना बिखर गई |  जीवा भाई ठाकुर को गिरफ्तार करके फांसी दे दी गई |  इन दिनों ब्रिटिश सेना का एक कैंप आणंद के एक गांव लोटिया भगोल में था | आणंद  के मुखिया  गड़बड़ दास ने एक रात कंपनी सैनिकों के हथियार उठा लिए,  जब वह सो रहे थे |  बाद में गड़बड़ दास और उसके साथियों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया |  गरबादास को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और उसे अंडमान भेजा गया तथा उसके साथियों को गोली से उड़ाया गया |  रेवा काठी एजेंसी के मुसलमानों ने भी विद्रोह किया |  नानोद  के सैयद मुराद अली ने भी सशक्त विद्रोह किया | महीकाँठा एजेंसी में इडर चंदप  [चौडप ] नाम का गांव था | इस गांव के पटेल नाथाजी और यामा जी थे | इस गांव में कोली जाति के लोग बसते थे|  उन्होंने विद्रोह किया तो 17 अक्टूबर,  अट्ठारह सौ सत्तावन को, अंग अंग्रेज इधर के राजा की सेनाओं की मदद से मेजर एंड्रयूज तथा मेजर कामरेक ने गांव को घेर लिया | जब अंग्रेजों की सेना गांव में घुसी तो पूरा गांव खाली था, क्योंकि विद्रोही गांव छोड़कर पर्वती क्षेत्र में चले गए थे, जहां से उन्होंने 3 महीने तक संघर्ष किया |

           इसी तरह का एक गोली विद्रोह गायक वाली राज्य के मेहसाणा जिले के खेरालू, वडनगर और बीजापुर गांव में भी हुआ |  खेड़ा जिला के मोहनपुरा गांव में करीब 3000 कोली विद्रोहियों ने 21 अक्टूबर, अट्ठारह सौ सत्तावन को विद्रोह किया | महाराजा बरोड़ा अंग्रेजों के स्वामी भक्त थे |  परंतु वहां की जनता की सहानुभूति क्रांतिकारियों के साथ थी | बड़ौदा में एक बार क्रांति हिलोरे तब लगी, जब तात्या टोपे  छोटा उदयपुर तक पहुंच गए |  छोटा उदयपुर में क्रांतिकारी हार गए | इस हार के बाद  तात्या टोपे 15 दिन तक पंचमहाल में रुके |  ब्रिगेडियर पार्क से पराजित होने पर तात्या ने अपनी सेना को दो भागों में बांट दिया |  1 भाग का नेतृत्व स्वयं अपने हाथ में रखा तथा दूसरे का नेतृत्व फिरोजशाह को सौंप दिया |  फिरोज शाह के नेतृत्व वाली क्रांतिकारी सेना ने कुछ थानों पर अंग्रेजी सेना को चुनौती दी |  तात्या स्वयं खेड़ा पंचमहाल तथा  महीकांठा के दरबारों  से संपर्क बनाए रहे और उन्हें ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रेरित करते रहें |  तात्या नडियाद के बिहारी दास के घर छिपे रहे और वहीं से क्रांतिकारियों को सुझाव देते रहे | तात्या टोपे को प्रशय[आशरा] देने के कारण बिहारीदास की समस्त भू- संपति अंग्रेजोने जप्त कर ली | इस दौरान गोधरा, लिंबड़ी, पिपलोद, डूंगरी, जालोद आदि में विद्रोही क्रांतिकारी सेना ने उपद्रव मचा कर अंग्रेजों की नींद उड़ा रही थी |और अंग्रेज़ो की निव इस क्रांति की चिंगारिओने हिला डाली थी |और तात्या टोपे के सहयोग से फिरोज़शाह और खास बिहारिदास के योगदान और शहीद हुए गुजरात के वीरों के बलिदान तथा आज़ादी के जुनून को आगे हजारो लाखो वीर-वीरांगनाओने हस्ते हस्ते देस के लिए अपने प्राणो का बलिदान दे दिया, और आखिर मे देश के शहीद वीर-वीरांगनाऑ का सपना रंग लाया और गोरे अंग्रेज़ो को दुम  दबाकर भारत छोडने पर मजबूर कर दिये जिनहोने आजतक पीछे मुड़कर हिंदुस्तान की और देखा नहीं | और 15 अगस्त 1947 के दिन देश अंग्रेज़ो की चुंगाल से , गुलामी की जंजीरों को तोड़के आज़ाद हो गया |उन सभी क्रांतिकारि वीर-वीरांगनाओ को ‘सत्य कि शोध’ टीम सत सत नमन करती है | 

             दोस्तो, ऐसे ही भारत की आज़ादी के दिवानों की सिर्फ कहानी नहीं कहूँगा , उनके जीवन का हरएक वो लम्हा जो सिर्फ और सिर्फ देश की आज़ादी के लिए था , हमारे लिए था , जिनकी बदौलत आज हम खुद को बहुत बड़े भाग्यशाली मानते है की हम भारत देश के वासी है| जिस देश की आज़ादी के लिए जवानी मे कदम रखते ही , संसार जीवन से परे रहकर सिर्फ भारत माँ से प्रेम-महोब्बत करके उनकी दीवानगी मे दीवाने होकर हस्ते हस्ते जेल चले गए| और इंकलाब के नारो के साथ गोरे अंग्रेज़ो की फांसी के फंदे को , भारत माँ का वरदान समजकर पहेन लिया था | वो वीर-वीरांगनाओ का सत्या जीवन लेकर पुख्ता प्रमाण के साथ ‘सत्य की शोध’ मे लाकर हमे बड़े गर्व की अनुभती होती , तो देखते रहिए ,सुनते रहिए ‘सत्या की शोध’

जय हिन्द , जय भारत , वन्देमातरम 

      नरेंद्र वाला 

   {विक्की राणा}   

   ‘सत्य की शोध’ 

                 |    

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating 0 / 5. Vote count: 0

No votes so far! Be the first to rate this post.

Related posts

महात्मा गांधी के विरुद्ध भारत का पहेला मुकदमा-जेल 1922 मुख्य न्यायाधीश शेलत की कलम से ….

narendra vala

प्रजापति दक्ष के घर ‘शिवा’ [सती] का जन्म | युवा होते ही शिव से ही शिवा के विवाह बात लेकर ब्रहमाजी को भेजना |

narendra vala

विदेशो के ये शिव मंदिर पाकिस्तान सहित विश्वभर मे शिव का प्रमाण देते है |

narendra vala

Leave a Comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Privacy & Cookies Policy
error: Content is protected !!